मैं कनाडा के कैलगरी में था. तापमान शून्य के करीब पहुंच चुका था. पानी भी बरस रहा था और गर्म जैकेट और गर्जन पर लिपटे मफलर के बावजूद मुझे ठंड लग रही थी. संजय सिंह भी मेरे साथ थे. जब हम स्थानीय कम्युनिटी सेंटर की ओर जा रहे थे, मैं सोच रहा था कि हमें सुनने के लिए कुछ सौ लोग भी आएंगे या नहीं. लेकिन जब हम वहां पहुंचे, हमें आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हुई. हॉल पूरी तरह भरा हुआ था, कुछ ज़्यादा ही भरा हुआ था. कोने-कोने में लोग मौजूद थे. भारतीय समुदाय से 1,000 से ज़्यादा लोग, जिनमें ज़्यादातर पंजाब के थे, हमें सुनने के लिए लोग आए थे.
सिख समुदाय के लिए कनाडा बेहद खास जगह है. अंग्रेज़ी और फ्रेंच के बाद यहां तीसरी सबसे ज़्यादा लोकप्रिय भाषा गुरुमुखी ही है, और यहां का रक्षामंत्री भी सिख है, जो कनाडा का तीसरा सबसे शक्तिशाली कार्यालय है. इसी तरह, कनाडा के छह अन्य शहरों में भी बिल्कुल ऐसे ही नज़ारे ने हमारा स्वागत किया, और लोग हमें सुनने के लिए उत्सुक दिखे. असलियत यह है कि हिन्दुस्तान में कभी-कभी हमें सुनने के लिए इतने लोग नहीं मिल पाते हैं. वर्ष 2015 के अमेरिका और कनाडा दौरे में हमें मिले शानदार समर्थन ने ही पहली बार हमें एहसास दिलाया था कि आम आदमी पार्टी (आप) एक ऐसी ताकत के रूप में उभर चुकी है, जो पंजाब में सरकार बना सकती है.
जिस शहर में भी हम गए, संदेश स्पष्ट था - हम पंजाबी 'घर' में चल रहे अकाली कुशासन से उकता चुके हैं, और अब हम 'आप' चाहते हैं. इंटरनेट और स्मार्टफोनों के चलते वहां रहने वाले सभी लोग पंजाब में जारी ताजातरीन राजनैतिक गतिविधियों और हर छोटी-छोटी बारीकी से परिचित थे, और उनके पास 'आप' के लिए बहुत-से सुझाव भी थे. हमने वहां उन्हीं लोगों से ऐसी-ऐसी अविश्वसनीय कहानियां भी सुनीं कि किस तरह वे 'आप' के लिए काम करते रहे हैं, और कैसे उनमें से कुछ ने वर्ष 2013 और 2015 में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव क दौरान अपनी नौकरियां छोड़ दी थीं या तीन महीने की छुट्टियां ले ली थीं, ताकि वे 'आप' के लिए काम कर सकें.
उस वक्त हमें एहसास हुआ कि हमें मिल रहे इस अनौपचारिक समर्थन को औपचारिक बनाना होगा, और हमारे ओवरसीज़ चैप्टर (विदेशी शाखाओं) को सही सलीके से व्यवस्थित करना होगा. अगले कुछ महीनों में विदेशों में मौजूद हमारे वॉलंटियरों का ढांचा सही आकार में दिखने लगा. नौ अलग-अलग शाखाएं स्थापित कर दी गईं - अमेरिका (यूएसए), कनाडा, यूनाइटेड किंगडम (यूके), इटली, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, यूएई, कतर और सिंगापुर - और कुछ और शाखाएं तैयार हो रही हैं. जिस वक्त वैटिकन में मदर टेरेसा को संत की उपाधि प्रदान की गई थी, अरविंद (केजरीवाल) अप्रवासी भारतीय वॉलंटियरों के उस बहुत बड़े समूह को देखकर हैरान रह गए थे, जो उन्हें लेने के लिए हवाईअड्डे पहुंचे थे.
आज जब पंजाब और गोवा चुनाव की ओर बढ़ रहे हैं, सैकड़ों अप्रवासी भारतीय वॉलंटियरों ने छुट्टियां ले ली हैं, और पार्टी के लिए प्रचार करने की खातिर इन दोनों राज्यों में मौजूद हैं. या तो उन लोगों ने अपनी पसंद से चुनाव क्षेत्र चुन लिए हैं, या उन्हें हमने किसी एक चुनाव क्षेत्र की ज़िम्मेदारी सौंप दी है. जो अप्रवासी भारतीय हमारे साथ काम कर रहे हैं, उनमें युवतियां और युवक भी हैं, और अधेड़ उम्र के भारतीय भी, जो हिन्दुस्तान के हालात से उकता चुके हैं, और व्यवस्था में बदलाव चाहते हैं. अन्य राजनैतिक दलों से उलट हम उन्हें किसी तरह का कोई भुगतान नहीं कर रहे हैं. वे अपनी खून-पसीने की कमाई खर्च कर रहे हैं, और बदले में साफ-सुथरी, बेहतर राजनीति तथा सुशासन के अलावा हमारी पार्टी से कुछ भी नहीं चाहते. असलियत यह है कि वे हमारे चंदे में बहुत बड़ा योगदान दे रहे हैं. पार्टी के कुल फंड में 22 फीसदी हिस्सा उन्हीं के दान का है. यह कानूनी और साफ-सुथरा पैसा है. ये लोग ज़्यादातर चंदा ऑनलाइन दिया करते हैं. जो भारत नहीं आ सकते, वे खुद को 'कॉलिंग कैम्पेन' के लिए दुनियाभर में वॉलंटियर के रूप में दर्ज करवा ले रहे हैं. लगभग 10,000 अप्रवासी भारतीय या ओवरसीज़ वॉलंटियर इससे जुड़े हुए हैं. अपना रोज़मर्रा का कामकाज खत्म करने के बाद वे किसी एक जगह मिलते हैं, या घर से ही काम (वर्क फ्रॉम होम) करते हैं, और भारत में बसे अपने परिचितों तथा नातेदारों को फोन कर समझाते हैं कि क्यों उन्हें 'आप' को वोट देना चाहिए, और क्यों देश में बदलाव लाने के लिए 'आप' की ज़रूरत है. यह सब बेहद व्यवस्थित तरीके से होता है. हर किसी को रोज़ाना लगभग 50 कॉल करनी पड़ती हैं. वर्ष 2015 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान सिर्फ अमेरिका में बसे 2,400 ओवरसीज़ वॉलंटियरों ने लगभग 10.8 लाख कॉल की थीं.
पंजाब के लगभग हर गांव से कमाने के लिए कोई न कोई विदेश में जाकर बसा हुआ है, और विदेश में बसे ऐसे किसी दोस्त या रिश्तेदार की ओर से आने वाली कॉल का भारत में बसे उस परिवार, गांव के अन्य साथियों तथा शहरों में बसे लोगों के वोट डालने के फैसले पर खासा असर पड़ता है. ये वॉलंटियर वे लोग हैं, जिन्हें उनके गांव और आसपास के लोगों द्वारा कामयाब व्यक्ति के रूप में सम्मान के साथ देखा जाता है, सो, उनकी किसी भी बात का खासा असर होता है. गोवा में भी बिल्कुल ऐसा ही है, जो कुल 16 लाख की आबादी वाला बहुत छोटा-सा राज्य है, और जहां से 5,000 युवा हर साल नौकरियों की तलाश में या पढ़ने के लिए अपने घरों को छोड़कर निकल जाते हैं. सैकड़ों गोवानी अप्रवासी भारतीय भी बहुत जोश के साथ कॉलिंग कैम्पेन में शामिल हैं, और बेहद प्रभावशाली तरीके से गोवा में बसे अपने दोस्तों को समझाते हैं कि आज बदलाव क्यों ज़रूरी है.
अंत में, मैं वह ज़रूर बताना चाहूंगा, जो कनाडा के वैंकूवर में रहने वाली बेहद जोशीली वॉलंटियर और मेरी प्रिय मित्र जसकीरत मान कहती आ रही हैं. आजकल वह पंजाब में हैं, जहां वह रोज़ाना दो से तीन रैलियों को संबोधित कर रही हैं. अपने भाषणों में वह 'आप' के आंदोलन को 'आज़ादी की दूसरी लड़ाई' कहकर पुकारती हैं. यही आदर्शवाद, अपने देश के प्रति उनका यही प्यार उन्हें, यानी अप्रवासी भारतीयों को इस 'राष्ट्रीय पुनर्जागरण' में योगदान देने के लिए प्रेरित करता है. यह उनका 'ऋण चुकाने का समय' है. ये लोग सच्चे भारतीय हैं. राष्ट्रवाद उनकी सोच की जड़ों में है.
आशुतोष जनवरी, 2014 में आम आदमी पार्टी के सदस्य बने थे...
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This Article is From Jan 13, 2017
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