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This Article is From May 14, 2018

कर्नाटक में जीत के सबके अपने-अपने दावे...

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 14, 2018 21:18 pm IST
    • Published On मई 14, 2018 20:41 pm IST
    • Last Updated On मई 14, 2018 21:18 pm IST
कर्नाटक में वोटों की गिनती मंगलवार सुबह आठ बजे शुरू हो जाएगी. दोपहर होते-होते साफ हो जाएगा कि कर्नाटक किसका होगा? लेकिन एक्ज़िट पोल के रुझानों ने सबको उलझा दिया. 75 प्रतिशत एक्जिट पोल कहते हैं कि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनेगी जबकि 25 प्रतिशत एक्जिट पोल कांग्रेस के आगे रहने की भविष्यवाणी कर रहे हैं. अगर ऐसा होता है तो जनता दल सेक्यूलर के एच डी कुमारस्वामी किंगमेकर हो जाएंगे. यानी उनके बिना कर्नाटक में सरकार नहीं बन पाएगी. हालांकि यह सब सिर्फ कयास हैं. लेकिन अगर नेता नतीजों के इंतजार किए बिना बयान देने लगते हैं तो हम अटकल लगाने से पीछे क्यों रहें? सबसे पहले हलचल मचाई मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बयान ने जिन्होंने कह दिया कि अगर ज़रूरत पड़ी तो राज्य में कांग्रेस दलित मुख्यमंत्री भी बना सकती है. इसके बाद पार्टी के दो ताकतवर दलित नेताओं मल्लिकार्जुन खड़गे और जी परमेश्वर के बीच रस्साकशी भी शुरू हो गई. यानी न सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा.

लेकिन सिद्धारमैया विधायकों की राय से नेता चुनने की बात भी साथ ही कर रहे थे. 2013 में मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस ने आगे किया लेकिन मुख्यमंत्री बने सिद्दारमैया क्योंकि अधिकांश विधायक उनके साथ थे. इसलिए जेडीएस को चाहे दलित मुख्यमंत्री की बात कर लुभाया जा रहा हो, लेकिन विधायकों की रायशुमारी की बात कह कर सिद्दारमैया अपना रास्ता भी खुला रखना चाहते हैं. सब जानते हैं कि कुमारस्वामी और सिद्धारमैया की आपस में नहीं बनती और जेडीएस शायद तभी समर्थन दे जब कांग्रेस सिद्दारमैया की जगह किसी और को सीएम बनाए.

इसीलिए दलित मुख्यमंत्री बनाना कांग्रेस के लिए 2019 से पहले एक बड़ा दांव साबित हो सकता है. खासतौर से तब जबकि दलित मुद्दों को लेकर विपक्षी पार्टियां बीजेपी पर हमलावर हैं. अभी किसी राज्य में दलित मुख्यमंत्री नहीं है और कांग्रेस ऐसा कर एक बड़ा संदेश दे सकती है.

लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि दलित सियासत की रहनुमाई का दावा करने वाली बीएसपी प्रमुख मायावती जनता दल सेक्यूलर के साथ गठबंधन में हैं. तो क्या वे अपनी बजाए किसी और पार्टी को दलितों का चैंपियन बनने का मौका देंगी? शायद नहीं. इसी तरह बीजेपी को समर्थन देने की बात पर भी मायावती का रुख कुमारस्वामी के लिए निर्णायक साबित हो सकता है क्योंकि मायावती को उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ बड़ी और आर-पार की लड़ाई लड़नी है.

यहां याद दिला दें कि बीजेपी और कुमारस्वामी में 20-20 महीने सरकार का समझौता 2006 में हुआ था और कुमारस्वामी ने बीस महीने शासन करने के बाद बीजेपी को वैसे ही अंगूठा दिखाया था जैसा मायावती ने यूपी में एक बार बीजेपी के साथ ऐसा समझौता कर दिखाया था. पर बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बी एस येदियुरप्‍पा इन सब बातों से बेखबर शपथ ग्रहण की तैयारी में हैं.

इस बीच, कुमारस्वामी सिंगापुर चले गए हैं. उनकी यात्रा को लेकर भी कई अटकलें हैं. कुछ जेडीएस नेताओं के मुताबिक वे स्वास्थ्य कारणों से गए हैं और कोई कह रहा है कि अपने अभिनेता पुत्र के प्रमोशन के लिए वहां हैं. मगर अटकल यह भी है कि वे वहां इसलिए गए ताकि हलचल से दूर रह कर सरकार बनाने के लिए बातचीत कर सकें. वो सोमवार रात ही वापस आ रहे हैं. यानी कर्नाटक में नतीजा जो भी हो, बीजेपी-कांग्रेस के बीच खिंची तलवारें आने वाले वक्त में और तेज़ रफ्तार से टकराएंगीं. यह सब है मिशन 2019 के लिए.

(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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