राजनीतिक दांव-पेंच की वजह से कराह रहा है भारत का संविधान

राजनीतिक दांव-पेंच की वजह से कराह रहा है भारत का संविधान

सबसे पहले पढ़ें तीन हालिया बयान...

बयान नंबर एक : "चाहे मेरे गले पर चाकू रख दो, मैं 'भारत माता की जय' नहीं बोलूंगा... हमारे संविधान में यह कहीं नहीं लिखा है कि सभी को 'भारत माता की जय' बोलना ज़रूरी है..." - एमआईएम पार्टी के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी

बयान नंबर दो : "'भारत माता की जय' बोलना हमारा कर्तव्य नहीं, बल्कि अधिकार है... जो लोग कहते हैं कि संविधान में 'भारत माता की जय' बोलने के लिए नहीं कहा गया है, उन्हें यह भी समझना चाहिए कि संविधान में शेरवानी और टोपी पहनने का भी ज़िक्र नहीं है..." - शायर जावेद अख्तर

बयान नंबर तीन : "भारत में हमें जितना प्यार मिलता है, उतना तो हमें पाकिस्तान में भी नहीं मिलता..." - पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कप्तान शाहिद आफरीदी

शाहिद आफरीदी का बयान न पाकिस्तान की अवाम को पचा, न वहां की हुकूमत को, नतीजतन नोटिस जारी कर दिया गया, 'तुमने ऐसा कहा कैसे...?' पाकिस्तानी हुकूमत के सामने एक दिक्कत यह भी थी कि वह तो भारत के गृहमंत्री से अपने देश की क्रिकेट टीम की सुरक्षा की गारंटी लिखित में मांग रहे थे, वहीं उनकी ही टीम के कप्तान कह रहे थे कि 'उन्हें भारत में पाकिस्तान से भी ज्यादा मोहब्बत मिल रही है...' वैसे यदि देखा जाए, तो आफरीदी अपने देश के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के भारत से दोस्ताना संबंध बनाने की कोशिश को ही अंजाम दे रहे थे, तो फिर यह दोमुंही बात क्यों...?

दरअसल, सिसायत के दो ही नहीं, कई-कई मुंह होते हैं। कुछ इसी तरह का चेहरा लंदन जैसे पुराने लोकतांत्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष देश में कानून की पढ़ाई करके लौटने के बाद राजनेता बने जनाब असदुद्दीन ओवैसी का भी दिखाई दे रहा है। इन्होंने अपने दो हाथों में दो हथियार थाम रखे हैं - एक में कुरान, दूसरे में संविधान। जब 'वन्दे मातरम्' की बात आती है, तो कुरान का हवाला पेश कर देते हैं, और जब 'भारत माता की जय' बोलने की बात आती है, तो संविधान की तलवार भांजने लगते हैं। यह बात अलग है कि जब उनके जोशीले राजनीतिक भाषणों के बाद 'ओवैसी जिन्दाबाद' के नारे लगाए जाते हैं, तो उस पर उन्हें ऐतराज़ नहीं होता, लेकिन 'भारत माता ज़िन्दाबाद' पर होता है।

यही है राजनीति... ओवैसी कैरम के खेल को बखूबी जानते हैं। जब स्ट्राइकर को स्ट्राइक किया जाता है, तो वह टकराकर लौटता है, वहीं रुक नहीं जाता। उन्हें अच्छी तरह मालूम था कि 'भारत माता की जय' न बोलने के उनके स्ट्राइकर की प्रतिक्रिया क्या होगी। फिर उस प्रतिक्रिया पर ओवैसी जी यह प्रतिक्रिया देंगे कि 'तुम सबका वजूद खतरे में है, मेरे पीछे लामबंद हो जाओ... मैं तुम्हें इस खतरे से बचा सकता हूं...' यही राजनीति है।

ज़ाहिर है, इससे एक अन्य समूह को भी प्रारम्भिक प्रतिक्रिया के रूप में कहने को मिल गया, ''देखो, हम कहते हैं न कि इन्हें इस देश से कोई मतलब नहीं है... यदि होता, तो 'भारत माता की जय' बोलने से परहेज क्यों...'' लोगों को यह बात भी समझ में आ जाती है।

अब मुश्किल यह है कि इन दोनों को जो बात समझ नहीं आती, और आनी चाहिए, वह यह है कि दोनों बातें राजनीति की हैं। जो बात समझ में आनी चाहिए, वह वह बात है, जो जावेद अख्तर साहब ने कही है। उन्होंने सच कहा है, और सच इसलिए कहा है, क्योंकि वह राजनेता न होकर शायर हैं, कलाकार हैं, ठीक वैसे ही, जैसे आफरीदी एक राजनीतिक शख्स न होकर एक खिलाड़ी हैं।

जनाब ओवैसी तो कानून के जानकार हैं। उन्हें इतना तो मालूम होगा ही कि संविधान 'मानवीय गरिमा की रक्षा' तथा दूसरों के धर्म एवं संस्कृति के प्रति सम्मान की भावना रखने की बात भी कहता है, लेकिन मुश्किल यह है कि संविधान की यह भावना राजनीति की बिसात से मेल नहीं खाती। लोग धर्मग्रंथों और संविधान के बारे में भले ही बहुत ज्यादा न जानते हों, लेकिन जननेताओं को यह बात तो अब जान ही लेनी चाहिए कि 'यह पब्लिक है, सब जानती है...'

डॉ. विजय अग्रवाल वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं...

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।