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This Article is From Jun 11, 2015

अभिषेक शर्मा की कलम से : मीडिया को मत बताना!

Abhishek Sharma
  • Blogs,
  • Updated:
    जून 11, 2015 19:11 pm IST
    • Published On जून 11, 2015 19:07 pm IST
    • Last Updated On जून 11, 2015 19:11 pm IST
बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश है, अब पुलिस और सरकारी महकमें मीडिया को ना बताएं कि आरोपी कौन है। वो क्या करता है, कहां रहता है। उसने क्या अपराध किया है। क्या धाराएं पुलिस ने लगाई हैं। ना तो अब तस्वीर देखने को मिलेगी और न उसका प्रोफाइल।

यानी अब जो भी खोज खबर करनी है वो मीडिया करे, पुलिस उसमें कुछ भी जानकारी नहीं देगी। ना ही ये बताएगी कि गलत या सही क्या है। पाबंदी मीडिया पर नहीं बल्कि उन एजेंसियों पर है जो मीडिया के ज़रिये बात करती हैं। आरोपी के बारे में जानकारी देती हैं।

पहली नज़र में ये लग सकता है कि जब तक आरोप सिद्ध न हो जाए तब तक किसी की तस्वीर छापने का हक़ मीडिया को कैसे मिल सकता है। और अच्छा ही हुआ कि अदालत ने अब आदेश दे दिया। पहली नज़र में ये भी लगता है कि इस सबसे मीडिया ट्रायल रुकेगा।

याचिकाकर्ता ने दलीलें दी हैं कि आरोपी की तस्वीरें, उसके बारे में निजी बातें और केस की जानकारियां देकर पुलिस आरोपी के साथ नाइंसाफी करती है। अदालत ने इन सबके मद्देनजर कह दिया है कि आरोप पत्र दाखिल होने तक कोई जानकारी साझा ना की जाए। मीडिया को उसके हाल पर छोड़ दिया है। अगर आरोपी की तस्वीर और जानकारी की मिल जाए तो वो छाप ले, दिखा ले।

लगता है कि इन पूरी दलीलों में मीडिया और इंसाफ के एक पैमाने को अनदेखा किया गया है। हाल ही में हमने एक स्टोरी दिखाई थी जिसमें एक बड़े पुलिस अफसर पर एक मॉडल ने बलात्कार का आरोप लगाया था। मीडिया में मामला आया तो सरकार ने निलंबन किया। मॉडल ने मीडिया में आकर धमकी की शिकायत की तो पीड़ि‍त का ख्याल रखा गया।

अब फर्ज़ कीजिये उस हालात की जब, किसी पुलिस ऑफिसर की शिकायत हो तो और महकमा उसकी जानकारी देने को तैयार न हो...न बताए कि वो कौन है। क्या ये संभव नहीं कि किसी एक शिकायत के बाद, आरोपी की तस्वीरें देखकर और पीड़ित सामने आ सकते हैं? क्या हम कल्पना कर सकते हैं ऐसे सिस्टम की जिसमें बड़े, रसूखदार लोगों के आरोपों और पीड़ितों के बारे में आधिकारिक तौर पर हमें कुछ पता न हो। हम सवाल न उठा सकें कि कौन सी धाराएं क्यों लगाई गईं है?

आदेश कहता है कि जब तक आरोप पत्र दाखिल न हो तब तक आरोपी के बारे में जानकारी साझा न की जाए... तो क्या हम आरोप पत्र को किसी के गुनाहगार होने ना या ना होने का पैमाना मान रहे हैं? और तब क्या होगा जब कोई व्यक्ति गंभीर अपराध कर फरार हो जाए, क्या उस आरोपी की तस्वीरों पर भी पाबंदी होगी? फिर अपराध पर लगाम कैसे लगेगी? क्या हम ऐसा सिस्टम तैयार नहीं कर रहे जहां बिना आधिकारिक पुष्टि के मीडिया ख़बरें दिखाएगा? क्या इससे रिपोर्टिंग की ग़लतियां और नहीं बढ़ेंगी?

मीडिया में पीड़ितों को ना दिखाने की एक व्यवस्था पहले से ही है, और अब आरोपी को ना दिखाने का फरमान है। ये आदेश पुलिस से उन तमाम दबावों को कम करता है जो मीडिया समाज की ओर से इंसाफ के हक में लाता है। हम कैसे कल्पना कर सकते हैं उस वक्त की जब हमें आधिकारिक पर ये ना बताया जाए कि बीती रात किस बड़े सितारे ने दारू पीकर लोगों को कुचल दिया है... हमें क्यों ना जानकारी मिले कि गाड़ी में कौन-कौन था और कौन फरार है। क्या ऐसी व्यवस्था पीड़ि‍तों को और कमज़ोर नहीं करेगी? ये माना जा सकता है कि मीडिया ट्रायल नहीं होना चाहिये, लेकिन मीडिया ट्रायल रोकने का पैमाना जानकारी को डिब्बा बंद करना कैसे हो सकता है?

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