ये हेडलाइन पढ़ने में निश्चित रूप से अटपटी लग रही होगी. ख़ासकर इस वाक्य को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पटना विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह में दिये गए भाषण के बाद अगर किसी ने दुहरा दिया होता तो शायद उसका लोग, ख़ासकर नाराज़ छात्र इलाज कर देते. लेकिन रजनीतिक गलियारे में तो ये माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री ने नीतीश कुमार और बिहार से उनकी कैबिनेट के सभी मंत्रियों का भी उनकी औकात बता दी.
इस बात में कोई संदेह नहीं कि शायद नीतीश कुमार को इस बात का आभास नहीं रहा कि उनकी पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग को इतना घुमा फ़िराकर प्रधानमंत्री मोदी ख़ारिज कर देंगे. लेकिन अगर नीतीश कुमार की रिसर्च टीम ने थोडी मेहनत की होती तो शायद प्रधानमंत्री मोदी के हर शिक्षण संस्थान में भाषण से उनके शनिवार के भाषण के अंश मिल जाते. पिछले हफ़्ते गुजरात के गांधीनगर में नए आईआईटी के कैम्पस के उद्घाटन में उन्होंने ये बात कही थी. हालांकि प्रधानमंत्री को भी मालूम होगा कि दस हज़ार करोड़ पाने की दौड़ में फ़िलहाल पटना यूनिवर्सिटी शामिल नहीं हो सकती. जबतक देश के खस्ताहाल विश्वविद्यालय के लिये आरक्षण की व्यवस्था ना हो.
शायद नीतीश अभी भी इस भुलावे में थे कि विनम्रता से की गई मांगों पर प्रधानमंत्री के पद पर बैठे लोग ना नहीं कहते. उन्हें शायद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दिन याद आ गए होंगे जब पटना इंजीनियरिंग कॉलेज को NIT बनवाने में सफल हुए थे. नीतीश कुमार ने इसी कॉलेज से पढ़ाई की थी और इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी. लेकिन उस समय केंद्र में बिहारी मंत्रियों की हैसियत कुछ अलग ही थी और वाजपेयी बिहार के विकास की परियोजनाओं पर अति उदार माने जाते थे. आप कह सकते हैं कि नीतीश कुमार के सार्वजनिक मंच से आग्रह को ठुकरा कर प्रधानमंत्री ने अपनी कैबिनेट के बिहारी साथियों को भी उनकी साइज़ का अंदाज़ा करा दिया.
शनिवार के दिन ही पटना में विमान से उतरते ही हाथ में नीतीश कुमार के दिये गुलाब को लेकर प्रधानमंत्री ने नए नवेले बिहार म्यूजियम जाने की इच्छा ज़ाहिर की. निश्चित रूप से देश-विदेश में इस संग्रहालय की चर्चा है. ये नीतीश कुमार की कुछ निजी ज़िद का परिणाम रहा है जहा हर तरह के विरोध को झेलते हुए उन्होंने इस परियोजना को पूरा किया. ये विश्व के कुछ शीर्ष के संग्रहालयों की टक्कर का बना है. निश्चित रूप से प्रधानमंत्री ने इसके बारे में सुना या पढ़ा होगा और वो जब गए तब उन्होंने इसकी प्रशंसा भी की और सुझाव भी दिये. ये एक ऐसा प्रोजेक्ट है जिसको लेकर सुशील मोदी, लालू यादव और जीतन राम मांझी जैसे नीतीश के सहयोगियों ने अपना विरोध निजी बातचीत में या सार्वजनिक रूप से दर्ज कराया लेकिन उसके बावजूद आज कुछ तो ख़ास है कि बिना कार्यक्रम के प्रधानमंत्री इसे देखने की जिज्ञासा रखते हैं और उसे पूरा कर वापस जाते हैं.
अब जो प्रधानमंत्री एक नए बने संग्रहालय की विशेषता की खबरों पर देखने की अपनी इच्छा पूरी कर सकते हैं, उनके पास निश्चित रूप से बिहार के शिक्षा जगत की हर उल्टी-पुल्टी खबर का भी संग्रह होगा. इसी बिहार में रूबी राय नामक छात्रा टॉपर हो जाती है. लाखों की संख्या में छात्र इसलिए फेल कर जाते हैं क्योंकि उन्हें परीक्षा में चोरी करने का मौका नहीं मिलता. और बिहार में जो शिक्षकों का हाल है वो प्राथमिक शिक्षा हो या माध्यमिक या उच्च शिक्षा हो, वहां शिक्षक या तो नहीं हैं और जो हैं उनमे से अधिकांश को खुद पढ़ाई या कहिये शिक्षा की जरूरत है. शिक्षक चाहे कॉलेज के हों या स्कूल में, उनके छुट्टी के आवेदन को ही अगर आप पढ़ना शुरू कर देंगे तब आपको कोई कॉमेडी सीरियल देखने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
बिहार में शिक्षा व्यवस्था को चौपट करने के लिए हालांकि नीतीश कुमार को आप जिम्मेवार नहीं मान सकते. इसके लिए कांग्रेस के डॉ. जगनाथ मिश्रा का नाम सदियों तक लिया जाएगा जिन्होंने ऐसे ऐसे कॉलेज का सरकारीकरण किया जिनके पास कोई इंफ्रास्ट्रक्टर नहीं था. उसके बाद शिक्षकों को जैसे सरकारी पे-रोल पर लिया गया उसका बिहार की वित्त व्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ा. उसके बाद जब लालू यादव का 15 साल तक सत्ता पर कब्ज़ा रहा, उन्होंने विश्वविद्यालय में ऐसे ऐसे प्रतिभाहीन लोगों को शिक्षक नियुक्त किया वो शायद राज्य के किसी भी घोटाले से बड़ा घोटाला है. इसकी जांच नहीं हुई. लेकिन इस घोटाले के साक्ष्य और नमूने आपको बिहार के हर कॉलेज और विश्वविद्यालय में मिल जाएंगे. केवल पूछिए आप किस बैच के हैं, अगर उस शिक्षक ने कहा 1996, तब समझिये प्रतिभा कम, पैरवी और जात का मिश्रण उनकी नियुक्ति का असल कारण रहा है. लेकिन नीतीश जब से सत्ता में आए हैं तब से उन्होंने भी प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में लाखों की संख्या में नियुक्ति की.
बिहार का शिक्षा विभाग पिछले बारह वर्षों से (बीच के 18 महीने को छोड़ दें तो) नीतीश कुमार के पास है. और आज राज्य में शिक्षा व्यवस्था बदहाल है तो उसके लिए कोई बाहरी शक्ति जिम्मेवार नहीं है. अगर शिक्षकों की गुणवत्ता ख़राब है, कॉलेज के पास इंफ्रास्ट्रक्टर नहीं हैं, भवन नहीं हैं, लैब में सामान नहीं हैं तब उसके लिए जिम्मेवारी नीतीश कुमार के ऊपर ही जाएगी. ये सब शिक्षा के वो पहलू हैं जिसपर बिहार सरकार का ध्यान कभी नहीं गया. शिक्षा का मतलब केवल शिक्षकों का वेतन है. उन्हें नियमित वेतन दीजिये. वेतन बढ़ाते रहिये. यही बिहार का शिक्षा जगत हो गया है. लेकिन ये एक तरह से माफिया के चंगुल में है जिसे जड़ से उखाड़ने में नीतीश कुमार के समर्थक भी मानते हैं कि उन्होंने कभी रुचि नहीं दिखाई. इसलिए शिक्षा जगत में हर वर्ष एक नया घोटाला सामने आता है. कुछ दिनों तक ये सुर्खियों में रहता है, जांच के लिए एक विशेष टीम बनती है और कुछ लोगों की गिरफ़्तारी होती है, लेकिन सजा किसी को नहीं होती. इसलिए घोटालों का दौर चलता रहता है.
हालांकि सता में आने के बाद छात्रों को विद्यालय में लाने के लिये नीतीश ने प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर कई क़दम उठाए जिनमें छात्रों को साइकल और यूनिफॉर्म के पैसे दिये गए. वहीं पंचायतों के माध्यम से स्कूल भवन का निर्माण कराया गया. लेकिन उच्च शिक्षा के सुधार के लिए अभी तक उनके पास इच्छाशक्ति का अभाव दिखा है जिसके कारण छात्र पलायन करने को मजबूर हैं.
इन तथ्यों के संदर्भ में अगर प्रधानमंत्री ने नीतीश कुमार के हाथ जोड़ने के बाद भी, पूर्व के गुणवत्ता के तर्क को नजरअंदाज करते हुए केंद्रीय विश्वदियालय का दर्जा नहीं दिया तो उन्होंने एहसान ही किया है. मोदी ने एक तरह से नीतीश कुमार को चुनौती दी है कि आप सत्ता में 12 सालों से रहने के बाद भी शिक्षा व्यवस्था में सुधार नहीं ला पाए. ये मेरी चुनौती है कि सार्वजनिक रूप से मैंने आपकी मांग को ख़ारिज कर दिया. अगर आपमें हिम्मत हो, इच्छाशक्ति हो तब राज्य की शिक्षा व्यवस्था में सुधर लाकर दिखा दीजिये. और मोदी ने नीतीश के उस ऑफर को ठुकरा कर, जिसमें उन्होंने शनिवार को कहा था कि अगर आपने केंद्रीय विश्विद्यालय का दर्जा दे दिया तब आने वाले सौ वर्षों तक आपको याद किया जाएगा, एक तरह से उन्हें रिटर्न ऑफर किया है कि आप अगर बिहार की शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने में कामयाब होते हैं तब आपको भी बिहारी अगले 100 वर्षों तक इस काम के लिए याद रख सकते हैं. या आप कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने नीतीश को जरिया बनाकर सभी बिहारियों के सामने एक चुनौती रखी है कि आप अपने पुराने गौरव को पाने के लिए आगे आएं. रोना बंद कीजिये, याचना करने से उनके शासनकाल में कुछ भी नहीं मिलेगा.
प्रधानमंत्री के तर्कों के समर्थन में ये भी बहस हो रही है कि बिहार में गया और मोतिहारी में केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं. इसके अलावा राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय है. लेकिन इनकी सच्चाई ये है कि अगर ये बने तो इनके पीछे सोच नीतीश कुमार की रही है. हालांकि आज की तारीख़ में ये सब किराये के मकान में चल रहे हैं. इसलिये अगर आप किसी पुराने विश्वविद्यालय को टेकओवर करते हैं तब उसका सार्थक परिणाम जल्द मिलता है.
अब देखना ये है कि क्या नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिहार की शिक्षा, ख़ासकर उच्च शिक्षा को सुधारने की चुनौती को स्वीकार करते हैं या नहीं. क्योंकि अब बिहार के आम लोगों, ख़ासकर छात्रों को कम से कम इस मोर्चे पर प्रधानमंत्री से कोई उम्मीद रखने का सवाल ही नहीं है. उनकी अपेक्षा अपने मुख्यमंत्री से होगी. हालांकि शिक्षा जगत एक काजल की कोठरी है जिसमें हाथ डालने से सब हिचकते हैं. लेकिन जब आपके विरोध में लालू यादव और उनके राजनीतिक शिष्टाचार से कोसों दूर रहने वाले तेजप्रताप यादव और अब तक सोशल मीडिया के माध्यम से राजनीति करने वाले तेजस्वी यादव हों, उसके बावजूद शिक्षा में सुधार के लिये हिम्मत नहीं जुटाएंगे तब ये उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी भूल साबित होगी.
प्रधानमंत्री ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक ही बात साफ़-साफ़ कही हैं, ‘खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले, खुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रजा क्या है.' इसलिये नीतीशजी, आपको और हर बिहारी को प्रधानमंत्री ने एक चुनौती दी है. सुधार कर दिखा दीजिये राज्य की बीमार पड़ी शिक्षा व्यवस्था को. इसलिये उन्होंने हमारे आपके ऊपर एहसान किया है.
मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...
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This Article is From Oct 15, 2017
क्या पीएम मोदी ने नीतीश कुमार की मांग नहीं मानकर बिहारियों पर बड़ा एहसान किया है?
Manish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:अक्टूबर 15, 2017 22:40 pm IST
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Published On अक्टूबर 15, 2017 22:26 pm IST
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Last Updated On अक्टूबर 15, 2017 22:40 pm IST
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