अभी टीम सीख रही है। हमने पिछले दौरों के मुकाबले इस बार काफी सीखा है। हम अब भविष्य की टीम तैयार कर रहे हैं। जब श्रीकांत की कप्तानी वाली टीम 1989 में पाकिस्तान गई और जीत नहीं पाई तब से अब तक तमाम विदेशी दौरों में टीम के खराब प्रदर्शन का यही तर्क रहा है।
हर कप्तान यह कहता रहा कि हम आगे की ओर देख रहे हैं। हम दशकों से यह देख रहे हैं। हालांकि राहुल द्रविड़ ने हमें इंग्लैंड और वेस्ट इंडीज में एक-एक बार टेस्ट सीरीज में जीत दिलाई, लेकिन उसके अलावा हमारे ज्यादातर प्रयास साहसिक ही रहे। खास तौर पर ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका में हम कुल मिलाकर नाकाम ही रहे हैं। सचिन तेंदुलकर ऑस्ट्रेलिया में अच्छा खेलते रहे, लेकिन विदेशी पिचों में लड़ने के दावों के बाद भी सौरव गांगुली विदेशी पिचों पर सीरीज नहीं दिला सके।
हमें यह याद रखना होगा कि सचिन, सौरव, राहुल और वीवीएस लक्ष्मण के दौर में भी हम विदेशों में खासकर भारतीय उपमहादवीप के बाहर 'अच्छा' और दिल जीतने वाला क्रिकेट खेलते रहे और बस एक मैच जीतते रहे। उससे ज्यादा नहीं।
इसलिए, शुक्रवार से शुरू हो रहे तीसरे टेस्ट मैच में युवा कप्तान विराट कोहली की सबसे बडी चुनौती है कि कैसे वह 22 बरस बाद श्रीलंका को उसके घर में हरा पाते हैं। अमित मिश्रा और नमन ओझा जैसे खिलाड़ियों के लिए यहां आर-पार का मामला है। उम्र के इस दौर में इन्हें दूसरा मौका नहीं मिलने वाला। यही बात अब तक खूब परखे गए रोहित शर्मा के बारे में भी कही जा सकती है। यहां तक कुछ समय पहले तक राहुल द्रविड़ के उत्तराधिकारी कहे जा रहे चेतेश्वर पुजारा को भी इस मैच में अपना सब कुछ दांव पर लगना होगा।
हम उम्मीद कर सकते हैं कि युवा खिलाड़ी अपने युवा कप्तान के लिए अपनी सारी प्रतिभा और समर्पण इस मैच में दिखाएंगे और श्रीलंका में 22 साल का सूखा खत्म हो जाएगा।
This Article is From Aug 27, 2015
अभी नहीं तो कभी नहीं, कोहली एंड कंपनी को समझना होगा
Dayashankar Mishra
- ब्लॉग,
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Updated:अगस्त 27, 2015 14:30 pm IST
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Published On अगस्त 27, 2015 11:29 am IST
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Last Updated On अगस्त 27, 2015 14:30 pm IST
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