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This Article is From Aug 09, 2017

क्या कोर्ट राज्यसभा की तीनों सीटों का चुनाव रद्द कर सकती है?

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 09, 2017 20:46 pm IST
    • Published On अगस्त 09, 2017 20:41 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 09, 2017 20:46 pm IST
अदालत में चुनौती मिलने पर गुजरात से राज्य सभा की तीनों सीटों का परिणाम कैसे बदल सकता है- 

चुनाव आयोग ने रिटर्निंग ऑफिसर के फैसले को कैसे बदला-
चुनाव आयोग द्वारा 17 जनवरी, 2007 को जारी दिशा-निर्देश के अनुसार मतगणना की वीडियोग्राफी कराई जाती है. दो विधायकों ने अपना वोट डालते वक्त उसे बीजेपी के प्रतिनिधि को दिखाया, जिस वीडियो के आधार पर कांग्रेस ने चुनाव आयोग में अपील की. कानून के शासन की बार-बार बात करने वाली व्यवस्था में राज्य सभा की एक सीट के लिए 6 केन्द्रीय मंत्रियों और कांग्रेस की पूरी फौज को 6 घंटे में चुनाव आयोग के तीन चक्कर लगाने पड़े. सवाल यह है कि कांग्रेस के पास वीडियो फूटेज कैसे आया. रिटर्निंग ऑफिसर ने कांग्रेस की दरख्वास्त के बावजूद दो वोटों को अवैध घोषित नहीं किया, जो एक कानूनी आदेश था. हरियाणा में सुभाष चन्द्रा मामले के आधार पर गुजरात में भी दो वोट अवश्य अमान्य होने चाहिए परन्तु जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा-80-ए के अनुसार रिटर्निंग ऑफिसर के फैसले को हाईकोर्ट में ही चुनौती दी जा सकती है. चुनाव आयोग द्वारा संविधान के अनुच्छेद-324 के तहत असाधारण अधिकारों का इस्तेमाल करके क्या रिटर्निंग ऑफिसर के फैसले को बदला जा सकता है. यदि हाईकोर्ट ने इस पर रोक नहीं लगाई, तो आने वाले आम चुनावों में चुनाव आयोग का अधिकार क्या और व्यापक नहीं हो जायेगा?  

क्या अहमद पटेल को जीत के लिए 45 वोट चाहिए- 
गुजरात राज्य सभा चुनावों में  में कुल 176 विधायकों ने वोट डाले. अमित शाह और स्मृति ईरानी को 46-46, अहमद पटेल को 44, बलवन्त सिंह राजपूत को 38 वोट मिले तथा 2 वोट चुनाव आयोग ने रद्द कर दिये. नियम के अनुसार अहमद पटेल को जीत के लिए एकचौथाई यानि 44+1 कुल 45 वोट चाहिए थे. दो वोट रद्द होने के बाद कुल 174 विधायकों का एकचैथाई 43.5 होता है. कन्डक्ट ऑफ इलेक्शन रुल्स के नियम-77 के अनुसार वोटों को पूर्णता में बदलना चाहिए. यदि 43.5 को 43 के बजाय 44 वोटों में बदला जाये तो दो वोट रद्द होने के बावजूद अहमद पटेल को जीत के लिए क्या 45 वोट नहीं चाहिए? 

चुनाव की अधिसूचना के बाद व्हिप कैसे जारी हुआ- 
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2006 में कुलदीप नायर मामले में दिये गये फैसले के अनुसार चुनाव आयोग ने दिशा-निर्देश जारी किये हैं, जिसके अनुसार राज्यसभा चुनावों में राजनीतिक दलों द्वारा व्हिप जारी नहीं किया जा सकता. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने नोटा मामले में कांग्रेस की याचिका निरस्त कर दी थी. इसके बावजूद कांग्रेस ने अपने सभी 51 विधायकों तथा एनसीपी ने 2 विधायकों से अहमद पटेल को वोट देने के लिए व्हिप जारी किया गया. संविधान के अनुच्छेद-141 के तहत सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश का कानून बन जाता है. कानून के उल्लघंन के लिए, अहमद पटेल को मिले सभी वोट क्या अदालत द्वारा अमान्य घोषित किये जा सकते हैं? 

विधायकों द्वारा चुनाव से पहले वोट बताने पर, कानून का उल्लंघन- 
व्हिप जारी नहीं करने के बावजूद भाजपा को मालूम था कि उसके 46-46 विधायक अमित शाह और स्मृति ईरानी को वोट देंगे. चुनाव आयोग द्वारा 21 जुलाई को अधिसूचना जारी करने के बाद राज्यसभा चुनावों की प्रक्रिया शुरू हो गई. क्या विधायकों ने नियम-39 के दूसरे भाग के कानूनी प्रावधान का उल्लघंन किया है जिसके अनुसार अधिसूचना जारी होने के बाद मतदान की प्रक्रिया शुरू हो जाती है जिसके दौरान वोटों की गोपनीयता बनाये रखना जरुरी होना चाहिए.

मुख्य सचिव द्वारा हॉर्स ट्रेडिंग पर चुनाव आयोग को रिपोर्ट- 
कांग्रेस ने भाजपा द्वारा प्रत्येक बागी विधायक को 15 करोड़ रुपये देने का आरोप लगाया. दूसरी ओर भाजपा ने अहमद पटेल तथा कर्नाटक के मंत्री पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाये, जिसकी इनकम टैक्स तथा ईडी द्वारा जांच हो रही है. गुजरात में विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप के बाद मुख्य सचिव ने चुनाव आयोग को अपनी गुप्त रिपोर्ट चुनावों के एक दिन पहले सौंपी. आरोपों की पुष्टि होने पर जन-प्रतिनिधित्व कानून की धारा 8-ए के अनुसार भ्रष्ट आचरण के लिए राज्य सभा की तीनों सीटों का चुनाव रद्द होने के साथ दागी विधायकों को सजा हो सकती है. अदालत में विधायकों से शपथ-पत्र के साथ सच का नारको टेस्ट भी कराया जाये, तो क्या नेताओं के भ्रष्ट-तन्त्र को भारत नहीं छोड़ना पड़ेगा?  

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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