पिछले दिनों की कई घटनाओं को जोड़कर, सबक को अंतरिम बजट में लागू किया जाए, तो भारत की तस्वीर बदल सकती है. पहली घटना - दो करोड़ युवाओं को प्रतिवर्ष रोजगार देने में विफल सरकार ने, आर्थिक पैमाने पर आरक्षण का झुनझुना थमा दिया. दूसरी घटना - देश के शीर्ष उद्योगपति मुकेश अंबानी ने डेटा उपनिवेशवाद पर चिंता व्यक्त करते हुए PM नरेंद्र मोदी से गांधी की तर्ज पर राष्ट्रीय आंदोलन शुरू करने की मांग की. तीसरी घटना - ऑक्सफैम की रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में असमानता तीव्र गति से बढ़ रही है और देश में एक फीसदी लोगों के पास 51 फीसदी सम्पत्ति है. चौथी घटना - मोदी सरकार के आखिरी बजट को अंतरिम वित्तमंत्री पीयूष गोयल 1 फरवरी को पेश करेंगे. अंतरिम बजट में इन 10-सूत्रों की थीम को लागू करके गोयल, भारत को आर्थिक महाशक्ति और विश्वगुरु बनाने का स्थायी मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं.
स्वराज, स्वदेशी और मेक-इन-इंडिया : तिलक के स्वराज और गांधी के स्वदेशी की तर्ज पर मोदी सरकार का मेक-इन-इंडिया कार्यक्रम,एक अच्छा नारा है, पर हकीकत में इसके लिए सही प्रयास नहीं हो रहे. यूरोपीय उपनिवेशवाद के दौर में भारत से कच्चा माल इंग्लैण्ड जाता था और भारत उनकी कम्पनियों के लिए एक बड़ा बाजार था. और अब डिजिटल इंडिया के दौर में इंटरनेट और स्मार्टफोनों के माध्यम से भारत का सरकारी और निजी डेटा विदेशों में जाने के दौर को डेटा उपनिवेशवाद माना जा रहा है. नव उपनिवेशवाद के इस कुत्सित तन्त्र को तोड़ने के लिए बजट में प्रावधान होने चाहिए.
तेल जैसे बहुमूल्य डेटा को सरकार क्यों समझे बेकार : ई-कामर्स, सोशल मीडिया और पेमेंट बैंकों के माध्यम से भारतीयों का डेटा विदेश जा रहा है और अब विदेशी कम्पनियों की निगाह आधार डेटा की सेंधमारी पर लगी है. व्यक्ति का निजी डेटा भले ही बेकार दिखता हो,पर 127 करोड़ की आबादी वाले देश में समूहों का डेटा नए जमाने का तेल है. सरकार के आखिरी बजट में इस पहलू को नज़रअंदाज करना, अर्थव्यस्था की सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है.
भारतीय सर्वर में हो भारत का डेटा : ईस्ट इण्डिया कम्पनी की तर्ज पर विदेशी इंटरनेट कम्पनियां भारतीयों के डेटा की बन्दरबांट कर रही हैं, जिसको डिजिटल इंडिया का पर्याय बताने की नादानी हो रही है. रिजर्व बैंक द्वारा डेटा के स्थानीयकरण के बारे में अप्रैल, 2018 में नियम बनाए गए हैं, जिन्हें इंटरनेट लॉबी के दबाव की वजह से लागू नहीं किया जा रहा है. भारत में डेटा स्टोर करने का नियम बनने पर प्रति सर्वर औसतन 1,000 युवा और सामूहिक तौर पर लाखों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा.
भारतीय दफ्तर को मिले कानूनी मान्यता : इंटरनेट, ई-कॉमर्स और सोशल मीडिया की अधिकांश कम्पनियों का मुख्यालय अमेरिका में और वित्तीय कार्यालय आयरलैंड जैसे टैक्स हैवन में स्थित है. इन कम्पनियों द्वारा भारत में 100 फीसदी सहायक कम्पनियां खोलने के बावजूद नौकरशाही द्वारा उन्हें भारतीय ऑफिस के तौर पर नहीं माना जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. इस बारे में कानूनी स्पष्टता लाने के लिए वित्त विधेयक के माध्यम से सरकार को ज़रूरी बदलाव करना चाहिए.
भारत में शिकायत अधिकारी की नियुक्ति : आईटी एक्ट और 2011 के नियमों के अनुसार प्रत्येक इंटरनेट कम्पनी द्वारा शिकायत अधिकारी की नियुक्ति करना ज़रूरी है और इसके लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने अगस्त, 2013 में सरकार को आदेश भी दिया था. केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के निर्देश को दरकिनार करके व्हॉट्सऐप ने भी भारतीय कारोबार के लिए शिकायत अधिकारी को अमेरिका में बैठा दिया है. बजट सत्र में इस बारे में कानूनी बदलाव होना ज़रूरी है.
डेटा सुरक्षा कानून जल्द पारित हो : सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों ने सामूहिक सहमति से प्राइवेसी और डेटा सुरक्षा के बारे में दो वर्ष पहले ऐतिहासिक निर्णय दिया था. पूर्ववर्ती UPA सरकार के दौर में जस्टिस एपी शाह कमेटी और अब NDA के दौर में जस्टिस श्रीकृष्णा कमेटी ने डेटा सुरक्षा के बारे में विस्तृत अनुशंसा की है. आरक्षण और तीन तलाक पर तुरन्त कानून बनाने वाली सरकार, डेटा की सुरक्षा और इस पर टैक्स की व्यवस्था बनाकर डिजिटल क्रान्ति को सही अर्थों में सुनिश्चित कर सकती है.
इनकम टैक्स और GST कानून में बदलाव हो : गोविन्दाचार्य की याचिका के बाद सरकार ने इंटरनेट कम्पनियों पर 6 फीसदी का गूगल टैक्स लगाया था पर उसके बाद गाड़ी फिर से ठप हो गई. डेटा के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कारोबार और ट्रांसफर पर GST का कानून लागू कर दिया जाए तो डेटा सुरक्षा के साथ खरबों डॉलर की टैक्स आमदनी भी होगी. विदेशी इंटरनेट कम्पनियों के भारतीय ऑफिस को इनकम टैक्स कानून के तहत परमानेंट एस्टैबलिशमेंट के तौर पर मान्यता दिए जाने का कानून बनाए जाने से देश को पांच लाख करोड़ से ज्यादा की टैक्स आमदनी हो सकती है.
डिजिटल इंडिया में बढ़ती असमानता पर ऑक्सफैम की रिपोर्ट : सुप्रीम कोर्ट के जज संजय किशन कौल ने प्राइवेसी के ऐतिहासिक जजमेंट में कहा था कि उबर के पास टैक्सी नहीं, अलीबाबा के पास माल नहीं और फेसबुक के पास कंटेन्ट नहीं है, फिर भी वे विश्व की सबसे धनी कम्पनियां हैं. डिजिटल इंडिया के डेटा को विदेश ले जाकर उसके गैरकानूनी कारोबार से इन कम्पनियों की समृद्धि बढ़ रही है, पर भारत गरीब होता जा रहा है. डेटा के कारोबार में टैक्स से भारत में निवेश और व्यापार में बढ़ोतरी होगी, जिससे आर्थिक और सामाजिक असमानता कम हो सकेगी, जो सरकार का संवैधानिक उत्तरदायित्व भी है.
गांधी की 150वीं जयन्ती और विश्वगुरु का सपना : सोने की चिड़िया सा मजबूत भारत, विदेशी डिजिटल के प्लास्टिक मनी के पंखों से विश्वगुरु की ऊंची उड़ान कैसे भरेगा...? गांधी की 150वीं जयन्ती पर विश्वगुरु और आर्थिक महाशक्ति बनने के स्वप्न को साकार करने के लिए भारत का डेटा भारतीय सर्वर में आन्दोलन हेतु बजटीय प्रावधान होने चाहिए.
अमेरिकी दबाव, इंटरनेट लॉबी से भारतीय लोकतन्त्र को बचाएं : गूगल द्वारा सालाना 23 मिलियन डॉलर और फेसबुक द्वारा 13 मिलियन डॉलर सिर्फ अमेरिका में लॉबीइंग हेतु खर्च किए जा रहे हैं. इंटरनेट कम्पनियां द्वारा अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों के साथ भारतीयों का बहुमूल्य डेटा साझा करने के साथ भारतीय चुनावों में दखलअंदाजी भी की जाती है. बेपेंदी की FDI और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की मनमौजी इन्डैक्स के नारों के साथ यदि विदेशी कम्पनियों से कानूनों के पालन की व्यवस्था बने, तो मेक इन इंडिया सही अर्थों में सफल होगा. बायब्रेण्ट इनवेस्टर्स मीट और ऊंची मूर्तियों की स्थापना करवाने के साथ PM मोदी को पटेल जैसी दृढ़ता से विदेशी कम्पनियों पर नकेल अब कसनी चाहिए, तभी डेटा के खेल में भारत को तेल का बोनस मिलेगा.
विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...
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