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This Article is From Jan 22, 2016

बजट : 'सबका साथ, सबका विकास' और निवेशकों से वादों की चुनौती

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 28, 2016 13:05 pm IST
    • Published On जनवरी 22, 2016 12:44 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 28, 2016 13:05 pm IST
अंतरराष्ट्रीय मंदी का संकट तथा शेयर बाजार की लगातार गिरावट के बीच वित्त मंत्री अरुण जेटली को सिंगापुर तथा दावोस में निवेशकों को भारत की ग्रोथ स्टोरी के लिए आश्वस्त करना पड़ रहा है, जिनके लिए उन्हें आगामी बजट में प्रावधान भी सुनिश्चित करने होंगे। सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय दबाव के आधार पर बनाए जाने वाले बजट से भाजपा के 'सबका साथ, सबका विकास' का वादा कैसे पूरा होगा यही अंतर्विरोध सबसे बड़ी चुनौती है।

गरीबी और असमानता को दर्शाती ऑक्सफैम की रिपोर्ट
दावोस में विश्व आर्थिक मंच की बैठक से एक दिन पहले अन्तरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफैम द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत की कुल संपत्ति का 53 फीसदी हिस्सा महज एक फीसदी लोगों के पास है जिसकी वजह से दुनिया के 20.5 फीसदी गरीब भारत में हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 1991 में शुरू हुए आर्थिक सुधारों के बाद भारत में अमीरों की संपत्ति 1100 गुना बढ़ी है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत अभी भी नीचे के तीन पायदान में है। चीन की बंद इकानॉमी होने से भारत विश्व का सबसे बड़ा बाजार है, जो उदारवाद की आड़ में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की टैक्स चोरी का केंद्र बन गया है। ऑक्सफैम के अनुसार इन कंपनियों द्वारा 509 लाख करोड़ रुपए से अधिक का पैसा टैक्स हैवन देशों में जमा किया गया है जो भारत में गरीबी और असमानता का प्रमुख कारण है। क्या आगामी बजट में टैक्स ढांचे की ये विफलताएं खत्म हो सकेंगी-
  • जहां अमेरिका द्वारा अमीरों पर अतिरिक्त टैक्स की बात हो रही है, वहीं भारत में एफआईआई से 42 हजार करोड़ रुपए से अधिक की टैक्स वसूली क्यों माफ की जा रही है?
  • इंटरनेट से व्यापार के दौर में ई-कॉमर्स कंपनियों की आमदनी पर इंकम टैक्स वसूली के लिए सख्त प्रावधान क्यों नहीं किए जा रहे?
  • भारत में हो रहे व्यापार पर सर्विस टैक्स के भुगतान की जवाबदेही विदेशी कंपनियों (जैसे टैक्सी कंपनी- उबर) द्वारा क्यों नहीं पूरी की जा रही?
विकास, रोजगार तथा महंगाई की चुनौती
वर्ल्ड इकोनॉमी फोरम के आंकलन के अनुसार चीन की मंदी तथा तेल के संकट से विश्व में संकट के बादल छाए रहेंगे। सबको रोजगार के वादे को पूरा करने के लिए आगामी बजट में निम्न चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा-
  • विश्व बैंक की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार इंटरनेट कंपनियां अपेक्षित रोजगार उत्पन्न करने में विफल रही हैं, तो फिर मोदी सरकार डिजिटल इंडिया केंद्रित कार्यक्रमों के बूते 10 करोड़ से अधिक बेरोजगार नौजवानों को रोजगार कैसे दे पाएगी?
  • बहुप्रचारित स्टार्टअप इंडिया के लिए टैक्सों में असाधारण छूट देने वाली सरकार, करोड़ों लोगों को रोजगार देने वाले बदहाल लघु उद्योगों की बहाली के लिए क्या प्रयास कर रही है?
  • अंतरराष्ट्रीय जगत में तेल की घटती कीमतों का लाभ भारतीय जनता को नहीं मिला। उसी तरह जीएसटी लागू होने पर लाभ बड़े व्यापारी को मिलेगा और जनता के हिस्से में महंगाई आएगी। ऐसे में राज्यों के साथ समन्वय करके ठोस प्रावधान करने होंगे।
काले धन की चुनौती
चुनाव के पहले हर भारतीय को 15 लाख रुपये का वादा करने वाली सरकार बजट में काले धन की समस्या को कम करने के लिए क्या ये शुरुआत करेगी-
  • सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त टीम के आंकलन के अनुसार शेयर बाजार काले धन का सबसे बड़ा माध्यम है। इसकी जड़ मारीशस के टैक्स फ्री रूट को बंद करने की बजाय सरकार द्वारा अमेरिकी रूट को भी टैक्स बेनेफिट देने के सुझावों से यह समस्या विकराल होगी। छोटे रेहड़ी वालों से छोटे-छोटे विवरण लेने वाली सरकार अंतरराष्ट्रीय निवेशकों से केवाईसी का पालन क्यों नहीं कराती?  
  • काले धन पर गठित समिति के अनुसार क्रिकेट गैर-कानूनी व्यापार का संगटित गठजोड़ है, जिसकी पुष्टि ललित मोदी के आरोपों से होती है। क्रिकेट की अर्थव्यवस्था में नेताओं के भ्रष्ट तंत्र को खत्म करने के लिए बीसीसीआई, डीडीसीए तथा अन्य क्रिकेट संघों को दी गई टैक्स छूट को वापस क्यों नहीं लिया जाना चाहिए?
  • लोकतंत्र के शुद्धिकरण के लिए राजनीतिक दलों की आमदनी और खर्चों में चेक की अनिवार्यता और टैक्स छूट वापस लेने से न सिर्फ चुनाव सुधार वरन राजनीति के अपराधीकरण पर लगाम लगेगी।
बदहाल खेती और किसानों की आत्महत्या
भूमि अधिग्रहण पर राजनीति होती है और कल्याण योजनाएं भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाती हैं। इस बजट में क्या किसानों तथा गांवों के विकास के लिए निम्न ठोस प्रावधान हो पाएंगे-
  • स्मार्ट सिटी पर बड़े निवेश की तरह आत्मनिर्भर गांवों के लिए भी प्रावधान किए जाएं।
  • बुलेट ट्रेन में बड़े निवेश के साथ बैलगाड़ी-हल-सिंचाई में सुधार के लाभों को खेतों तक पहुंचाने के लिए प्रावधान होने चाहिए।

बैंकिंग और अन्य संस्थागत सुधार
निम्न संस्थागत सुधारों से बजट का लाभ जनता तक पहुंचाया जा सकता है-
  • रिजर्व बैंक के गर्वनर द्वारा चिंता व्यक्त करने के बावजूद, उद्योगपतियों से लाखों करोड़ के एनपीए की वसूली की बजाय, सरकार बैंकों में नई पूंजी क्यों डाल रही है?
  • योजना आयोग का नाम बदल कर नीति आयोग तो हो गया है, पर उसकी भूमिका स्पष्ट नहीं है जिससे केंद्र-राज्य आर्थिक संबंधों और कार्यक्रमों का क्रियान्वयन प्रभावित हो रहा है।
  • सरकार का अधिकांश पैसा अधिकारियों के वेतन भत्ते तथा पेंशन में खर्च हो जाता है। यदि 7वें वेतन आयोग की रिपोर्ट को लागू किया गया, तो केंद्र-राज्य सरकार पर लाखों करोड़ का अतिरिक्त बोझ आएगा।
आखिर 30 करोड़ से अधिक गरीबों वाले देश में सांसद, विधायक और अफसर जिम्मेदारी निभाए बगैर अपनी आमदनी को विश्वस्तर पर सुनिश्चित कर जनता को बजट के वायदों का झुनझुना क्यों थमा देते हैं?  
(अगली कड़ी में पढ़िए “बजट- क्या है और कैसे जनता को प्रभावित करता है)

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और टैक्स मामलों के विशेषज्ञ हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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