नोटबंदी के असर से परेशां अर्थव्यवस्था व आम आदमी, बजट में चाहिए राहत

नोटबंदी के असर से परेशां अर्थव्यवस्था व आम आदमी, बजट में चाहिए राहत

बजट 2017 : आम बजट से किसे क्या चाहिए... (प्रतीकात्मक फोटो)

केंद्रीय बजट क्या होगा, इसका सीधा असर हमारे-आपके घरेलू बजट पर पड़ता है. इस बार आम बजट पर आम आदमी से लेकर उद्योग जगत की पेशानी पर हर बार के मुकाबले कुछ अधिक बल हैं. दरअसल, इसकी वजह सरकार द्वारा पिछले कुछ समय में लिए गए गंभीर और बड़े कदम हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवंबर 2016 को 500 रुपए और 1000 रुपए के नोटों को अमान्य घोषित करने (विमुद्रीकरण) के ऐलान के बाद से लेकर जो आपाधापी शुरू हुई है, वह अभी तक जारी है. नोट बैन ने न सिर्फ आम आदमी पर असर डाला बल्कि देश की अर्थव्यवस्था की पटरी को भी हिलाकर रख दिया है. जाहिर है कि बजट 2017 में मोदी सरकार का फोकस आमजन को राहत देने और भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अपेक्षाकृत सुस्त होने के अनुमान को पाटने पर होगा.

किन्तु, आम व्यक्ति की बात करें तो वह देश की अर्थव्यवस्था से पहले अपनी 'अर्थव्यवस्था' दुरुस्त करना चाहता है. यह चाहना गलत भी नहीं... यह बात और है कि दोनों इंटरलिंक्ड ही हैं. तमाम टैक्स देकर एक आम इंसान सरकार के खजाने में कंट्रीब्यूट करता है और बदले में चाहता है कि सरकार उसके हितार्थ फैसले ले. कल्याणकारी राज्य का गठन ही इस परिपाटी पर किया गया. इस बजट से सैलरी क्लास के लोग उम्मीद कर रहे हैं कि इनकम टैक्स छूट का दायरा बढ़े और टेक होम सैलरी में इजाफा हो. फिलहाल इनकम टैक्स स्लैब चार हिस्सों में तय है. इसके तहत 2,50,000 रुपए तक की आय पूरी तरह से आयकर छूट के दायरे में आती है. जिन लोगों की सालाना आय ढाई लाख रुपए से ऊपर है लेकिन 5,00,000 रुपए से कम है, उन पर 10 फीसदी आयकर लगता है. पांच लाख रुपए से 10,00,000 रुपए तक की सालाना आय पर 20 फीसदी आयकर जबकि जिनकी सालाना आय 10 लाख रुपए से ज्यादा है, उन्हें 30 फीसदी टैक्स देना होता है.

वित्त राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल कह चुके हैं कि आगामी बजट में आयकर की दर में कमी आने की संभावना है. वहीं खुद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी इस बाबत संकेत दे दिए थे. इधर रिपोर्ट्स भी यही कह रही हैं. ऐसे में लंबे समय से चली आ रही मांग के मुताबिक, हो सकता है केंद्र सरकार टैक्स छूट की सीमा को ढाई लाख से बढ़ाकर चार लाख रुपए कर दे. इसका अर्थ हुआ कि जिन लोगों की सालाना आया 4 लाख रु. तक होगी, वे किसी भी प्रकार के इनकम टैक्स से बच जाएंगे.

मोदी सरकार अपने खुद के कारोबार- एसएमई सेक्टर, स्टार्टअप पर अधिक जोर दे रही है. स्टार्टअप कंपनियों को बजट में अतिरिक्त कर लाभ दिए जाने की संभावना का संकेत भी दिया गया है. स्टार्टअप्स के लिए टैक्स वेकेशन यानी कर अवकाश को मौजूदा के तीन साल से बढ़ाकर सात करने की मांग की गई है जिसे मंजूरी दी जा सकती है. वहीं, स्टार्टअप्स को न्यूनतम वैकल्पिक कर (जिसे मैट कहा जाता है) में भी छूट दी जा सकती है. इसके अलावा सरकार कॉरपोरेट कर की दर को 30 से घटाकर 25 प्रतिशत करने की घोषणा भी कर सकती है.

इंडस्ट्री के जानकार कहते हैं कि नोटबंदी का फैसला लॉन्ग टर्म में देश की इकोनॉमी और मुद्रास्फीति के लिए फायदे का सौदा साबित होगा. इस लॉन्ग टर्म की मियाद मोटामोटी तौर पर 2 साल बताई जा रही है. पिछले कुछ हफ्तों में इंटरनेशनल रेटिंग एजेंसीज़ भी अर्थव्यवस्था को लेकर निराशाजनक रेटिंग दे रही हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) ने भी इस साल भारत की विकास दर 6.6 फ़ीसदी रहने का अनुमान लगाया है जोकि पिछले साल की विकास दर 7.6 फ़ीसदी से 1 फ़ीसदी कम है. विकास दर के अनुमान पर नोटबंदी का असर बताया जा रहा है. हालांकि यह उम्मीद जताई है कि अगले दो साल में भारत की अर्थव्यवस्था दोबारा पटरी पर लौट आएगी. नोटबंदी के अतिरिक्त सरकार की ओर से दूसरा बड़ा फैसला जो मौजूदा वित्तीय वर्ष में लिया गया वह है जीएसटी के लिए रास्ता साफ करना. बहुत-से अलग-अलग केंद्रीय और राज्य स्तर पर लगाए जाने वाले करों को खत्म करने वाले और राष्ट्रीय स्तर पर लागू होने वाले गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स (वस्तु एवं सेवा कर, GST) को 1 जुलाई 2017 से लागू कर दिया जाएगा. पहले इसे 1 अप्रैल को लागू करना था लेकिन केंद्र और राज्यों के बीच टैक्सेशन से जुड़े अधिकारों को लेकर विवाद नहीं सुलट पाने के कारण तारीख बढ़ाई गई.

चलते चलते बता दें कि इस बार बजट वैसे भी दो कारणों से याद किया जाएगा- पहला, यह ब्रिटिशकालीन परंपरा से इतर इस साल 1 फरवरी को पेश होने जा रहा है. हर साल यह फरवरी के आखिरी दिन पेश होता था. दूसरा, रेल बजट को आम बजट का हिस्सा बना दिया गया है. अब रेल बजट अलग से पेश नहीं किया जाएगा.


पूजा प्रसाद khabar.ndtv.com में बतौर डीएनई कार्यरत हैं.

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