90 के दशक के अंत में भारतीय राजनीति में गठबंधन की राजनीति का दौर पुख़्ता तौर पर आ चुका था, लेकिन फिर भी बीजेपी के लिए अटल बिहारी वाजपेयी की मौजूदगी के बावजूद सहयोगियों की कमी थी। यही वजह थी कि वाजपेयी और आडवाणी दोनों लगातार उस समय में ये अपील करते थे कि बीजेपी बाकी पार्टियों के लिए अछूती क्यों है?
सहयोगियों के न मिल पाने की वजह से वाजपेयी की 13 दिन की सरकार गिर गई थी, लेकिन फिर राजनीति बदली और बीजेपी की तकदीर भी और एक ऐसा समय आया जब अटल बिहारी वाजपेयी ग़ैर-कांग्रेस राजनीति के सर्वमान्य चेहरा बन गए। एक समय में उनके एनडीए में 24 पार्टियां शामिल थीं। लेकिन क्या आज नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार उस समय को भूल गई है, जब ये कहा जाता था कि वाजपेयी में ऐसी काबिलियत है कि वह सबको साथ लेकर चलते हैं।
आज मोदी के अपने बहुमत के बाद सहयोगी दल उनसे खुश नहीं नज़र आते। महाराष्ट्र में तो नौबत ये आई कि बीजेपी और शिवसेना ने, जो एनडीए की सबसे पुरानी साथी है, चुनाव अलग-अलग लड़ा और सरकार बनने के बाद साथ आए। भारतीय राजनीति में एक ही पार्टी के बहुमत का समय बहुत सालों बाद आया है। लेकिन ये भी हक़ीकत है कि सियासत गठबंधनों के राज की है और ये वह कड़वा सबक है जो ना चाहते हुए भी कांग्रेस ने सीखा और यूपीए बनाई, इसलिए आज की बीजेपी को खुद वाजपेयी के समय से और कांग्रेस के समय से सबक लेना चाहिए। गठबंधनों की सरकार चलाना कोई आसान खेल नहीं है।
(अभिज्ञान प्रकाश एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एक्जीक्यूटिव एडिटर हैं)
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This Article is From Feb 10, 2016
वाजपेयी और कांग्रेस के दौर से सबक सीखे बीजेपी
Abhigyan Prakash
- ब्लॉग,
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Updated:फ़रवरी 10, 2016 20:55 pm IST
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Published On फ़रवरी 10, 2016 20:48 pm IST
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Last Updated On फ़रवरी 10, 2016 20:55 pm IST
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