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This Article is From Jan 28, 2016

आखिरकार अखिलेश यादव बन ही गए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री...

Nelanshu Shukla
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 28, 2016 15:55 pm IST
    • Published On जनवरी 28, 2016 15:44 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 28, 2016 15:55 pm IST
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को सत्ता में आए लगभग चार साल हो गए हैं, लेकिन धीरे-धीरे अब यह साफ हो पाया है कि अखिलेश यादव ही राज्य के मुख्यमंत्री हैं। वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में जब सपा ने बहुमत से सरकार बनाई थी, तो इसका सीधा श्रेय पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश यादव को दिया गया। इसका फल भी पिता ने उन्हें दिया और वह 15 मार्च, 2012 को प्रदेश के 20वें मुख्यमंत्री बन गए।

अखिलेश यादव ने जब शपथ ली थी तो वह उस समय देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री थे। लोगों को यह उम्मीद थी की जिस तरह चुनाव प्रचार में अखिलेश ने आत्मविश्वास और युवा शक्ति का प्रदर्शन किया था, उसी युवा सोच और तत्परता के साथ वह प्रदेश को तरक्की के रास्ते पर ले जाएंगे, लेकिन सरकार बनने के कुछ ही महीने बाद लोगों की उम्मीदें टूटती नज़र आईं।

देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवारों में शुमार किए जाने वाले 'यादव परिवार' के कई और सदस्य भी मंत्रिमंडल में शामिल हुए, जिन्होंने मनमाफिक ही काम किया। मुलायम के छोटे भाई शिवपाल यादव को सिंचाई, पीडब्ल्यूडी समेत कई महत्त्वपूर्ण विभाग मिले और कहा जाता है कि अखिलेश यादव ने कभी उनके विभागों के कामों में दखलअंदाज़ी नहीं की। इसके अलावा रामगोपाल यादव ने पार्टी और प्रदेश के अहम फैसलों में हस्तक्षेप किया और उनके अलावा मुलायम के अन्य करीबी लोगों, जिन्हें सरकार बनते ही मंत्रिमंडल में शामिल किया गया, ने भी मनमानी ही की। वोट बैंक के लिए प्रदेश के सबसे बड़े बाहुबली राजा भैया को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। पार्टी के मुस्लिम चेहरे आज़म खान ने कई विवादास्पद बयान दिए और कई बार मुलायम और अखिलेश को भी निशाने पर लिया।

मुलायम ने भी कई बार सावर्जनिक रूप से अखिलेश की कार्यशैली पर सवाल उठाए और उनकी सरकार के खिलाफ नाराज़गी व्यक्त की। जब उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में सांप्रदायिक हिंसा हुई तो उसमे बीजेपी नेताओं के साथ आज़म खान का भी नाम दंगा भड़काने में सामने आया, लेकिन प्रदेश सरकार उन्हें बचाने में ही लगी रही। पार्टी नेता हों या सरकारी अफ़सर, सबने मन-मुताबिक काम किया, जिससे यूपी में नेतृत्व की कमी लगने लगी। प्रदेश में विकास की जगह सांप्रदायिक मामले बढ़े और मुख्यमंत्री कानून व्यवस्था को सुधारने में नाकाम साबित हुए। इसके बाद लोगों ने कहना शुरू कर दिया की यूपी में चार-पांच मुख्यमंत्री हैं। कई लोगों ने यहां तक कहा कि अखिलेश केवल चेहरा हैं और मुलायम की मंज़ूरी के बिना प्रदेश में कोई काम नहीं होता। किसी ने कहा कि सरकार शिवपाल चलाते हैं, तो किसी ने कहा, आज़म खान। प्रदेश में कई ऐसे मामले हुए, जिनमें सरकार और प्रशासन की कारगुज़ारी साफ़ नज़र आई, लेकिन अखिलेश मूकदर्शक बने बैठे रहे।

इसका खामियाज़ा सपा को लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ा। पार्टी को चुनाव में खाली पांच सीटें मिलीं और मुलायम और उनके परिवार को छोड़कर पार्टी के हर उम्मीदवार को बुरी तरह शिकस्त मिली। इस हार का ठीकरा अखिलेश यादव के कमज़ोर नेतृत्व पर फोड़ा गया, लेकिन फिर समय बदला और अखिलेश यादव की कार्यशैली भी।

हाल ही में मुलायम सिंह ने अखिलेश के तीन करीबी नेताओं को पार्टी विरोधी गतिविधियों की वजह से निकाल दिया था। अपने चहेते सुनील सिंह साजन, आनंद भदौरिया और सुबोध यादव के निकाले जाने से नाराज़ अखिलेश ने पिछले साल 26 दिसंबर से शुरू हुए सैफई महोत्सव का बहिष्कार कर इसे प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया था। यह पहला मौका था, जब अखिलेश ने खुलकर पार्टी और अपने पिता के खिलाफ बगावत की। पांच दिन बाद जब अखिलेश सैफई गए तो कयास लगाया गया कि उनके करीबियों की वापसी पर पिता-पुत्र में समझौता हो गया है और वैसा ही हुआ। मुलायम सिंह को सुनील सिंह, सुबोध यादव और आनंद भदौरिया को पार्टी में वापस लेना पड़ा। इससे पहले जब प्रदेश में मंत्रिमंडल में फेरबदल हुआ तो मुलायम के कई करीबी मंत्रियों के पर कतरे गए या उन्हें हटा दिया गया और उनकी जगह सीएम ने अपने लोगों को शामिल किया। मुख्यमंत्री ने हाल ही में 72 लोगों को हटाया, जो विभिन्न विभागों के चेयरमैन थे और उन्हें राज्यमंत्री का दर्ज़ा प्राप्त था।

एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में बीते एक साल में आर्थिक तरक्की काफी तेज़ी से हुई है। इसके अलावा बिजली और सड़क निर्माण कार्य भी काफी तेज़ी से कराया जा रहा है। अखिलेश सरकार के नेतृत्व पर भले ही सवाल उठते रहे हों, लेकिन इस सरकार पर अभी तक भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा है। यूपी में टेक्नोलॉजी और यूथ प्रमोशन को लेकर भी काफी काम हो रहा है। अखिलेश अब बेहद सजग लग रहे हैं और प्रदेश के विकास के लिए लाई गई विभिन्न योजनाओं को खुद लीड कर रहे हैं।

यूपी में अगले साल चुनाव हैं और इसके चलते प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जनता से संवाद भी बढ़ा दिया है। रोज़ाना वह किसी ने किसी योजना का उद्घाटन करते हैं और जनता के बीच बने रहने की कोशिश करते हैं। सोशल मीडिया पर भी सीएम बेहद एक्टिव रहते हैं और पार्टी और सरकार की उपलब्धियों का ज़ोर-शोर से प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। अखिलेश यादव की वजह से पार्टी में लाखों युवा कार्यकर्ता भी जुड़े हैं, जिसका फायदा आने वाले चुनाव में सपा को मिल सकता हैं। पार्टी का थीम सॉन्ग भी "मन से मुलायम" से बदलकर "कहो दिल से, अखिलेश फिर से" हो गया है, जिससे ज़ाहिर होता है कि 2017 का चुनाव मुलायम नहीं, बल्कि अखिलेश के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। अब साफ है कि कहीं न कहीं अखिलेश ने पार्टी में अपना कद पा लिया है, और प्रदेश के लोगों को मुख्यमंत्री मिल गया है।

लेकिन अखिलेश यादव ने देर कर दी है या सही समय पर उन्होंने कमान संभाली है, इसका जवाब तो जनता उन्हें 2017 के चुनाव में ही देगी।

नीलांशु शुक्ला NDTV 24x7 में ओबी कन्ट्रोलर हैं...

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