विज्ञापन
This Article is From May 23, 2018

पेट्रोल डीजल के बाद अब लग सकता है बिजली के बढ़े दामों का झटका

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 23, 2018 20:03 pm IST
    • Published On मई 23, 2018 20:03 pm IST
    • Last Updated On मई 23, 2018 20:03 pm IST
अगर आप सिर्फ पेट्रोल-डीज़ल के बढ़े दामों से ही परेशान हैं तो आपको एक और झटका भी लग सकता है. यह झटका है बिजली का जिसके दाम लगातार बढ़ रहे हैं. गर्मी के मौसम में बढ़ती मांग, कोयले की कम आपूर्ति और पश्चिमी भारत से उत्तरी राज्यों को बिजली भेजने वाली एक महत्वपूर्ण ट्रांसमिशन लाइन के टूटने से बिजली की कीमतों में बढोतरी हो रही है.

'द इकॉनामिक टाइम्स' के मुताबिक इंडियन एनर्जी एक्सचेंज में बिजली की कीमत दो साल में सबसे ज्यादा छह रुपये 20 पैसे प्रति यूनिट हो गई. उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में सोमवार को कीमत आठ रुपये प्रति यूनिट तक हो गई थी जो मंगलवार को 7 रुपये 43 पैसे रही. सिर्फ हफ्ते भर में एक्सचेंज पर बिजली की कीमत दो रुपये प्रति यूनिट बढ़ी है. गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु की डिस्ट्रीब्यूशन फर्म बिजली की कमी को पूरा करने के लिए सीधी स्पॉट मार्केट से बिजली खरीदती है. अगर वे महंगी बिजली खरीदेंगे तो तो बिजली की कीमतें बढ़ाकर ग्राहकों पर बोझ डाल सकते हैं. कोयले से बिजली बनाने वाले तापघरों में कोयले की उपलब्धता पर केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण नजर रखता है. उसके मुताबिक 21 मई को देश के 114 में से 22 थर्मल पॉवर प्लांट में कोयले का भंडार सुपर क्रिटिकल या क्रिटकल लेवल पर था. मतलब है कि छह थर्मल पॉवर प्लांट में 7 दिन का कोयले का स्टॉक है, जबकि 16 में  सिर्फ चार दिन का. इनमें 9 पॉवर प्लांट उत्तर में हैं, जबकि 13 पश्चिम भारत में.

अब बात करते हैं पेट्रोल और डीजल की. कर्नाटक चुनाव खत्म होने के बाद लगातार दसवें दिन भी पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने का सिलसिला जारी है. दिल्ली में पेट्रोल तीस पैसे बढ़कर 77 रुपये 17 पैसे हो गया जो दिल्ली के इतिहास में सबसे ज्यादा है. मुंबई में 85 रुपये से सिर्फ एक पैसे कम यानी 84 रुपए 99 पैसे हो गया. आज कैबिनेट की बैठक हुई. इसके बाद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार को इसकी चिंता है. उन्होंने कहा कि सरकार इस पर दूरगामी असर होने वाला फैसला करेगी.

वैसे सरकार कहती है कि टैक्स से जो पैसा मिलता है वो जनता की भलाई के काम में खर्च होता है. उनसे राजमार्ग, एक्सप्रेसवे और एम्स बनते हैं. आपको बता दूं कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों में चालीस फीसदी हिस्सा टैक्स का है. यह अलग बात है कि तेल कंपनियां मुनाफे में चल रही हैं. जैसे इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने कल ही अपने चौथी तिमाही के नतीजे घोषित किए. पिछली चौथी तिमाही के मुकाबले मुनाफे में चालीस फीसदी की बढोतरी हुई और यह 5218 करोड़ रुपये हो गया. पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आज एक के बाद एक धड़ल्ले से हिन्दी में ट्वीट किए. वो कह रहे हैं कि सरकार को हर लीटर पेट्रोल पर 25 रुपए का मुनाफा मिलता है. ऐसे में पेट्रोल कीमतों में 25 रुपये प्रति लीटर की कटौती संभव है, लेकिन सरकार एक या दो रुपये की कटौती कर जनता की आंखों में धूल झोंकने का प्रयास करेगी.

सरकार हर बार अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के बढे दामों का हवाला देती है, लेकिन जब वहां कच्चे तेल के दाम कम होते हैं तब हमारी सरकार क्या करती है. आइए इसे भी समझने की कोशिश करते हैं. मोदी सरकार चार साल पहले 26 मई 2014 को बनी. इसने पहली बार एक्साइज़ ड्यूटी 12 नवंबर 2014 को बढ़ाई. यह पेट्रोल और डीजल पर डेढ़-डेढ़ रुपये बढ़ाई गई. तब ब्रेंट क्रूड की कीमत 78.44 डॉलर प्रति बैरल थी. उसके बाद से कच्चे तेल की कीमतें लगातर घटती गईं, लेकिन सरकार एक्साइज ड्यूटी लगातर बढ़ाती गई. ये नौ बार बढ़ाई गई. आखरी बार 15 फरवरी 2016 को एक्साइज ड्यूटी बढाई गई, जबकि तब अंतरराष्ट्रीय बाजार मे ब्रेंट क्रूड की कीमत 33.20 डॉलर प्रति बैरल रह गई थी.

चौतरफा दबाव के बाद सरकार ने पहली बार चार अक्टूबर 2017 को एक्साइज ड्यूटी घटाई. यह गुजरात चुनाव से पहले हुआ. यह कटौती पेट्रोल-डीजल पर दो-दो रुपये प्रति लीटर थी और तब कच्चे तेल की कीमत थी 57.62 डॉलर प्रति बैरल है. अब फिक्की भी मांग कर रही है कि एक्साइज ड्यूटी घटाई जाए. फिक्की के मुताबिक पेट्रोल पर 11 रुपये 77 पैसे और डीजल पर 13 रुपये 47 पैसों की एक्साइज ड्यूटी बढाई गई है. वहीं, कटौती सिर्फ दो रुपये की हुई. ऐसे में इसे और घटाया जा सकता है. एक रास्ता पेट्रोल और डीजल को जीएसटी में लाने का है. सरकार इसके लिए तैयार है, पर वो राज्यों में आम सहमति की बात करती है.

यह अलग बात है कि बीजेपी बार-बार देश का नक्शा दिखा कर बताती है कि 20 से अधिक राज्यों में उसकी सरकार है और कांग्रेस तो अब सिर्फ पंजाब, पुड्डचेरी और मिजोरम में सिमट गई है. तो ऐसे में राज्यों में आम राय बनाने से उसे कौन रोक रहा है. यह भी एक बड़ा सवाल है. 

(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com