भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: पाकिस्तान पर क्या नीति हो यह सभी सरकारों की बड़ी समस्या रही है। कांग्रेस आज आरोप लगा रही है मोदी सरकार पर, लेकिन वह खुद पाकिस्तान से बातचीत पर अपने ट्रैक रिकार्ड को भूल जाती है।
जानकारों का एक हिस्सा हमेशा से यह मानता रहा है कि आतंकी घटनाएं चाहे जिस भी स्तर की हों, बातचीत का सिलसिला पूरी तरह से कभी बंद नहीं होना चाहिए। यह वह पहलू है जो आजाद हिंदुस्तान के लिए अभी तक की सबसे बड़ी कूटनीतिक चुनौती है। बदलते वक्त के साथ और आतंकवाद में नई तकनीक आने के बाद यह खतरा साल दर साल बढ़ा ही, कभी कम नहीं हुआ है।
पाकिस्तान की चुनी हुई सरकारें कभी इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं दे सकीं कि उनकी सरजमीं पर पनपने वाले आतंकवाद को वह पूरी तरह से रोक सकती हैं। बल्कि पाकिस्तान के कई नेता और प्रधानमंत्री यह दलीलें देते रहे हैं कि आतंकवाद से जितना भारत जूझ रहा है, पाकिस्तान खुद भी उसका सबसे ज्यादा पीड़ित रहा है। इसीलिए यह लिखा और कहा गया है कि पाकिस्तान पर कोई स्थाई नीति रखने की बजाय यह समय और माहौल के मुताबिक ही तय हो सकती है।
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