मोदी सरकार ने तीन साल में क्या हासिल किया और क्या गंवाया का बड़ा हिस्सा उनकी विदेश नीति का है. इस विदेश नीति का सबसे बड़ा हिस्सा चीन और पाकिस्तान है. सबसे पहले अगर चीन की बात करें तो झूला कूटनीति की तस्वीर याद आती है. 2014 में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग जब भारत आए तो उस वक्त कुछ ऐसा माहौल बना कि लगा कि शायद अब रिश्ते बेहतरी की तरफ तेज़ी से बढ़ेंगे, लेकिन तीन सालों में ऐसा हुआ नहीं. जहां बार-बार भारत की तरफ से यह कहा जाता रहा कि दोनों देशों का रिश्ता सिर्फ सीमा विवाद तक सीमित नहीं है, चीन उससे कहीं आगे बढ़कर भारत पर दबाव बढ़ाता रहा. पाकिस्तान के साथ जहां CPEC या China Pakistan Economic Corridor का चीन ने उद्घाटन कर दिया.
इसके तहत ग्वादर बंदरगाह 43 साल तक चीन को दे दिया गया है. सड़कें तेज़ी से बन रही हैं और चीन पूरा निवेश वसूलने की तैयारी में है. पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर की तरफ पाकिस्तान और चीन के सैनिकों की साझा पेट्रोलिंग की भी खबर आई. भारत विरोध जताता रहा, कहता रहा कि जैसे उसने वन चाइना स्वीकार किया है वैसे ही चीन पीओके पर उसकी संप्रभुता को स्वीकार करे, लेकिन जमीन पर इस विरोध का कोई असर नज़र नहीं आता. चीन का रुख और कड़ा होता जा रहा है. शी चिनफिंग के सत्ता में आने के बाद इस पूरे क्षेत्र में चीन सैन्य और आर्थिक दबादबा कायम करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा.
One Belt One Road (OBOR) में भी जहां भारत शामिल नहीं हुआ, लेकिन नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका और यहां तक कि अमेरिका ने भी इसमें हिस्सा लिया. Belt and Road Forum जैसा इसे बताया गया सीधे तौर पर कश्मीर मुद्दे से जुड़ा है. पाकिस्तान से चीन की करीबी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी भारत के लिए परेशानियां खड़ी कर रही हैं और NSG में भी. जहां सुरक्षा परिषद में चीन बार बार मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी नामित करने पर वीटो कर देता है, डर यह भी है कि अगर कुलभूषण जाधव का मामला वहां तक पहुंचता है तो फिर वह वीटो का इस्तेमाल करेगा. चीन की ही कड़ी आपत्ति के कारण भारत बार-बार NSG सदस्य होने से चूक रहा है। भारत इस मामले में चीन के खिलाफ ना कोई कड़ी कार्यवाई कर पा रहा है ना पाकिस्तान को अलग थलग करने की उसकी रणनीति बहुत काम करती नज़र आ रही है.
श्रीलंका की अगर बात करें तो वहां पर जल्द ही सरकार हंबनटोटा बंदरगाह चीन को सौंपने वाला है और चीन ही उसे विकसित करेगा. कुछ ही महीने पहले जब श्रीलंका ने चीनी पनडुब्बी को अपने पानी में dock करने की इजाज़त दी तो भारत के सैन्य और विदेश हलकों में खलबली मच गई, हालांकि प्रधानमंत्री मोदी श्रीलंका के दो दौरे कर चुके हैं और आर्थिक करारों का सिलसिला तेज़ हो रहा है. शायद कूटनीति और अर्थनीति का नतीजा है कि विसाख उत्सव में जब पीएम मोदी वहां गए और फिर एक चीनी पनडुब्बी ने उसी दौरान वहां डॉक कने की इजाज़त मांगी तो श्रीलंका ने मना कर दिया, लेकिन भारत को अपने इस बेहद अहम पड़ोसी के साथ अब बेहद सतर्क रहना होगा. कोई भी गलती महंगी पड़ेगी.
एक और कनेक्शन है नेपाल-चीन का. इसके दो पहलू हैं. पहला नेपाल में भारत की कूटनीति की चौतरफा आलोचना हुई है. नेपाल में भारत पर मधेसी आंदोलन के ज़रिए वहां की राजनीति में दखल का आरोप लगा. भयावह भूकंप के बाद जिस तरह अपनी दी राहत को लेकर भारत अपनी ही पीठ थपथपाता नज़र आया वह भी भारत के खिलाफ गया. उधर, चीन शांति से सहायता देता रहा, वहां पर बड़े स्तर पर पुनर्निर्माण कर रहा है. और तो और अब इस समझौते पर भी दस्तखत हो चुके हैं कि चीन अपने विशालकाय रेल नेटवर्क को काठमांडू तक ले आएगा और जिस तरह तेज़ी से पहाड़ों को चीरते हुए तिब्बत में मैंने चीनीयों को रेल नेटवर्क बिछाते देखा है, काठमांडू तक पहुंचने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगेगा.
कूटनीति को ध्यान में रखते हुए एक उम्मीद दलाई लामा से भी थी कि चीन पर थोड़ा दबाव पड़ेगा, लेकिन दलाई लामा के हाल के तवांग दौरे के बाद चीन के विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया तीखी थी. चीन के सरकारी मीडिया के मुताबिक-ये एक उकसावे की कार्यवाही थी. हालांकि सूत्रों के मुताबिक- दलाई लामा पहले भी कई बार तवांग जा चुके हैं. सूत्र बताते हैं कि इस से नाराज होकर वहां के एक सीनियर मंत्री अपने तय दौरे पर भारत नहीं आए. अरुणाचल पर हालात ये हैं कि वहां के कई इलाकों के चीनी नाम चीन ने रिलीज़ किए और LAC के उस पार विकास की रफ्तार इतनी तेज़ है कि जानकार मानते हैं कि असल में तेज़ी से सेना के बढ़ने के लिए मुफीद है. हालांकि भारत भी अब नए मिसाइल वगैरह इस इलाके में तैनात कर रहा है. कुल मिलाकर हर सीमा से चीन भारत को घेरता नज़र आ रहा है - पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और खुद अपनी तरफ से तो है ही, लेकिन चीन पर लगाम लगाने के लिए कुछ पुख्ता अब तक मोदी सरकार के पास नज़र नहीं आ रहा. मोदी सरकार के विदेश नीति पर पाकिस्तान के साथ रिश्ते .. ब्लॉग के अगले हिस्से में
(कादंबिनी शर्मा एनडीटीवी इंडिया में एंकर और एडिटर फारेन अफेयर्स हैं)
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This Article is From May 22, 2017
मोदी सरकार के 3 साल : पीएम मोदी की चीन नीति कहाँ है?
Kadambini Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:मई 25, 2017 18:43 pm IST
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Published On मई 22, 2017 15:57 pm IST
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Last Updated On मई 25, 2017 18:43 pm IST
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