
वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में गोपाल भार्गव 50 हजार से अधिक वोटों से जीते थे (फाइल फोटो)
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रहली सीट को बीजेपी का अजेय गढ़ बना चुके हैं
पिछले चुनाव में 50 हजार से अधिक वोटों से जीते थे
आठवी बार चुनाव मैदान में उतरे हैं गोपाल भार्गव
मध्यप्रदेश के ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव ने अपने थिएटर में बेचे 'ट्यूबलाइट' के टिकट
भार्गव इस बार एक लाख से अधिक वोट से जीत का लक्ष्य लेकर मैदान में हैं. प्रचार के दौरान उनके समर्थकों का यह नारा इस आत्मविश्वास की बानगी पेश करता था-एक ही नारा, एक ही गीत, सवा लाख से होगी जीत. एक और नारा 'जय गोपाल, विजय गोपाल' भी चर्चा में रहा. ब्राह्मण और कुर्मी (पटेल) बहुल रहली सीट को भार्गव ने बीजेपी के लिए अभेद गढ़ बना दिया है. उनकी लोकप्रियता निर्विवाद है. कांग्रेस ने उन्हें हराने के लिए सारे जतन किए लेकिन हर बार निराशा हाथ लगी.
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पूरे क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों को लेकर भार्गव इस कदर निश्चिंत थे कि वर्ष 2013 में नामांकन दाखिल करने के बाद वे प्रचार के लिए बाहर ही नहीं निकले. उनके समर्थकों ने ही यह जिम्मेदारी संभाली. बावजूद इसके वे कांग्रेस के ब्रजबिहारी पटैरिया से 50 हजार से अधिक वोटों से जीते थे. भार्गव के खिलाफ कांग्रेस ने इस बार उनके ही नगर गढ़ाकोटा के कमलेश साहू को मैदान में उतारा लेकिन साहू के नाम की घोषणा होते ही असंतोष के सुर उठने लगे थे. इन सुरों ने बीजेपी की स्थिति को मजबूत ही किया है.
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अपने बयानों के कारण कई बार विवादों में भी रहे भार्गव की क्षेत्र में लोकप्रियता उनके मिलनसार स्वभाव और मंत्री के रूप में उनकी ओर से कराए गए विकास कार्यों के कारण है. सड़कों को बेहतर कराने, स्कूल, अस्पताल खुलवाने, खेल स्टेडियम बनवाने जैसे कार्य उन्होंने किए हैं. अपने विधानसभा क्षेत्र रहली को हार्टीकल्चर (उद्यानिकी) कॉलेज की सौगात भी उन्होंने दी है. क्षेत्र के लोग मानते हैं कि मंत्री रहते हुए भार्गव ने यहां के लिए काफी कुछ किया है, कोई भी काम हो, वे हरदम मदद के लिए उपलब्ध रहते हैं. भार्गव का गृहनगर गढ़ाकोटा तो सुविधाओं के मामले में प्रदेश के शहरों को मुकाबला देता नजर आता है. यहां होने वाले रहस मेले को उन्होंने बड़े स्तर पर प्रतिष्ठित किया है. इन तमाम बातों के बावजूद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस इस बार मध्यप्रदेश में पूरे दमखम के साथ उतरी है. सत्ता विरोधी रुझान भी उसके पक्ष में है. पार्टी को सत्ता में लाने के लिए वरिष्ठ नेता अपने मतभेद भुला चुके हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि भार्गव अपनी जीत के आंकड़े को अपने दावे तक पहुंचा पाते हैं या नहीं...
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