वाराणसी:
सड़क पर भीड़ रोकने के लिए तीन किलोमीटर रस्सी, 13 एसपी, 20 एएसपी, 45 सीओ, 6000 पुलिस के जवान के साथ सीआरपीएफ, आरएफ, एसएसबी और बीएसएफ की 12 कंपनियों के जवान बनारस की सड़कों पर बीते हफ्ते हलकान होते नजर आए. इतनी बड़ी फ़ोर्स की बड़ी कवायद किसी दंगे को रोकने के लिए नहीं थी बल्कि ये तो पीएम से लेकर सीएम की सभा और रोड शो को संभालने के लिए लगी थी क्योंकि बनारस, उत्तर प्रदेश के चुनाव की वो रणभूमि बनी जिसमे देश के प्रधानमंत्री की साख दांव ओर लगी थी. इस साख पर कहीं बट्टा न लग जाए इसलिए पीएम ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी.
गौरतलब है कि बनारस भाजपा के मिजाज का शहर है. यहां शहर की तीन सीट पर भाजपा का कब्जा है. जिसमे 2 सीट कैंट और दक्षिणी पर तो उसका कब्जा दशकों से है. पर इस बार टिकट का बंटवारा ऐसा हुआ कि लोगों में जबरदस्त असंतोष पैदा हो गया. विरोध का स्वर इस कदर मुखर हुआ कि उसकी आग में इन दोनों सीट का जल जाने का डर हो गया. असंतुष्ट गुट को मनाने की तैयारी शुरू हुई. डैमेज कंट्रोल के लिए शहर दक्षिणी से सात बार विधायक रहे श्याम देव राय चौधरी को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने दिल्ली बुलाया. उन्हें एमलसी और दूसरे बड़े राजनीतिक पद देने का आश्वासन दिया गया. पर टिकट कटने से आहत दादा का दिल नहीं पसीजा. तो पीएम मोदी खुद मैदान में कूद पड़े. उनका अंतिम तीन दिन का प्रवास यहां निश्चित हुआ. और जैसे ही पीएम के तीन दिन का कार्यक्रम आया.
वैसे ही पुलिस और प्रसाशन का सारा कार्यक्रम चुनौती में बदल गया. पहले दिन यानी 14 तारीख को पीएम का कार्यक्रम मंदिर दर्शन करने जाने का था. और उसी दिन सीएम अखिलेश और राहुल गांधी का रोड शो पहले से तय था. दोनों का समय और रास्ता एक ही था. लिहाजा पुलिस और प्रसाशन के पेशानी पर पसीना आने लगा. इसे कैसे सकुशल संपन्न कराया जाये इसकी चुनौती सामने आ गई. रोड शो के रास्ते का पहले निरिक्षण किया गया. फिर 13 तारीख की पूरी रात जागकर जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्रा और पुलिस कप्तान नितिन तिवारी ने जगह-जगह बैरिकेटिंग कराई. ड्रोन कैमरे से रास्ते में पड़ने वाली हर छत का जायजा लिया गया. बम स्क्वायड दस्ते ने चप्पे-चप्पे पर छानबीन की. एंटी माइन, स्नाईफर डॉग इलाके की हर संदिग्ध वस्तु की जांच में जुटे रहे. इसके बाद भीड़ कहीं आगे न आ जाये इसलिए 6000 जवानों को लगभग 3 किलोमीटर रस्सी दे कर डयूटी में तैनात किया गया. रातभर की इस कवायद के बाद 14 तारीख की वो सुबह आ गई जब पीएम मोदी को आना था.
उनका कार्यक्रम पहले 12 बजे का था और सीएम का 1 बजे का. ऐसे में रूट एक होने पर आपस में टकराहट लाजिमी थी. लिहाजा प्रशासन ने पहले पीएम के प्रोग्राम को आग्रह कर 9 बजे का कराया और सीएम का 2 बजे का. इस प्रयास के बाद प्रसाशन ने थोड़ी राहत की सांस ली. लेकिन जब पीएम आये तो वो बीएचयू के लंका गेट से खुली जीप से मंदिर का 5 किलोमीटर का रास्ता तय करने निकले. पीएम के कार्यक्रम की बड़ी-बड़ी सूचना अख़बारों में इस्तेहार दे कर छपी गई थी लिहाजा भीड़ उनके स्वागत में जुट गई. बीजेपी के लोगों ने भी पहले से तैयारी कर रखी थी. जगह-जगह फूलों की टोकरी पहुंचाई गई थीं. जो पीएम पर वर्षा करने के लिए थी. पीएम कारवां तो आगे बढ़ा पर ये अनौपचारिक रोड शो में तब्दील हो गया क्योंकि एक तो पीएम खुली कर में चले और दूसरे भारी भीड़ की वजह से चाल धीमी हो गई. जिससे मंदिर पहुंचने में घंटों लग गए. प्रधानमंत्री मोदी 1 बजे के आसपास विश्वनाथ मंदिर ही पहुंचे वहां से पूजा करके कालभैरव जाने में 2 से ज़्यादा बजने लगा. अब कचहरी से सीएम अखिलेश और राहुल गांधी का भी रोड शो शुरू हो गया. ऐसे में प्रशासन के पसीने छूटने लगे. दोनों तरफ के जूलूस के लिए प्रसाशन ने फोर्स तैनात कर रखी थी. पूरे रोड शो के रास्ते को 12 सेक्टर में बांटकर प्रशासन ने 13 एसपी, 12 एएसपी, 45 सीओ के साथ पुलिस बल का सामंजस्य डीएम औए एसएसपी लगातार बनाए हुए थे.
इस बीच प्रसाशन ने दोहरी व्यवस्था भी कर रखी थी .अलग रूट भी बनाया था कि कोई बात होने पर वीआईपी को दूसरे रास्ते से निकाला जा सके. बहरहाल इन व्यवस्था के बीच बड़ी बात ये थी कि पीएम के रास्ते में सीएम का रोड शो आने से पहले. पीएम के प्रोग्राम को सकुशल संपन्न कराकर विदा कर देने की थी. आखिरकार 3 बजे के लगभग पीएम जा कार्यक्रम ख़त्म हुआ तब तक सीएम का कारवां एक चौथाई दूरी पूरी जार चुका था. लेकिन अब प्रसाशन आधी लड़ाई जीत चुका था. पर अभी मुश्किल ख़त्म नहीं हुई थी. और एक बड़ी चुनौती उस समय सामने आ गई जब सीएम और राहुल का काफिला चौकाघाट पानी के टंकी के पास पहुंचा तब एक बीजेपी समर्थक के छत पर झंडा लहरा रहे लोगों पर कहीं से किसी ने पत्थर फेंक दिया. जिससे हंगामा होने लगा. लगा कि कोई अनहोनी हो जाएगी तभी पुलिस ने स्थिति को बड़ी मुस्तैदी से संभाल लिया. और कोई बड़ी घटना होने से बच गई. देर शाम ये रोड शो भी ख़त्म हुआ और पुलिस प्रसाशन ने राहत की सांस ली.
लेकिन ये राहत चंद घंटों की ही थी क्योंकि अगली सुबह तो पीएम का तय रोड शो था. जो पांडेपुर चौराहे से निकलकर 5 किलोमीटर का रास्ता तयकर विद्यापीठ के मौदान में सभा पर ख़त्म होना था. एक बार फिर उसी तैयारी के साथ पुलिस बल जुटा. ये कार्यक्रम भी पुलिस के लिए काम चुनौतीपूर्ण नहीं था क्योंकि एक तो बनारस की घनी बस्ती और संकरे रस्ते पर पीएम का खुले में जाना और दूसरी भारी हूजूम जिसे पूरी तरह चेक नहीं किया जा सकता. हालांकि ये कार्यक्रम भी ठीक से निकल गया. तीसरे दिन फिर पीएम का गड़वाघाट आश्रम और लाल बहादुर शात्री के घर सड़क मार्ग से जाना एक चुनौती बन गया. तीन दिन से ठीक बसे आराम न कर पाने वाला प्रसाशन फिर एक बार मुस्तैदी से लगा और आपसी तालमेल से इस कठिन चुनौती पर भी पर पाया. और जब पीएम अपनी आखिरी सभा रोहनिया विधानसभा में करके चले गये तब जाकर कहीं बनारस का प्रसाशन राहत की सांस ले पाया .
इस तीन दिन की कवायद में पुलिस और पैरा फ़ोर्स के जवान तो लगे ही रहे पर जिले के जिलाधिकारी और एसएसपी जिस पर पूरे कार्यक्रम का दारोमदार था वो इन तीन दिनों में बनारस की 50 किलोमीटर सड़के पैदल नापी एसएसपी नितिन तिवारी के पैरों में छाले पड़ गए और यही हाल डीएम का भी हुआ. पर इन्हें ख़ुशी इस बात की है कि इतने बड़े रण समर को सकुशल संपन्न करा लिया. और अगर बनारस की बात करे तो बनारस ने भी आज तक कभी चुनाव में इतना बड़ा रण समर कभी नहीं देखा था क्योंकि चुनाव तो पूरे उत्तर प्रदेश में हो रहा था पर असल रणभूमि तो बनारस की ही सरजमी बनी. और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पूर्वांचल में हवा बनारस से होकर ही गुजरती है और सभी राजनितिक पार्टियां इस हवा को अपने तरफ करने लिये बनारस में इतनी ताकत झोंकी की बनारस का प्रसाशम हलकान हो गया.
गौरतलब है कि बनारस भाजपा के मिजाज का शहर है. यहां शहर की तीन सीट पर भाजपा का कब्जा है. जिसमे 2 सीट कैंट और दक्षिणी पर तो उसका कब्जा दशकों से है. पर इस बार टिकट का बंटवारा ऐसा हुआ कि लोगों में जबरदस्त असंतोष पैदा हो गया. विरोध का स्वर इस कदर मुखर हुआ कि उसकी आग में इन दोनों सीट का जल जाने का डर हो गया. असंतुष्ट गुट को मनाने की तैयारी शुरू हुई. डैमेज कंट्रोल के लिए शहर दक्षिणी से सात बार विधायक रहे श्याम देव राय चौधरी को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने दिल्ली बुलाया. उन्हें एमलसी और दूसरे बड़े राजनीतिक पद देने का आश्वासन दिया गया. पर टिकट कटने से आहत दादा का दिल नहीं पसीजा. तो पीएम मोदी खुद मैदान में कूद पड़े. उनका अंतिम तीन दिन का प्रवास यहां निश्चित हुआ. और जैसे ही पीएम के तीन दिन का कार्यक्रम आया.
वैसे ही पुलिस और प्रसाशन का सारा कार्यक्रम चुनौती में बदल गया. पहले दिन यानी 14 तारीख को पीएम का कार्यक्रम मंदिर दर्शन करने जाने का था. और उसी दिन सीएम अखिलेश और राहुल गांधी का रोड शो पहले से तय था. दोनों का समय और रास्ता एक ही था. लिहाजा पुलिस और प्रसाशन के पेशानी पर पसीना आने लगा. इसे कैसे सकुशल संपन्न कराया जाये इसकी चुनौती सामने आ गई. रोड शो के रास्ते का पहले निरिक्षण किया गया. फिर 13 तारीख की पूरी रात जागकर जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्रा और पुलिस कप्तान नितिन तिवारी ने जगह-जगह बैरिकेटिंग कराई. ड्रोन कैमरे से रास्ते में पड़ने वाली हर छत का जायजा लिया गया. बम स्क्वायड दस्ते ने चप्पे-चप्पे पर छानबीन की. एंटी माइन, स्नाईफर डॉग इलाके की हर संदिग्ध वस्तु की जांच में जुटे रहे. इसके बाद भीड़ कहीं आगे न आ जाये इसलिए 6000 जवानों को लगभग 3 किलोमीटर रस्सी दे कर डयूटी में तैनात किया गया. रातभर की इस कवायद के बाद 14 तारीख की वो सुबह आ गई जब पीएम मोदी को आना था.
उनका कार्यक्रम पहले 12 बजे का था और सीएम का 1 बजे का. ऐसे में रूट एक होने पर आपस में टकराहट लाजिमी थी. लिहाजा प्रशासन ने पहले पीएम के प्रोग्राम को आग्रह कर 9 बजे का कराया और सीएम का 2 बजे का. इस प्रयास के बाद प्रसाशन ने थोड़ी राहत की सांस ली. लेकिन जब पीएम आये तो वो बीएचयू के लंका गेट से खुली जीप से मंदिर का 5 किलोमीटर का रास्ता तय करने निकले. पीएम के कार्यक्रम की बड़ी-बड़ी सूचना अख़बारों में इस्तेहार दे कर छपी गई थी लिहाजा भीड़ उनके स्वागत में जुट गई. बीजेपी के लोगों ने भी पहले से तैयारी कर रखी थी. जगह-जगह फूलों की टोकरी पहुंचाई गई थीं. जो पीएम पर वर्षा करने के लिए थी. पीएम कारवां तो आगे बढ़ा पर ये अनौपचारिक रोड शो में तब्दील हो गया क्योंकि एक तो पीएम खुली कर में चले और दूसरे भारी भीड़ की वजह से चाल धीमी हो गई. जिससे मंदिर पहुंचने में घंटों लग गए. प्रधानमंत्री मोदी 1 बजे के आसपास विश्वनाथ मंदिर ही पहुंचे वहां से पूजा करके कालभैरव जाने में 2 से ज़्यादा बजने लगा. अब कचहरी से सीएम अखिलेश और राहुल गांधी का भी रोड शो शुरू हो गया. ऐसे में प्रशासन के पसीने छूटने लगे. दोनों तरफ के जूलूस के लिए प्रसाशन ने फोर्स तैनात कर रखी थी. पूरे रोड शो के रास्ते को 12 सेक्टर में बांटकर प्रशासन ने 13 एसपी, 12 एएसपी, 45 सीओ के साथ पुलिस बल का सामंजस्य डीएम औए एसएसपी लगातार बनाए हुए थे.
इस बीच प्रसाशन ने दोहरी व्यवस्था भी कर रखी थी .अलग रूट भी बनाया था कि कोई बात होने पर वीआईपी को दूसरे रास्ते से निकाला जा सके. बहरहाल इन व्यवस्था के बीच बड़ी बात ये थी कि पीएम के रास्ते में सीएम का रोड शो आने से पहले. पीएम के प्रोग्राम को सकुशल संपन्न कराकर विदा कर देने की थी. आखिरकार 3 बजे के लगभग पीएम जा कार्यक्रम ख़त्म हुआ तब तक सीएम का कारवां एक चौथाई दूरी पूरी जार चुका था. लेकिन अब प्रसाशन आधी लड़ाई जीत चुका था. पर अभी मुश्किल ख़त्म नहीं हुई थी. और एक बड़ी चुनौती उस समय सामने आ गई जब सीएम और राहुल का काफिला चौकाघाट पानी के टंकी के पास पहुंचा तब एक बीजेपी समर्थक के छत पर झंडा लहरा रहे लोगों पर कहीं से किसी ने पत्थर फेंक दिया. जिससे हंगामा होने लगा. लगा कि कोई अनहोनी हो जाएगी तभी पुलिस ने स्थिति को बड़ी मुस्तैदी से संभाल लिया. और कोई बड़ी घटना होने से बच गई. देर शाम ये रोड शो भी ख़त्म हुआ और पुलिस प्रसाशन ने राहत की सांस ली.
लेकिन ये राहत चंद घंटों की ही थी क्योंकि अगली सुबह तो पीएम का तय रोड शो था. जो पांडेपुर चौराहे से निकलकर 5 किलोमीटर का रास्ता तयकर विद्यापीठ के मौदान में सभा पर ख़त्म होना था. एक बार फिर उसी तैयारी के साथ पुलिस बल जुटा. ये कार्यक्रम भी पुलिस के लिए काम चुनौतीपूर्ण नहीं था क्योंकि एक तो बनारस की घनी बस्ती और संकरे रस्ते पर पीएम का खुले में जाना और दूसरी भारी हूजूम जिसे पूरी तरह चेक नहीं किया जा सकता. हालांकि ये कार्यक्रम भी ठीक से निकल गया. तीसरे दिन फिर पीएम का गड़वाघाट आश्रम और लाल बहादुर शात्री के घर सड़क मार्ग से जाना एक चुनौती बन गया. तीन दिन से ठीक बसे आराम न कर पाने वाला प्रसाशन फिर एक बार मुस्तैदी से लगा और आपसी तालमेल से इस कठिन चुनौती पर भी पर पाया. और जब पीएम अपनी आखिरी सभा रोहनिया विधानसभा में करके चले गये तब जाकर कहीं बनारस का प्रसाशन राहत की सांस ले पाया .
इस तीन दिन की कवायद में पुलिस और पैरा फ़ोर्स के जवान तो लगे ही रहे पर जिले के जिलाधिकारी और एसएसपी जिस पर पूरे कार्यक्रम का दारोमदार था वो इन तीन दिनों में बनारस की 50 किलोमीटर सड़के पैदल नापी एसएसपी नितिन तिवारी के पैरों में छाले पड़ गए और यही हाल डीएम का भी हुआ. पर इन्हें ख़ुशी इस बात की है कि इतने बड़े रण समर को सकुशल संपन्न करा लिया. और अगर बनारस की बात करे तो बनारस ने भी आज तक कभी चुनाव में इतना बड़ा रण समर कभी नहीं देखा था क्योंकि चुनाव तो पूरे उत्तर प्रदेश में हो रहा था पर असल रणभूमि तो बनारस की ही सरजमी बनी. और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पूर्वांचल में हवा बनारस से होकर ही गुजरती है और सभी राजनितिक पार्टियां इस हवा को अपने तरफ करने लिये बनारस में इतनी ताकत झोंकी की बनारस का प्रसाशम हलकान हो गया.
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