
अखिलेश यादव और आजम खान...
नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश सरकार में अपनी कुर्सी और समाजवादी पार्टी में अपनी जगह सुनिश्चित करने के लिए अखिलेश यादव आज अपने पिता और राजनीतिक गुरु मुलायम सिंह यादव के सामने खड़े हो गए. लेकिन अब एक बार फिर राज्य चुनाव के लिए तैयार है और अखिलेश यादव चुनाव जीतने के दावे कर रहे हैं और बहुजन समाज पार्टी तथा बीजेपी के नेता पार्टी के पिछले पांच साल के अखिलेश यादव सरकार के शासनकाल की कमियां गिना रहे हैं. उधर, अखिलेश यादव सरकार दावा कर रही है कि उनके कार्यकाल में राज्य में विकास काम किया गया है. उनका चुनावी नारा भी है... काम बोलता है... अब यह सरकार काम का दावा कर रही है लेकिन इस सरकार के कार्यकाल के दौरान ही कुछ ऐसी घटनाएं घटीं जिसका इस चुनाव पर असर पड़ना लाजमी है.
आइए देखें वे कारण जिनकी वजह से चुनावी वैतरणी पार करने में अखिलेश यादव को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.
मुजफ्फरनगर दंगों की याद करेगी परेशान
अखिलेश यादव के सत्ता में आने के बाद सबसे बड़ी नाकामी के रूप में उन्हें मुजफ्फरनगर दंगों की याद सता रही होगी. विपक्ष ने इस मुद्दे पर उनके खिलाफ काफी बयानबाजी की थी. इन दंगों के चलते सैकड़ों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा तो हालात यहां तक बन गए कि 50,000 से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थान पर भेजा गया. यहां तक की ठंड के मौसम में भी लोगों को टेंट में रहना पड़ा. कई महीनों तक दंगों की आंच महसूस होती रही और लोग अपने घरों में जाने को तैयार नहीं थे. मीडिया ने लगातार इस पर खबरें छापी और दिखाईं. एक समय तो नाराज होकर सरकार ने दावा भी किया कि टेंट में अब कोई नहीं है, लेकिन वास्तविकता रही लोगों घरों में जाने से महीनों डरते रहे. एक आंकड़े के मुताबिक मुजफ्फरनगर दंगों में 62 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था.
इन दंगों का सबसे बुरा असर यह रहा कि पहली बार मुस्लिम समुदाय के लोग भी समाजवादी पार्टी से नाराज हुए और उन्होंने सरकार पर समय पर कदम न उठाए जाने के आरोप लगाए. इन दंगों के दौरान के कई महिलाओं से रेप के भी आरोप लगे. कहा जाता है कि अखिलेश यादव सरकार के दौरान राज्य में कई स्थानों पर दंगे हुए. इनमें यह जरूरी नहीं कि यह दंगे सांप्रदायिक ही रहे हों. जानकारी के लिए बता दें कि कुछ रिपोर्टों के अनुसार 2012 में यूपी में 227, 2013 में 247, 2014 में 242, 2015 में 219 और 2016 में यह आंकड़ा 100 के पार है.
दादरी के एक गांव में अखलाक नाम के मुस्लिम बुजुर्ग की हत्या
राज्य के दिल्ली से सटे गाजियाबाद के दादरी के एक गांव में अखलाक नाम के मुस्लिम बुजुर्ग की हत्या सिर्फ इसलिए हो गई कि कुछ लोगों को लगा वह गोमांस खा रहे थे. लोगों ने अखलाक को घर से निकाला और इतना मारा की उनकी मौत हो गई. इस घटना ने भी देश के मीडिया के रुख को अपनी ओर मोड़ा. इस घटना के पहले और बाद में जो स्थिति बनी उससे जाट समुदाय से लेकर मुस्लिम समुदाय भी अखिलेश यादव सरकार से नाराज हुआ.
मुलायम सिंह यादव की आलोचना
वहीं पार्टी प्रमुख के रूप में खुद मुलायम सिंह यादव कई बार सार्वजनिक मंचों से अखिलेश के काम पर नाराजगी जता चुके हैं. उन्होंने कई बार कहा कि अखिलेश सरकार ठीक काम नहीं कर रही है. कुछ दिन पहले तो वह यहां तक कह गए कि अखिलेश यादव सरकार मुस्लिम विरोधी रही है. उन्होंने यह भी कह दिया कि अपने कार्यकाल में अखिलेश यादव ने एक भी काम मुसलमानों के हित के लिए नहीं किया. यह बात और है कि अखिलेश यादव ने कुछ ऐसे काम गिनाए जो सूबे की सरकार ने मुसलमानों के लिए किए थे. गौरतलब है कि कुछ लोग मुलायम सिंह यादव को 'मुल्ला' मुलायम कहते रहे हैं और यह किसी से छिपा नहीं है कि मुसलमानों में मुलायम काफी लोकप्रिय रहे हैं. लोगों का मानना है कि अखिलेश यादव की पिता के खिलाफ बगावत कई लोगों को रास नहीं आई है.
मथुरा में रामवृक्ष यादव और उनके साथियों द्वारा सरकारी जमीन पर कब्जा
अखिलेश यादव सरकार के कार्यकाल पर तीसरा सबसे बड़ा दाग मथुरा में रामवृक्ष यादव और उनके साथियों द्वारा सरकारी जमीन पर सालों से चला आ रहा अवैध कब्जा है. 280 एकड़ से ज्यादा जमीन पर यादव ने कब्जा कर रखा था और वहीं इसके भीतर उसने अपनी पूरी सेना तैयार कर ली थी. हालात यह थे कि जब कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस मौके पर इलाका खाली कराने पहुंची तो भीतर से भी पुलिस पर जवाबी कार्रवाई की गई. मथुरा के एसपी और इलाके के थानाध्यक्ष को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. इस घटना के दौरान भी रामवृक्ष यादव के ऊपर समाजवादी पार्टी के नेताओं का हाथ होने की बात सामने आई थी.
बाद में पुलिस ने पूरा बल लगाया और इस पूरी कार्रवाई में 24 लोग मारे गए और 23 पुलिस वाले भी घायल हुए. जब पार्क के भीतर जांच की गई तब पता चला की भीतर हथियारों को बनाया भी जाता था.
बदायूं में दो नाबालिग बहनों की कथित तौर पर रेप के बाद हत्या
राज्य में कानून व्यवस्था के खराब होने का एक और बड़ा उदाहरण राज्य में दो नाबालिग बहनों की कथित तौर पर रेप के बाद हत्या का माना गया. बदायूं की इस घटना से उत्तर प्रदेश की पुलिस पर उंगलियां उठाई गईं. वहीं पिछले साल बुलंदशहर में हाईवे पर मां-बेटी से सामूहिक बलात्कार की घटना ने राज्य को शर्मसार कर दिया. इस घटना के बाद राज्य सरकार के मंत्री और पार्टी के मुस्लिम चेहरा आजम खान ने ऐसा बयान दिया कि उसकी लताड़ उन्हें सुप्रीम कोर्ट से पड़ी और बाद में उन्हें बिना शर्त माफी मांगनी पड़ी.
शाहजहांपुर में पत्रकार गजेंद्र सिंह की जलाकर हत्या
एक बार फिर एक और हत्या ने राज्य सरकार को सीधे कठघरे में खड़ा कर दिया. यह घटना थी शाहजहांपुर में पत्रकार गजेंद्र सिंह की जलाकर हत्या का मामला. मौत से पहले गजेंद्र ने अपने बयान में कहा था कि यूपी पुलिस ने राज्य सरकार के मंत्री राममूर्ति वर्मा के इशारे पर इस घटना को अंजाम दिया है. इस बयान को राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने खुद रिकॉर्ड किया था. इस मामले की जांच में पुलिस की हीलाहवाली और गवाहों पर दबाव की बातों ने भी राज्य सरकार पर सवाल उठाने का मौका दिया.
आईपीएस अमिताभ ठाकुर का मामला
यह भी उल्लेखनीय है कि इन्हीं अमिताभ ठाकुर की कार्रवाई पर अंकुश लगाने के लिए पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने खुद उन्हें फोन पर काफी हड़काया था. इस बात की शिकायत भी अमिताभ ठाकुर दर्ज करवाई और सबूत के तौर पर ऑडियो भी प्रस्तुत किया. ठाकुर की इस कार्रवाई के बाद राज्य सरकार उनसे नाराज हो गई और बाद में उन्हें 2015 में निलंबित कर दिया गया. वे आज भी निलंबित ही हैं. इस प्रकरण से यह बात फिर जनता के सामने आई कि किस प्रकार राजनेता पुलिस पर दबाव बनाते हैं.
यादव सिंह के भ्रष्टाचार का मामला
दिल्ली से सटे नोएडा में अथॉरिटी के चीफ इंजीनियर यादव सिंह के भ्रष्टाचार के मामले में अखिलेश यादव सरकार ने पहले तो बेहद ही ढीला रवैया अपनाया. 1000 करोड़ की संपत्ति के मामले में सीबीआई जांच के लिए हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की गई. कोर्ट में अखिलेश यादव सरकार ने सीबीआई जांच का विरोध किया. हाईकोर्ट ने फिर भी सीबीआई जांच का आदेश दे दिया. इसके बाद भी अखिलेश यादव सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. वहां पर भी कोर्ट ने लताड़ लगाई और सीबीआई जांच के आदेश दे दिए. भ्रष्टाचार के इतने बड़े मामले के उजागर होने के बाद अखिलेश यादव सरकार के कदमों की काफी आलोचना हुई और जनता में छवि भी खराब हुई.
दुर्गाशक्ति नागपाल का मामला
यूपी की एसडीएम दुर्गाशक्ति नागपाल का नाम अब लोगों की जुबान पर भले न हो. लेकिन जब उन्होंने माइनिंग माफिया पर कार्रवाई की थी तब उनका नाम काफी चर्चा में था. हालात यहां तक आ गए थे कि अखिलेश यादव ने उन्हें सस्पेंड कर दिया. कारण कुछ और बताया गया. नागपाल के पति भी उत्तर प्रदेश सरकार में अधिकारी हैं और उनपर भी पत्नी के काम का असर पड़ा. राज्य सरकार ने उन्हें भी परेशान किया, ऐसा लोग आरोप लगाते हैं.
आइए देखें वे कारण जिनकी वजह से चुनावी वैतरणी पार करने में अखिलेश यादव को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.
मुजफ्फरनगर दंगों की याद करेगी परेशान
अखिलेश यादव के सत्ता में आने के बाद सबसे बड़ी नाकामी के रूप में उन्हें मुजफ्फरनगर दंगों की याद सता रही होगी. विपक्ष ने इस मुद्दे पर उनके खिलाफ काफी बयानबाजी की थी. इन दंगों के चलते सैकड़ों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा तो हालात यहां तक बन गए कि 50,000 से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थान पर भेजा गया. यहां तक की ठंड के मौसम में भी लोगों को टेंट में रहना पड़ा. कई महीनों तक दंगों की आंच महसूस होती रही और लोग अपने घरों में जाने को तैयार नहीं थे. मीडिया ने लगातार इस पर खबरें छापी और दिखाईं. एक समय तो नाराज होकर सरकार ने दावा भी किया कि टेंट में अब कोई नहीं है, लेकिन वास्तविकता रही लोगों घरों में जाने से महीनों डरते रहे. एक आंकड़े के मुताबिक मुजफ्फरनगर दंगों में 62 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था.
इन दंगों का सबसे बुरा असर यह रहा कि पहली बार मुस्लिम समुदाय के लोग भी समाजवादी पार्टी से नाराज हुए और उन्होंने सरकार पर समय पर कदम न उठाए जाने के आरोप लगाए. इन दंगों के दौरान के कई महिलाओं से रेप के भी आरोप लगे. कहा जाता है कि अखिलेश यादव सरकार के दौरान राज्य में कई स्थानों पर दंगे हुए. इनमें यह जरूरी नहीं कि यह दंगे सांप्रदायिक ही रहे हों. जानकारी के लिए बता दें कि कुछ रिपोर्टों के अनुसार 2012 में यूपी में 227, 2013 में 247, 2014 में 242, 2015 में 219 और 2016 में यह आंकड़ा 100 के पार है.
दादरी के एक गांव में अखलाक नाम के मुस्लिम बुजुर्ग की हत्या
राज्य के दिल्ली से सटे गाजियाबाद के दादरी के एक गांव में अखलाक नाम के मुस्लिम बुजुर्ग की हत्या सिर्फ इसलिए हो गई कि कुछ लोगों को लगा वह गोमांस खा रहे थे. लोगों ने अखलाक को घर से निकाला और इतना मारा की उनकी मौत हो गई. इस घटना ने भी देश के मीडिया के रुख को अपनी ओर मोड़ा. इस घटना के पहले और बाद में जो स्थिति बनी उससे जाट समुदाय से लेकर मुस्लिम समुदाय भी अखिलेश यादव सरकार से नाराज हुआ.
मुलायम सिंह यादव की आलोचना
वहीं पार्टी प्रमुख के रूप में खुद मुलायम सिंह यादव कई बार सार्वजनिक मंचों से अखिलेश के काम पर नाराजगी जता चुके हैं. उन्होंने कई बार कहा कि अखिलेश सरकार ठीक काम नहीं कर रही है. कुछ दिन पहले तो वह यहां तक कह गए कि अखिलेश यादव सरकार मुस्लिम विरोधी रही है. उन्होंने यह भी कह दिया कि अपने कार्यकाल में अखिलेश यादव ने एक भी काम मुसलमानों के हित के लिए नहीं किया. यह बात और है कि अखिलेश यादव ने कुछ ऐसे काम गिनाए जो सूबे की सरकार ने मुसलमानों के लिए किए थे. गौरतलब है कि कुछ लोग मुलायम सिंह यादव को 'मुल्ला' मुलायम कहते रहे हैं और यह किसी से छिपा नहीं है कि मुसलमानों में मुलायम काफी लोकप्रिय रहे हैं. लोगों का मानना है कि अखिलेश यादव की पिता के खिलाफ बगावत कई लोगों को रास नहीं आई है.
मथुरा में रामवृक्ष यादव और उनके साथियों द्वारा सरकारी जमीन पर कब्जा
अखिलेश यादव सरकार के कार्यकाल पर तीसरा सबसे बड़ा दाग मथुरा में रामवृक्ष यादव और उनके साथियों द्वारा सरकारी जमीन पर सालों से चला आ रहा अवैध कब्जा है. 280 एकड़ से ज्यादा जमीन पर यादव ने कब्जा कर रखा था और वहीं इसके भीतर उसने अपनी पूरी सेना तैयार कर ली थी. हालात यह थे कि जब कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस मौके पर इलाका खाली कराने पहुंची तो भीतर से भी पुलिस पर जवाबी कार्रवाई की गई. मथुरा के एसपी और इलाके के थानाध्यक्ष को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. इस घटना के दौरान भी रामवृक्ष यादव के ऊपर समाजवादी पार्टी के नेताओं का हाथ होने की बात सामने आई थी.
बाद में पुलिस ने पूरा बल लगाया और इस पूरी कार्रवाई में 24 लोग मारे गए और 23 पुलिस वाले भी घायल हुए. जब पार्क के भीतर जांच की गई तब पता चला की भीतर हथियारों को बनाया भी जाता था.
बदायूं में दो नाबालिग बहनों की कथित तौर पर रेप के बाद हत्या
राज्य में कानून व्यवस्था के खराब होने का एक और बड़ा उदाहरण राज्य में दो नाबालिग बहनों की कथित तौर पर रेप के बाद हत्या का माना गया. बदायूं की इस घटना से उत्तर प्रदेश की पुलिस पर उंगलियां उठाई गईं. वहीं पिछले साल बुलंदशहर में हाईवे पर मां-बेटी से सामूहिक बलात्कार की घटना ने राज्य को शर्मसार कर दिया. इस घटना के बाद राज्य सरकार के मंत्री और पार्टी के मुस्लिम चेहरा आजम खान ने ऐसा बयान दिया कि उसकी लताड़ उन्हें सुप्रीम कोर्ट से पड़ी और बाद में उन्हें बिना शर्त माफी मांगनी पड़ी.
शाहजहांपुर में पत्रकार गजेंद्र सिंह की जलाकर हत्या
एक बार फिर एक और हत्या ने राज्य सरकार को सीधे कठघरे में खड़ा कर दिया. यह घटना थी शाहजहांपुर में पत्रकार गजेंद्र सिंह की जलाकर हत्या का मामला. मौत से पहले गजेंद्र ने अपने बयान में कहा था कि यूपी पुलिस ने राज्य सरकार के मंत्री राममूर्ति वर्मा के इशारे पर इस घटना को अंजाम दिया है. इस बयान को राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने खुद रिकॉर्ड किया था. इस मामले की जांच में पुलिस की हीलाहवाली और गवाहों पर दबाव की बातों ने भी राज्य सरकार पर सवाल उठाने का मौका दिया.
आईपीएस अमिताभ ठाकुर का मामला
यह भी उल्लेखनीय है कि इन्हीं अमिताभ ठाकुर की कार्रवाई पर अंकुश लगाने के लिए पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने खुद उन्हें फोन पर काफी हड़काया था. इस बात की शिकायत भी अमिताभ ठाकुर दर्ज करवाई और सबूत के तौर पर ऑडियो भी प्रस्तुत किया. ठाकुर की इस कार्रवाई के बाद राज्य सरकार उनसे नाराज हो गई और बाद में उन्हें 2015 में निलंबित कर दिया गया. वे आज भी निलंबित ही हैं. इस प्रकरण से यह बात फिर जनता के सामने आई कि किस प्रकार राजनेता पुलिस पर दबाव बनाते हैं.
यादव सिंह के भ्रष्टाचार का मामला
दिल्ली से सटे नोएडा में अथॉरिटी के चीफ इंजीनियर यादव सिंह के भ्रष्टाचार के मामले में अखिलेश यादव सरकार ने पहले तो बेहद ही ढीला रवैया अपनाया. 1000 करोड़ की संपत्ति के मामले में सीबीआई जांच के लिए हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की गई. कोर्ट में अखिलेश यादव सरकार ने सीबीआई जांच का विरोध किया. हाईकोर्ट ने फिर भी सीबीआई जांच का आदेश दे दिया. इसके बाद भी अखिलेश यादव सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. वहां पर भी कोर्ट ने लताड़ लगाई और सीबीआई जांच के आदेश दे दिए. भ्रष्टाचार के इतने बड़े मामले के उजागर होने के बाद अखिलेश यादव सरकार के कदमों की काफी आलोचना हुई और जनता में छवि भी खराब हुई.
दुर्गाशक्ति नागपाल का मामला
यूपी की एसडीएम दुर्गाशक्ति नागपाल का नाम अब लोगों की जुबान पर भले न हो. लेकिन जब उन्होंने माइनिंग माफिया पर कार्रवाई की थी तब उनका नाम काफी चर्चा में था. हालात यहां तक आ गए थे कि अखिलेश यादव ने उन्हें सस्पेंड कर दिया. कारण कुछ और बताया गया. नागपाल के पति भी उत्तर प्रदेश सरकार में अधिकारी हैं और उनपर भी पत्नी के काम का असर पड़ा. राज्य सरकार ने उन्हें भी परेशान किया, ऐसा लोग आरोप लगाते हैं.
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