पार्टी कैंपेन के लिए जारी वीडियो में डिंपल यादव के साथ अखिलेश यादव...
नई दिल्ली:
समाजवादी पार्टी आज सत्ता में एंटी इनकमबेंसी फैक्टर को धता बताते हुए एक बार फिर सत्ता में आने को आतुर बैठी है. कई लोग कह रहे हैं कि अखिलेश यादव ने पार्टी में ऐसे बदलाव किए हैं जिससे पार्टी की लोगों में जातीय स्वीकार्यता से ऊपर हर वर्ग में स्वीकार्यता बढ़ सी गई है. सच्चाई तो समय रहते ही सामने आएगी, लेकिन जो बात दृष्टिगोचर है वह यह है कि अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के ऐसे अध्यक्ष हैं, ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं और ऐसे कद्दावर नेता रहे हैं जिन्होंने आधी आबादी की ओर हमेशा नज़र बनाए रखी और उनमें अपनी अलग छवि बनाई.
शायद पूर्व पार्टी प्रमुख और अब संरक्षक मुलायम सिंह यादव भी राज्य की महिलाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं में वह पकड़ नहीं बना पाए थे जो अखिलेश यादव ने बनाई है. अखिलेश यादव ने राज्य के सांस्कृतिक विरासत के मुताबिक हर वह काम किया जो सीधा लोगों से उन्हें जोड़ता है. देश के सबसे बड़ी आबादी वाले सूबे के सबसे युवा मुख्यमंत्री होने के बाद अखिलेश यादव में बड़े बदलाव देखे गए. अखिलेश यादव ने राजनीति के साथ अपने परिवार को हमेशा बहुत तवज्जो दी.
यह सबने देखा, समझा और परखा की बतौर सीएम अखिलेश यादव के साथ उनकी पत्नी डिंपल यादव हमेशा कई मौकों पर साथ खड़ी दिखी हैं. इससे पहले शायद ही राज्य का कोई ऐसा पुरुष मुख्यमंत्री रहा होगा जिसने अपने पत्नी को राजनीति और सामाजिक मौकों पर इतनी तवज्जो दी है. खुद समाजवादी पार्टी के प्रमुख रहे मुलायम सिंह यादव ने ऐसा नहीं किया होगा.
अखिलेश यादव की राजनीतिक समझ कहें या फिर सहजता उनकी हर मौके पर अपने परिवार को साथ रखना लोगों को पसंद आया है. लोगों में उनके परिवार को लेकर काफी सम्मान है. यही वजह है कि पार्टी की खराब छवि पर अखिलेश यादव की सादगी और परिवार के प्रति लगाव भारी पड़ा है.
लोग मानते हैं कि जब-जब अखिलेश यादव राजनीति में अकेले पड़े उनकी पत्नी डिंपल यादव उनके पीछे साहस बनकर खड़ी रहीं. पिछले एक साल में डिंपल का अखिलेश यादव के साथ हर कठिन मौके पर दिखना लोगों को पसंद आया. पार्टी में हुए हाल के इतने बड़े घटनाक्रम के दौरान डिंपल यादव हर पल उनके साथ दिखाई दीं. चुनाव की तैयारी में जब अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी रथयात्रा निकाली थी तब इस रथ में उनके परिवार के किसी बड़े नेता को नहीं देखा गया. अगर देखा गया तो डिंपल यादव को. शायद इस बात अखिलेश यादव तभी अच्छी तरह समझ गए थे कि ऐसी यात्रा में आधी आबादी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. यही वजह है कि रथयात्रा के दौरान उस बस में अखिलेश यादव ने डिंपल के लिए जगह बनाई थी. पार्टी के प्रचार के लिए जारी विडियो में भी अखिलेश यादव ने डिंपल के साथ के कुछ पल साझा किए(तस्वीर ऊपर लगी है). सूबे के दौरे पर अखिलेश यादव अपनी पत्नी डिंपल यादव के साथ निकले तो पूरे सूबे में यह संदेश गया ही होगा कि पार्टी का यह नेता पार्टी की छवि बदलने और सुधारने के लिए हम काम कर रहा है. यह काम किया ही नहीं बल्कि उसे जमीन पर उतारा भी.
पार्टी के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में अखिलेश यादव के साथ डिंपल यादव की मौजूदगी ने समाजवादी पार्टी को कई लोगों को घरों में और दिलों में पहुंचाने के काम भी किया है. पार्टी में अखिलेश यादव के साथ डिंपल यादव की सक्रियता ने पार्टी कार्यकर्ताओं में डिंपल की पकड़ को मजबूत किया है. पार्टी कार्यकर्ता अखिलेश 'भैया' और डिंपल 'भाभी' के नारे लगाते अब सुनाई देते हैं. इससे पहले शायद ही किसी पार्टी में भारतीय समाज के हिसाब से नारे सुनाई दिए हों. डिंपल की सादगी और सौम्यता ने भी लोगों में उनकी स्वीकार्यता को बढ़ाने का काम किया है. हाल ही में पार्टी का घोषणा-पत्र जारी करने के कार्यक्रम में भी भले ही मुलायम सिंह यादव नहीं पहुंचे हों, लेकिन मंच पर अखिलेश के साथ डिंपल खड़ी दिखाई दीं.
पार्टी में अंदरूनी लड़ाई जीतने के बाद अखिलेश यादव ने परिवार के कुछ खास लोगों के टिकट को छोड़कर बाकी उन लोगों के टिकटों को काट दिया जिनकी वजह से पार्टी पर बाहुबलियों को संरक्षण देने के आरोप लगते रहे. यह आलोचना भी है और तारीफ भी कि कानून व्यवस्था को सुधारने के लिए पिछले छह महीने में जो काम अखिलेश यादव सरकार ने किया वह काम वह पिछले चार साल में नहीं कर पाई थी. राज्य की राजनीति में यह इतिहास सा ही है कि कोई पार्टी सत्ता में होने के बाद सत्ताविरोधी लहर के होने की बात को कहीं से भी नहीं स्वीकारती और विपक्ष भी इस बात को भुनाने की पुरजोर कोशिश नहीं कर रहा है. कारण, अखिलेश 'भैया' और डिंपल 'भाभी'.
इस बार पार्टी विकास के एजेंडे पर चुनाव लड़ रही है और यही काम बीजेपी पिछले दो दशकों से कर रही है. कहा जाता है कि अपने पति का हाथ बटाने के लिये वे मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव का ट्वीटर व फेसबुक अकाउण्ट स्वयं देखती हैं.
डिंपल यादव समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष, विधान मण्डल दल के नेता व उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव की धर्मपत्नी तो हैं ही, लेकिन उनकी अपनी अलग पहचान भी है. वह कन्नौज से निर्विरोध सांसद हैं. राजनीतिक क्षेत्र में पहला चुनाव वे हार गईं लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. अंतत: उनके पति अखिलेश यादव ने अपने द्वारा जीती गई कन्नौज लोकसभा सीट उनके लिए खाली कर दी. डिंपल ने इस सीट के लिये अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया. मुकाबले में कांग्रेस, भाजपा और बहुजन समाज पार्टी ने उनके खिलाफ अपना प्रत्याशी ही नहीं उतारा जबकि दो अन्य, दशरथ सिंह शंकवार (संयुक्त समाजवादी दल) और संजू कटियार (स्वतंत्र उम्मीदवार) ने अपना नामांकन वापस ले लिया. जिसका परिणाम यह हुआ कि 2012 का लोक सभा उप-चुनाव उन्होंने निर्विरोध जीतकर उत्तर प्रदेश में एक कीर्तिमान स्थपित किया. डिंपल से पूर्व पुरुषोत्तम दास टंडन ने उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद पश्चिमी लोकसभा सीट सन् 1952 में एक पुरुष प्रत्याशी में रूप में निर्विरोध जीती थी.
शायद पूर्व पार्टी प्रमुख और अब संरक्षक मुलायम सिंह यादव भी राज्य की महिलाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं में वह पकड़ नहीं बना पाए थे जो अखिलेश यादव ने बनाई है. अखिलेश यादव ने राज्य के सांस्कृतिक विरासत के मुताबिक हर वह काम किया जो सीधा लोगों से उन्हें जोड़ता है. देश के सबसे बड़ी आबादी वाले सूबे के सबसे युवा मुख्यमंत्री होने के बाद अखिलेश यादव में बड़े बदलाव देखे गए. अखिलेश यादव ने राजनीति के साथ अपने परिवार को हमेशा बहुत तवज्जो दी.
समाजवादी विकास रथयात्रा
यह सबने देखा, समझा और परखा की बतौर सीएम अखिलेश यादव के साथ उनकी पत्नी डिंपल यादव हमेशा कई मौकों पर साथ खड़ी दिखी हैं. इससे पहले शायद ही राज्य का कोई ऐसा पुरुष मुख्यमंत्री रहा होगा जिसने अपने पत्नी को राजनीति और सामाजिक मौकों पर इतनी तवज्जो दी है. खुद समाजवादी पार्टी के प्रमुख रहे मुलायम सिंह यादव ने ऐसा नहीं किया होगा.
रथयात्रा के दौरान डिंपल यादव
अखिलेश यादव की राजनीतिक समझ कहें या फिर सहजता उनकी हर मौके पर अपने परिवार को साथ रखना लोगों को पसंद आया है. लोगों में उनके परिवार को लेकर काफी सम्मान है. यही वजह है कि पार्टी की खराब छवि पर अखिलेश यादव की सादगी और परिवार के प्रति लगाव भारी पड़ा है.
लोग मानते हैं कि जब-जब अखिलेश यादव राजनीति में अकेले पड़े उनकी पत्नी डिंपल यादव उनके पीछे साहस बनकर खड़ी रहीं. पिछले एक साल में डिंपल का अखिलेश यादव के साथ हर कठिन मौके पर दिखना लोगों को पसंद आया. पार्टी में हुए हाल के इतने बड़े घटनाक्रम के दौरान डिंपल यादव हर पल उनके साथ दिखाई दीं. चुनाव की तैयारी में जब अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी रथयात्रा निकाली थी तब इस रथ में उनके परिवार के किसी बड़े नेता को नहीं देखा गया. अगर देखा गया तो डिंपल यादव को. शायद इस बात अखिलेश यादव तभी अच्छी तरह समझ गए थे कि ऐसी यात्रा में आधी आबादी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. यही वजह है कि रथयात्रा के दौरान उस बस में अखिलेश यादव ने डिंपल के लिए जगह बनाई थी. पार्टी के प्रचार के लिए जारी विडियो में भी अखिलेश यादव ने डिंपल के साथ के कुछ पल साझा किए(तस्वीर ऊपर लगी है). सूबे के दौरे पर अखिलेश यादव अपनी पत्नी डिंपल यादव के साथ निकले तो पूरे सूबे में यह संदेश गया ही होगा कि पार्टी का यह नेता पार्टी की छवि बदलने और सुधारने के लिए हम काम कर रहा है. यह काम किया ही नहीं बल्कि उसे जमीन पर उतारा भी.
पार्टी के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में अखिलेश यादव के साथ डिंपल यादव की मौजूदगी ने समाजवादी पार्टी को कई लोगों को घरों में और दिलों में पहुंचाने के काम भी किया है. पार्टी में अखिलेश यादव के साथ डिंपल यादव की सक्रियता ने पार्टी कार्यकर्ताओं में डिंपल की पकड़ को मजबूत किया है. पार्टी कार्यकर्ता अखिलेश 'भैया' और डिंपल 'भाभी' के नारे लगाते अब सुनाई देते हैं. इससे पहले शायद ही किसी पार्टी में भारतीय समाज के हिसाब से नारे सुनाई दिए हों. डिंपल की सादगी और सौम्यता ने भी लोगों में उनकी स्वीकार्यता को बढ़ाने का काम किया है. हाल ही में पार्टी का घोषणा-पत्र जारी करने के कार्यक्रम में भी भले ही मुलायम सिंह यादव नहीं पहुंचे हों, लेकिन मंच पर अखिलेश के साथ डिंपल खड़ी दिखाई दीं.
पार्टी में अंदरूनी लड़ाई जीतने के बाद अखिलेश यादव ने परिवार के कुछ खास लोगों के टिकट को छोड़कर बाकी उन लोगों के टिकटों को काट दिया जिनकी वजह से पार्टी पर बाहुबलियों को संरक्षण देने के आरोप लगते रहे. यह आलोचना भी है और तारीफ भी कि कानून व्यवस्था को सुधारने के लिए पिछले छह महीने में जो काम अखिलेश यादव सरकार ने किया वह काम वह पिछले चार साल में नहीं कर पाई थी. राज्य की राजनीति में यह इतिहास सा ही है कि कोई पार्टी सत्ता में होने के बाद सत्ताविरोधी लहर के होने की बात को कहीं से भी नहीं स्वीकारती और विपक्ष भी इस बात को भुनाने की पुरजोर कोशिश नहीं कर रहा है. कारण, अखिलेश 'भैया' और डिंपल 'भाभी'.
इस बार पार्टी विकास के एजेंडे पर चुनाव लड़ रही है और यही काम बीजेपी पिछले दो दशकों से कर रही है. कहा जाता है कि अपने पति का हाथ बटाने के लिये वे मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव का ट्वीटर व फेसबुक अकाउण्ट स्वयं देखती हैं.
डिंपल यादव समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष, विधान मण्डल दल के नेता व उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव की धर्मपत्नी तो हैं ही, लेकिन उनकी अपनी अलग पहचान भी है. वह कन्नौज से निर्विरोध सांसद हैं. राजनीतिक क्षेत्र में पहला चुनाव वे हार गईं लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. अंतत: उनके पति अखिलेश यादव ने अपने द्वारा जीती गई कन्नौज लोकसभा सीट उनके लिए खाली कर दी. डिंपल ने इस सीट के लिये अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया. मुकाबले में कांग्रेस, भाजपा और बहुजन समाज पार्टी ने उनके खिलाफ अपना प्रत्याशी ही नहीं उतारा जबकि दो अन्य, दशरथ सिंह शंकवार (संयुक्त समाजवादी दल) और संजू कटियार (स्वतंत्र उम्मीदवार) ने अपना नामांकन वापस ले लिया. जिसका परिणाम यह हुआ कि 2012 का लोक सभा उप-चुनाव उन्होंने निर्विरोध जीतकर उत्तर प्रदेश में एक कीर्तिमान स्थपित किया. डिंपल से पूर्व पुरुषोत्तम दास टंडन ने उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद पश्चिमी लोकसभा सीट सन् 1952 में एक पुरुष प्रत्याशी में रूप में निर्विरोध जीती थी.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
उत्तर प्रदेश चुनाव 2017, अखिलेश यादव, डिंपल यादव, समाजवादी पार्टी, अखिलेश भैया, डिंपल भाभी, Khabar Assembly Polls 2017, Akhilesh Yadav, Dimple Yadav, Samajwadi Party, Akhilesh Bhaiya, Dimple Bhabhi