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This Article is From Feb 11, 2017

यूपी की एक दिलचस्‍प सीट; जो पार्टी यहां से जीतती है, सत्ता तक पहुंचती है...

यूपी की एक दिलचस्‍प सीट; जो पार्टी यहां से जीतती है, सत्ता तक पहुंचती है...
पिछले चार दशकों में जिस भी पार्टी का उम्मीदवार यहां से जीता है, सरकार उसी की बनी है.
नई दिल्‍ली: उत्तर प्रदेश की कासगंज विधानसभा सीट के मतदान केन्द्रों पर वोटरों का सुबह से ही तांता लगा रहा. यहां की लड़ाई दिलचस्प इसलिए है, क्योंकि पिछले चार दशकों में जिस भी पार्टी का उम्मीदवार यहां से जीता है, सरकार उसी की बनी है.

2007 में कासगंज से बीएसपी की टिकट पर जीते हसरत उल्लाह शेरवानी इस बार समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवार हैं. तब 'हाथी' का ज़ोर चला था और प्रदेश में मायावती की सरकार बनी थी. इनको लगता है कि ये अखिलेश के लिए भी खुशकिस्मत साबित होंगे. हसन उल्लाह शेरवानी से एनडीटीवी ने पूछा कि आपने पार्टी बदली. वोटर आस्था बदल दें तो? इस पर उनका जवाब था 'हम ही जीतेंगे, सपा ही सरकार बनाएगी'.

कासगंज का चुनावी इतिहास बताता है कि 1974 से अब तक यहां जिस पार्टी की उम्मीदवार जीता, सरकार उसी की बनी. या फिर वो सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.

एक नज़र...

- 1974, 1980, 1985 में कांग्रेस के उम्मीदवार मनपाल सिंह जीते और कांगेस की सरकार बनी.
- 1977 में इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी की लहर में नेतराम सिंह जीते.
- 1989 में जनता पार्टी के गोवर्धन सिंह जीते और मुलायम सिंह यादव सीएम बने.
- 1991 में नेतराम सिंह जीते और बीजेपी की सरकार बनी.
- 1996 में कल्याण सिंह जीते और बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी. हालांकि तब एसपी-बीएसपी की सरकार बनी.
- 2002 में एसपी के मनपाल सिंह जीते और पार्टी की सरकार बनी.
- 2007 में बीएसपी से हसरत उल्लाह जीते और मायावती की सरकार बनी.
- 2012 में मनपाल फिर जीते और सपा की सरकार बनी.


कासगंज के वोटर अज़ीम कहते हैं कि 'हम वोट डालते हैं तो ये सोचकर की प्रत्याशी के साथ-साथ सरकार भी चुन रहे हैं'.

लेकिन सपा की टक्कर में इस बार बीजेपी के देवेन्द्र राजपूत भी हैं और बीएसपी के अजय चतुर्वेदी भी. अजय चतुर्वेदी दावा करते हैं कि 'हम जीतेंगे और बीएसपी की सरकार बनेगी'. जबकि देवेन्द्र राजपूत का दावा भी जीत का है.

65 हज़ार लोध, 42 हज़ार ब्राह्मण, 40 हज़ार दलित, 38 हज़ार ठाकुर, 36 हज़ार वैश्य और 35 हज़ार मुसलमान मतदाताओं के वोट वाला कासगंज हर पार्टी को जीत की उम्मीद का एक समीकरण देता है.

कासगंज को लेकर दिलचस्पी ऐसी है कि लोग कहते हैं काश इस सीट का नतीजा पहले आ जाता तो 11 मार्च को प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी, इसका अंदाज़ा मिल जाता.

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