अजीत सिंह की आरएलडी पार्टी का महागठबंधन का हिस्सा बनना तय नहीं है
लखनऊ:
पिता मुलायम सिंह यादव से आमना सामना करने के बाद अब अखिलेश यादव के सामने एक और शख्स के साथ डील करने की चुनौती है. यह है राष्ट्रीय लोक दल के अजीत सिंह जो अखिलेश यादव के (बिहार की तर्ज पर) किए जाने वाले महागठबंधन की रणनीति का अहम हिस्सा हैं. लेकिन समस्या यह है कि हफ्तों की बातचीत के बाद भी पश्चिमी यूपी में जाट समुदाय के बीच पहुंच रखने वाली आरएलडी पार्टी के साथ किसी तरह के समझौते पर नहीं पहुंचा जा सका है.
43 साल के अखिलेश यादव एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर बैठना चाहते हैं और उन्होंने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने की घोषणा कर दी है. उन्होंने यह भी कहा है कि वे मिलकर 403 में से 300 सीटें हासिल कर लेंगे. मंगलवार को कांग्रेस ने भी पुष्टि की थी कि औपचारिक रूप से इस गठबंधन की घोषणा दो या तीन दिन में हो जाएगी. अखिलेश यादव के करीबी सूत्रों ने बातया है कि उन्होंने अजीत सिंह को मनाने का काम कांग्रेस को सौंप दिया है. साथ ही कहा है कि वह कांग्रेस को 100 सीटें देंगे जिसमें से वह तय कर सकते हैं कि अजीत सिंह को कितनी देनी है.
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यहीं पर मामला गड़बड़ होता दिख रहा है. बताया जा रहा है कि कांग्रेस ने आरएलडी प्रमुख के बेटे जयंत चौधरी को 20 सीटों का प्रस्ताव दिया है जो लगातार कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद से संपर्क में है. सूत्रों के मुताबिक अजीत सिंह ने कहा है कि वह 30 से कम सीटों से संतुष्ट नहीं होंगे और अगर ऐसा हुआ तो वह बिना किसी गठबंधन के चुनाव लड़ेंगे. कांग्रेस इस फैसले को उलटना चाहती है.
वहीं अखिलेश यादव की पार्टी का कहना है कि यह बात उन्हें परेशान नहीं कर रही है. किरणमय नंदा ने NDTV से कहा कि 2013 में हुए मुजफ्फरनगर (जिसे अजीत सिंह का गढ़ माना जाता है) दंगों के बाद सपा का जाट पार्टी से हाथ मिलाने का मतलब इलाके के मुसलमानों को खुद से दूर करना है. बता दें कि हिंदू-मुसलमानों के बीच हुए तनाव में करीब 60 लोग मारे गए थे और 40 हज़ार से ज्यादा लोग बेघर हो गए थे. उधर बसपा अपनी पार्टी के दिग्गज नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बेटे अफजल को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में युवा मुस्लिम चेहरे की तरह पेश कर रही है.
कांग्रेस के लिए अखिलेश यादव की दोस्ती यूपी में संजीवनी बनकर आई है जहां वह पूरी तरह गायब हो रही थी. यही वजह है कि आरएलडी को गठबंधन में शामिल करने के लिए वह पहल करती दिखाई दे रही है.
वोटरों को फोन कर रहे हैं अखिलेश यादव के 'कॉल सेंटर'
2012 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में आरएलडी ने केवल 9 सीटें जीती थीं. दो साल बाद 2014 के लोकसभा चुनावों में जाटों का बड़ा तबका बीजेपी के साथ हो लिया. लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वोटरों में से 17 फीसदी जाट हैं और अब वो बीजेपी से इस बात को लेकर नाराज हैं कि पार्टी उन्हें सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण पाने वाली जातियों में शामिल नहीं करा सकी. मुजफ्फरनगर में हाल ही में हजारों की संख्या में जुटे जाटों से उनके नेताओं ने बीजेपी को समर्थन नहीं देने की अपील की थी. सूत्रों ने बताया कि पार्टी ने मजबूत जाट नेताओं का समर्थन हासिल करने के लिए उनसे अनौपचारिक बातचीत शुरू भी कर दी है. बीजपी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है, जिसका मतलब है कि अबर अजित सिंह के साथ गठबंधन होता भी है तो राज्य के उन भागों के लिए होगा जहां बाद में चुनाव होने हैं. और उनकी तरफ से दिखाई जा रही दिलचस्पी से आरएलडी के हौसले बुलंद होते दिख रहे हैं.
43 साल के अखिलेश यादव एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर बैठना चाहते हैं और उन्होंने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने की घोषणा कर दी है. उन्होंने यह भी कहा है कि वे मिलकर 403 में से 300 सीटें हासिल कर लेंगे. मंगलवार को कांग्रेस ने भी पुष्टि की थी कि औपचारिक रूप से इस गठबंधन की घोषणा दो या तीन दिन में हो जाएगी. अखिलेश यादव के करीबी सूत्रों ने बातया है कि उन्होंने अजीत सिंह को मनाने का काम कांग्रेस को सौंप दिया है. साथ ही कहा है कि वह कांग्रेस को 100 सीटें देंगे जिसमें से वह तय कर सकते हैं कि अजीत सिंह को कितनी देनी है.
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यहीं पर मामला गड़बड़ होता दिख रहा है. बताया जा रहा है कि कांग्रेस ने आरएलडी प्रमुख के बेटे जयंत चौधरी को 20 सीटों का प्रस्ताव दिया है जो लगातार कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद से संपर्क में है. सूत्रों के मुताबिक अजीत सिंह ने कहा है कि वह 30 से कम सीटों से संतुष्ट नहीं होंगे और अगर ऐसा हुआ तो वह बिना किसी गठबंधन के चुनाव लड़ेंगे. कांग्रेस इस फैसले को उलटना चाहती है.
वहीं अखिलेश यादव की पार्टी का कहना है कि यह बात उन्हें परेशान नहीं कर रही है. किरणमय नंदा ने NDTV से कहा कि 2013 में हुए मुजफ्फरनगर (जिसे अजीत सिंह का गढ़ माना जाता है) दंगों के बाद सपा का जाट पार्टी से हाथ मिलाने का मतलब इलाके के मुसलमानों को खुद से दूर करना है. बता दें कि हिंदू-मुसलमानों के बीच हुए तनाव में करीब 60 लोग मारे गए थे और 40 हज़ार से ज्यादा लोग बेघर हो गए थे. उधर बसपा अपनी पार्टी के दिग्गज नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बेटे अफजल को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में युवा मुस्लिम चेहरे की तरह पेश कर रही है.
कांग्रेस के लिए अखिलेश यादव की दोस्ती यूपी में संजीवनी बनकर आई है जहां वह पूरी तरह गायब हो रही थी. यही वजह है कि आरएलडी को गठबंधन में शामिल करने के लिए वह पहल करती दिखाई दे रही है.
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2012 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में आरएलडी ने केवल 9 सीटें जीती थीं. दो साल बाद 2014 के लोकसभा चुनावों में जाटों का बड़ा तबका बीजेपी के साथ हो लिया. लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वोटरों में से 17 फीसदी जाट हैं और अब वो बीजेपी से इस बात को लेकर नाराज हैं कि पार्टी उन्हें सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण पाने वाली जातियों में शामिल नहीं करा सकी. मुजफ्फरनगर में हाल ही में हजारों की संख्या में जुटे जाटों से उनके नेताओं ने बीजेपी को समर्थन नहीं देने की अपील की थी. सूत्रों ने बताया कि पार्टी ने मजबूत जाट नेताओं का समर्थन हासिल करने के लिए उनसे अनौपचारिक बातचीत शुरू भी कर दी है. बीजपी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है, जिसका मतलब है कि अबर अजित सिंह के साथ गठबंधन होता भी है तो राज्य के उन भागों के लिए होगा जहां बाद में चुनाव होने हैं. और उनकी तरफ से दिखाई जा रही दिलचस्पी से आरएलडी के हौसले बुलंद होते दिख रहे हैं.
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