प्रतीकात्मक चित्र
तिरूवनंतपुरम:
केरल में सभी की नजरें अब कल होने वाली मतगणना पर हैं जो तय करेगी कि सत्ता कांग्रेस नीत यूडीएफ के हाथों में ही रहती है या फिर केरल वैकल्पिक सरकार के अपने इतिहास को दोहराते हुए सत्ता माकपा नीत एलडीएफ के हवाले कर देगा। लोगों की नजरें भाजपा पर भी हैं जिसने इस बार राज्य में अपना खाता खोलने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है।विधानसभा की 140 सीटों के लिए इस बार 109 महिला उम्मीदवारों सहित कुल 1,203 उम्मीदवार चुनाव मैदान में है। राज्य में मतगणना गुरुवार सुबह शुरू होगी और पहला रुझान एक घंटे बाद आ जाने की उम्मीद है।
दोपहर 12 बजे तक विजेताओं को लेकर तस्वीर साफ हो सकती है। निर्वाचन आयोग के सूत्रों के अनुसार मतगणना के लिए सुरक्षा व्यवस्था सहित सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। प्रमुख उम्मीदवारों में मुख्यमंत्री ओमन चांडी, गृहमंत्री रमेश चेन्नितला, मार्क्सवादी नेता वीएस अच्युतानंदन, पिनरई विजयन, आईयूएमएल नेता एवं उद्योग मंत्री पीके कुन्हालिकुट्टी, पूर्व वित्त मंत्री केएम मणि :केरल कांग्रेस-एम:, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष कुम्मनम राजशेखरन, पूर्व केंद्रीय मंत्री ओ. राजगोपाल तथा क्रिकेटर श्रीसंत शामिल हैं ।
कैसा हुआ केरल में मतदान?
केरल में 140 विधानसभा सीटों के लिए 16 मई को हुए चुनाव में 77.35 प्रतिशत मतदान हुआ है। कांग्रेस नीत यूडीएफ सत्ता अपने हाथ में बरकरार रहने की उम्मीद कर रहा है और राज्य में नया इतिहास बनाने का दावा कर रहा है, वहीं माकपा नीत एलडीएफ केरल में ‘एक बार यूडीएफ तो एक बार एलडीएफ’ की सरकार बनने के राज्य के चुनावी इतिहास की पुनरावृत्ति की उम्मीद में है।
क्यों है केरल चुनाव परिणामों का बेसब्री से इंतजार?
चुनाव विश्लेषक ही नहीं, बल्कि देशभर के लोग केरल के विधानसभा चुनाव परिणामों का बड़ी उत्सुकता से इंतजार करते हैं। इस बार भी ऐसा ही है ।जनता जहां चुनाव परिणाम का बेसब्री से इंतजार कर रही है, वहीं उम्मीदवारों के दिलों की धड़कनें तेज हैं । सबके जेहन में यही सवाल है कि क्या केरल फिर अपना इतिहास दोहराएगा जहां हर पांच साल के अंतराल में सत्ता यूडीएफ और एलडीएफ के पास जाती रहती है। क्योंकि चुनाव बाद सर्वेक्षण :एग्जिट पोल: भी कुछ ऐसा ही संकेत देते नजर आते हैं।
क्या कहता है एग्जिट पोल?
एग्जिट पोल से मिले संकेतों ने भी एलडीएफ के विश्वास को मजबूत करने का काम किया है। भाजपा को भी इस बार केरल में अपना खाता खुलने की उम्मीद है जिसने राज्य में श्री नारायण धर्म परिपालन योगम (एसएनडीपी) द्वारा संचालित नवनिर्मित पार्टी ‘भारत धर्म जन सेना’(बीडीजेएस) के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा है । एसएनडीपी पिछड़े एझावा समुदाय का संगठन है जिसका कुछ क्षेत्रों में अच्छा प्रभाव है ।
क्या हाल रहे प्रचार के दौरान?
राज्य में दो महीने तक चले तूफानी चुनाव प्रचार अभियान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई राष्ट्रीय नेता अपने-अपने दलों का प्रचार करने के लिए पहुंचे। मोदी के केरल की तुलना सोमालिया से करने संबंधी टिप्पणी को लेकर जहां विवाद हुआ, वहीं भाजपा ने उनकी टिप्पणी का बचाव किया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तथा एके एंटनी और गुलाम नबी आजाद जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेता भी अपनी पार्टी के प्रचार के लिए केरल पहुंचे। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा के राष्ट्रीय सचिव सुधाकर रेड्डी, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे जाने माने नेताओं ने भी संबंधित दलों और उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार किया। इन नेताओं के अतिरिक्त भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, कुछ केंद्रीय मंत्रियों, माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य प्रकाश करात और बृंदा करात तथा राष्ट्रद्रोह के आरोपों के चलते विवाद में आए जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने भी चुनाव प्रचार में सक्रियता से भाग लिया। केरल में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को भी कुछ जनसभाओं को संबोधित करना था, लेकिन अस्वस्थ होने की वजह से वह ऐसा नहीं कर पाए। एलडीएफ के 93 वर्षीय नेता वीएस अचयुतानंदन ने अपनी उम्र की परवाह न करते हुए भीषण गर्मी में चुनाव प्रचार में भाग लिया और पलक्कड़ जिले में अपने निर्वाचन क्षेत्र मालमपुझा सहित राज्य के अन्य क्षेत्रों में भी चुनावी सभाओं को संबोधित किया।
क्या है केरल चुनाव का राष्ट्रीय राजनीति में महत्व?
शेष भारत में अपनी कमजोर स्थिति और 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के चलते केरल में जहां सत्ता बचाए रखना कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है, वहीं माकपा नीत एलडीएफ के लिए भी यह प्रतिष्ठा की लड़ाई है क्योंकि मार्क्सवादी मोर्चे की अब केवल त्रिपुरा में ही सरकार रह गयी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में तूफानी जीत के बाद दिल्ली विधानसभा और बिहार विधानसभा चुनाव में हार देख चुकी भाजपा के लिए भी केरल विधानसभा में खाता खोलना काफी अहम माना जा रहा है।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
दोपहर 12 बजे तक विजेताओं को लेकर तस्वीर साफ हो सकती है। निर्वाचन आयोग के सूत्रों के अनुसार मतगणना के लिए सुरक्षा व्यवस्था सहित सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। प्रमुख उम्मीदवारों में मुख्यमंत्री ओमन चांडी, गृहमंत्री रमेश चेन्नितला, मार्क्सवादी नेता वीएस अच्युतानंदन, पिनरई विजयन, आईयूएमएल नेता एवं उद्योग मंत्री पीके कुन्हालिकुट्टी, पूर्व वित्त मंत्री केएम मणि :केरल कांग्रेस-एम:, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष कुम्मनम राजशेखरन, पूर्व केंद्रीय मंत्री ओ. राजगोपाल तथा क्रिकेटर श्रीसंत शामिल हैं ।
कैसा हुआ केरल में मतदान?
केरल में 140 विधानसभा सीटों के लिए 16 मई को हुए चुनाव में 77.35 प्रतिशत मतदान हुआ है। कांग्रेस नीत यूडीएफ सत्ता अपने हाथ में बरकरार रहने की उम्मीद कर रहा है और राज्य में नया इतिहास बनाने का दावा कर रहा है, वहीं माकपा नीत एलडीएफ केरल में ‘एक बार यूडीएफ तो एक बार एलडीएफ’ की सरकार बनने के राज्य के चुनावी इतिहास की पुनरावृत्ति की उम्मीद में है।
क्यों है केरल चुनाव परिणामों का बेसब्री से इंतजार?
चुनाव विश्लेषक ही नहीं, बल्कि देशभर के लोग केरल के विधानसभा चुनाव परिणामों का बड़ी उत्सुकता से इंतजार करते हैं। इस बार भी ऐसा ही है ।जनता जहां चुनाव परिणाम का बेसब्री से इंतजार कर रही है, वहीं उम्मीदवारों के दिलों की धड़कनें तेज हैं । सबके जेहन में यही सवाल है कि क्या केरल फिर अपना इतिहास दोहराएगा जहां हर पांच साल के अंतराल में सत्ता यूडीएफ और एलडीएफ के पास जाती रहती है। क्योंकि चुनाव बाद सर्वेक्षण :एग्जिट पोल: भी कुछ ऐसा ही संकेत देते नजर आते हैं।
क्या कहता है एग्जिट पोल?
एग्जिट पोल से मिले संकेतों ने भी एलडीएफ के विश्वास को मजबूत करने का काम किया है। भाजपा को भी इस बार केरल में अपना खाता खुलने की उम्मीद है जिसने राज्य में श्री नारायण धर्म परिपालन योगम (एसएनडीपी) द्वारा संचालित नवनिर्मित पार्टी ‘भारत धर्म जन सेना’(बीडीजेएस) के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा है । एसएनडीपी पिछड़े एझावा समुदाय का संगठन है जिसका कुछ क्षेत्रों में अच्छा प्रभाव है ।
क्या हाल रहे प्रचार के दौरान?
राज्य में दो महीने तक चले तूफानी चुनाव प्रचार अभियान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई राष्ट्रीय नेता अपने-अपने दलों का प्रचार करने के लिए पहुंचे। मोदी के केरल की तुलना सोमालिया से करने संबंधी टिप्पणी को लेकर जहां विवाद हुआ, वहीं भाजपा ने उनकी टिप्पणी का बचाव किया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तथा एके एंटनी और गुलाम नबी आजाद जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेता भी अपनी पार्टी के प्रचार के लिए केरल पहुंचे। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा के राष्ट्रीय सचिव सुधाकर रेड्डी, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे जाने माने नेताओं ने भी संबंधित दलों और उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार किया। इन नेताओं के अतिरिक्त भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, कुछ केंद्रीय मंत्रियों, माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य प्रकाश करात और बृंदा करात तथा राष्ट्रद्रोह के आरोपों के चलते विवाद में आए जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने भी चुनाव प्रचार में सक्रियता से भाग लिया। केरल में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को भी कुछ जनसभाओं को संबोधित करना था, लेकिन अस्वस्थ होने की वजह से वह ऐसा नहीं कर पाए। एलडीएफ के 93 वर्षीय नेता वीएस अचयुतानंदन ने अपनी उम्र की परवाह न करते हुए भीषण गर्मी में चुनाव प्रचार में भाग लिया और पलक्कड़ जिले में अपने निर्वाचन क्षेत्र मालमपुझा सहित राज्य के अन्य क्षेत्रों में भी चुनावी सभाओं को संबोधित किया।
क्या है केरल चुनाव का राष्ट्रीय राजनीति में महत्व?
शेष भारत में अपनी कमजोर स्थिति और 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के चलते केरल में जहां सत्ता बचाए रखना कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है, वहीं माकपा नीत एलडीएफ के लिए भी यह प्रतिष्ठा की लड़ाई है क्योंकि मार्क्सवादी मोर्चे की अब केवल त्रिपुरा में ही सरकार रह गयी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में तूफानी जीत के बाद दिल्ली विधानसभा और बिहार विधानसभा चुनाव में हार देख चुकी भाजपा के लिए भी केरल विधानसभा में खाता खोलना काफी अहम माना जा रहा है।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
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