वीएस अच्युतानंदन (फाइल फोटो)
वेलिक्ककतु शंकरन (वीएस) अच्युतानंदन भले ही उम्र के मामले में 90 का आंकड़ा पार कर चुके हों, लेकिन जोश अभी भी युवाओं जैसा ही है। कम्युनिस्ट पार्टी के सबसे बुजुर्ग नेताओं में शुमार अच्युतानंदन ने एलडीएफ गठबंधन के लिए 'प्रतिष्ठा की लड़ाई' बने केरल विधानसभा चुनाव में प्रचार में पूरी ताकत झोंकी। '92 साल का यह युवा' प्रदेश के लगभग हर प्रमुख हिस्से तक पहुंचा और करीब 70 रैलियों को संबोधित किया। रोजाना उन्होंने औसत 200 किमी की यात्रा की।
केरल में कम्युनिस्ट पार्टी को स्थापित किया
अच्युतानंदन भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के संस्थापक नेताओं में से एक थे। केरल राज्य में पार्टी कार्यकर्ताओं को तैयार करने में भी उनकी अहम भूमिका रही है। केरल के अलपुझा जिले में 20 अक्टूबर 1923 को अच्युतानंदन का जन्म हुआ। बचपन संघर्ष में मुजरा। चार साल की कच्ची उम्र में मां का निधन हो गया और 11 तक पहुंचते-पहुंचते पिता भी चल बसे। नतीजा यह हुआ कि सातवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़कर टेलरिंग के काम में बड़े भाई का हाथ बंटाना पड़ा। जीवन यापन के लिए चल रहे इस संघर्ष के बीच वे राजनीतिक तौर पर भी सक्रिय रहे। स्वाधीनता आंदोलन और कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से छेड़े गए आंदोलन में शिरकत की। इस दौरान गिरफ्तार हुए और पुलिस की 'ज्यादती' का शिकार भी हुए। केरल में जमीन को लेकर चले आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई।
82 की उम्र में बने थे राज्य के सबसे बुजुर्ग सीएम
श्रमिक संगठनों की गतिविधियों में भाग लेते-लेते राजनीति में प्रवेश किया। वर्ष 1938 में कांग्रेस में शामिल हुए और दो वर्ष बाद ही कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ गए। केरल स्टेट कमेटी में सचिव के अलावा सीपीआईएम पोलित ब्यूरो में भी सदस्य रह चुके हैं। कई बार विधायक का चुनाव जीते और केरल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद संभाला। 1996 के विधानसभा चुनाव में एलडीएफ की ओर से उन्हें सीएम का उम्मीदवार बनाया गया। इस चुनाव में राज्य की 140 सीटों में से 80 में एलडीएफ को जीत मिली, लेकिन अच्युतानंदन को हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में ईके नयनार मुख्यमंत्री बनाए गए। बहरहाल, 2006 के विधानसभा चुनाव में मलमपुझा सीट से यूडीएफ के उम्मीदवार को हराकर अच्युतानंदन न केवल विधायक बने बल्कि राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। उस समय 82 वर्ष की उम्र में वे केरल के सबसे बुजुर्ग मुख्यमंत्री थे।
मुख्यमंत्री काल के दौरान विवादों में भी घिरे
2011 के विधानसभा चुनाव में जब माकपा ने अच्युतानंदन को टिकट नहीं दिया तो पूरे केरल में इसका विरोध हुआ। इस विरोध के बाद अच्युतानंदन को मलमपुझा सीट से टिकट दिया गया जहां से वे करीब 25 हजार वोटों से जीते। हालांकि इन चुनाव में एलडीएफ को यूडीएफ के हाथों सत्ता गंवानी पड़ी। अपने मुख्यमंत्री काल के दौरान अच्युतानंदन विवादों में भी घिरे। मुंबई हमले में शहीद एनएसजी कमांडो मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के संबंध में उनके बयान की आलोचना को उनकी अपनी पार्टी सीपीएम ने भी की थी।
केरल में कम्युनिस्ट पार्टी को स्थापित किया
अच्युतानंदन भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के संस्थापक नेताओं में से एक थे। केरल राज्य में पार्टी कार्यकर्ताओं को तैयार करने में भी उनकी अहम भूमिका रही है। केरल के अलपुझा जिले में 20 अक्टूबर 1923 को अच्युतानंदन का जन्म हुआ। बचपन संघर्ष में मुजरा। चार साल की कच्ची उम्र में मां का निधन हो गया और 11 तक पहुंचते-पहुंचते पिता भी चल बसे। नतीजा यह हुआ कि सातवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़कर टेलरिंग के काम में बड़े भाई का हाथ बंटाना पड़ा। जीवन यापन के लिए चल रहे इस संघर्ष के बीच वे राजनीतिक तौर पर भी सक्रिय रहे। स्वाधीनता आंदोलन और कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से छेड़े गए आंदोलन में शिरकत की। इस दौरान गिरफ्तार हुए और पुलिस की 'ज्यादती' का शिकार भी हुए। केरल में जमीन को लेकर चले आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई।
82 की उम्र में बने थे राज्य के सबसे बुजुर्ग सीएम
श्रमिक संगठनों की गतिविधियों में भाग लेते-लेते राजनीति में प्रवेश किया। वर्ष 1938 में कांग्रेस में शामिल हुए और दो वर्ष बाद ही कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ गए। केरल स्टेट कमेटी में सचिव के अलावा सीपीआईएम पोलित ब्यूरो में भी सदस्य रह चुके हैं। कई बार विधायक का चुनाव जीते और केरल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद संभाला। 1996 के विधानसभा चुनाव में एलडीएफ की ओर से उन्हें सीएम का उम्मीदवार बनाया गया। इस चुनाव में राज्य की 140 सीटों में से 80 में एलडीएफ को जीत मिली, लेकिन अच्युतानंदन को हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में ईके नयनार मुख्यमंत्री बनाए गए। बहरहाल, 2006 के विधानसभा चुनाव में मलमपुझा सीट से यूडीएफ के उम्मीदवार को हराकर अच्युतानंदन न केवल विधायक बने बल्कि राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। उस समय 82 वर्ष की उम्र में वे केरल के सबसे बुजुर्ग मुख्यमंत्री थे।
मुख्यमंत्री काल के दौरान विवादों में भी घिरे
2011 के विधानसभा चुनाव में जब माकपा ने अच्युतानंदन को टिकट नहीं दिया तो पूरे केरल में इसका विरोध हुआ। इस विरोध के बाद अच्युतानंदन को मलमपुझा सीट से टिकट दिया गया जहां से वे करीब 25 हजार वोटों से जीते। हालांकि इन चुनाव में एलडीएफ को यूडीएफ के हाथों सत्ता गंवानी पड़ी। अपने मुख्यमंत्री काल के दौरान अच्युतानंदन विवादों में भी घिरे। मुंबई हमले में शहीद एनएसजी कमांडो मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के संबंध में उनके बयान की आलोचना को उनकी अपनी पार्टी सीपीएम ने भी की थी।