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शरीर की गंध वाला थीसिस हुआ वायरल, पोस्ट पर लोग बोले- इसकी क्या जरूरत थी

शरीर की गंध को नस्लवाद से जोड़ने वाले अध्ययन ने सोशल मीडिया पर हंगामा मचा दिया है. अब लोग इसका अधय्यन करने वाले को खूब ट्रोल कर रहे हैं.

शरीर की गंध वाला थीसिस हुआ वायरल, पोस्ट पर लोग बोले- इसकी क्या जरूरत थी
शरीर की गंध को नस्लवाद से जोड़ने वाला अध्ययन चर्चा में..

Body Odour With Racism Thesis : एक सोशल मीडिया यूजर ने हाल ही में एक्स हैंडल पर बताया कि उसने शोध प्रबंध पेश कर और 'बिना किसी सुधार के मौखिक परीक्षा' देकर अपनी पीएचडी पूरी कर ली है. इन दिनों उनके एक्स पोस्ट ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच रखा है. उन्होंने पीएचडी के दौरान 'ऑल्फैक्टरी एथिक्स: द पॉलिटिक्स ऑफ स्मेल इन मॉडर्न एंड कंटेम्परेरी प्रोज' का अध्ययन किया है, यानि शरीर की गंध को नस्लवाद से जोड़ने का अध्ययन. डॉ. ऐली लूक्स ने दावा किया है कि वह अब इसे कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं. अब इनका पोस्ट लोगों के बीच खूब वायरल हो रहा है.

शरीर की गंध पर अध्ययन (Thesis Linking Body Odour With Racism)

डॉ. ऐली लूक्स ने अपने एक्स हैंडल पर पोस्ट शेयर कर कैप्शन में लिखा है, 'मुझे यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि मैंने अपना वाइवा बिना किसी करेक्शन के पास कर लिया है और अब मैं पीएचडी हूं'. इस पोस्ट के साथ लूक्स ने उन लोगों के लिए, जो पढ़ने में रूचि रखते हैं, अपना अध्ययन भी शेयर किया है. इस थीसिस का उद्देश्य लिंग, वर्ग, यौन, नस्लीय और प्रजातियों की शक्ति संरचनाओं को बनाने और नष्ट करने में गंध के अनुप्रयोग की सुविधा प्रदान करने वाले अंतर्निहित तर्कों को स्थापित करके घ्राण उत्पीड़न का एक अंतरसंबंधी और व्यापक अध्ययन पेश करना है'. वहीं, इस अध्ययन के पहले चैप्टर में यह जानने को मिलेगा कि किसी की भी गंध सूंघकर उसके वर्ग के बारे में जाना जा सकता है, खासकर वो लोग जो होमलेस हैं.

यहां देखें पोस्ट 

लोगों का क्या कहना है? (Body Odour With Racism Thesis)

अब इस अधय्यन पर लोगों का क्या कहना है आइए जानते हैं. डॉ. लूक्स के अध्ययन पर अब कई लोगों के कमेंट्स आ रहे हैं. एक यूजर ने सवाल उठाते हुए लिखा है, 'आपने समय और पैसा इस अध्ययन पर खर्च किया, जिसका रियल लाइफ में कोई मतलब नहीं है'. वहीं, एक यूजर ने लिखा है, 'जो लोग इस अध्ययन को नहीं समझ पा रहे हैं मैं उन्हें बता दूं, 'यह अध्ययन बताता है कि जब लोगों से बदबू आती है, तो इसे पसंद न करना नस्लवादी और वर्गवादी क्यों है? एक और ने लिखा है, 'इस थीसिस को पास क्यों किया गया?, इसका कोई महत्व नहीं है'. एक ने लिखा है, 'टैक्स पैसा खर्च कर दिया, अब कर्ज के लिए तैयार रहें'. वहीं, कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो इस अध्ययन को सपोर्ट कर रहे हैं. बता दें, इस पोस्ट पर 3.2 मिलियन व्यूज और 2 हजार से ज्यादा कमेंट्स आ चुके हैं.

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