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This Article is From Apr 03, 2017

इस शख्स से मिलते ही फूट-फूटकर रोने लगे दलाई लामा, 58 साल पुरानी बात सुनकर सिहर जाते हैं धर्मगुरु

इस शख्स से मिलते ही फूट-फूटकर रोने लगे दलाई लामा, 58 साल पुरानी बात सुनकर सिहर जाते हैं धर्मगुरु
नरेन चंद्र वही फौजी हैं, जिन्होंने 1959 में चीनी हमले से बचाकर दलाई लामा को तिब्बत से भारत लेकर आए थे.
गुवाहाटी: गांव या मोहल्ले में किसी वजह से झगड़ा शुरू हो गया हो. हर तरफ खून-खराबा का माहौल हो, डर के मारे आप सहमे हुए हों. ऐसे में कोई शख्स आपको उस माहौल से बचाकर सुरक्षित जगह पहुंचा दे. वर्षों बाद उस जान बचाने वाले शख्स से आपकी मुलाकात हो, जरा सोचिए आप उस वक्त कैसा अनुभव करेंगे. कुछ ही ऐसा ही नजारा असम के गुवाहाटी शहर में रविवार को देखने को मिला. तिब्बतियों के धर्म गुरु दलाई लामा असम राइफल्स के रिटायर्ड हवलदार नरेन चंद्र दास से मिलकर भावुक हो गए. नरेन चंद्र वही फौजी हैं, जिन्होंने 1959 में चीनी हमले से बचाकर दलाई लामा को तिब्बत से भारत लेकर आए थे. अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर से एस्कॉर्ट कर भारत लाने वाली फौजी को देखते ही दलाई लामा की आंखों से आंसू बहने लगे. दलाई लामा ने कहा कि आपका चेहरा देखकर लगता है कि अब मैं भी बुजुर्ग हो गया हूं. 58 साल पहले आपने मेरी जान बचाई थी.
 
कैमरे में कैद हुई भावुक पल की ये तस्वीरें असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल और केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने अपने ट्विटर पेज से ट्वीट किया है.

नरेन चंद्र को देखते ही दलाई लामा भावुक होते हुए उनके गले लग गए. उन्हें सलाम किया. दोनों के बीच काफी कुछ बातें भी हुईं. यह भावुक पल माछखोवा में प्रज्ञयोति आईटीए कल्चरल सेंटर में दिखा. रिजिजू ने दलाई के भारत पहुंचने के वक्त की कई अन्य तस्वीरें भी ट्वीट की हैं.

मालूम हो कि साल 1959 में चीनी सेना दलाई लामा को बंधक बनाना चाहती थी. तभी भारतीय फौजियों ने उन्हें बचाकर भारत लेकर आई थी. उस समय दलाई लाम महज 23 साल के थे. वहीं उनकी जान बचाने वाले नरेन चंद्र सिंह 20 साल के थे. नरेन दास ने बताया कि वह 1957 में असम राइफल्स में शामिल हुए थे.

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