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This Article is From Jul 14, 2013

जहां जमीन बेचते नहीं, खरीदते हैं किसान

जहां जमीन बेचते नहीं, खरीदते हैं किसान
रायपुर: थोड़े दिनों पहले की ही तो बात है, लगता था कि गांव उजड़ ही जाएगा। बेहतरीन जमीन, समझदार किसान और भरपूर पानी के बावजूद खेत उदास नजर आते। पानी खेतों में ठहरता ही नहीं। फसलें प्यासी ही रह जातीं। लगता कि महंगाई किसी रोज समूची जमीन ही निगल जाएगी। खेत-खार बेचकर किसी रोज शहर की ओर रुख करना होगा। लेकिन हुआ उल्टा। अब किसान जमीन बेचने की नहीं सोचते, बल्कि खरीद रहे हैं। वे सोचते हैं कि जो बच्चे पढ़ने के लिए बड़े शहरों में गए हैं, वे लौटेंगे तो फसलें और झूम उठेंगी।

छत्तीसगढ़ में अभनपुर से 22 किमी दूर महानदी के किनारे बसा है चंपारण। यह वह भूमि है जहां महाप्रभु वल्लभाचार्य ने जन्म लिया। 22 सौ लोगों के इस गांव में खेती की जमीन 680 हेक्टेयर है।

गांव में वे सभी संसाधन मौजूद हैं जो एक अच्छे गांव में होने चाहिए, लेकिन तब भी एक बहुत बड़ी खामी यहां के लोगों को हमेशा सालती रही। चारों ओर फैली हरियाली उन्हें झूठी लगती रही, क्योंकि भरपूर सिंचाई के बाद भी खेतों से उपज पर्याप्त नहीं मिल पाती थी।

दरअसल, इस इलाके का महानदी का कछारी इलाका होना किसानों के लिए जहां फायदेमंद था तो नुकसानदेह भी। दूसरे सिंचाई-संपन्न इलाकों से इतर इस इलाके की जमीन पर फसलें उगाने के लिए कुछ हटकर उपाय करने की जरूरत थी। जमीन ऐसी नहीं है कि नहर से भरपूर पानी देकर भी अच्छी उपज ली जा सके। कुएं भी कछारी मिट्टी की वजह से सफल नहीं हो पा रहे थे। यही हाल नलकूपों का था। यहां की जमीन पर अच्छी उपज के लिए ऐसे संसाधन चाहिए थे, जिनके जरिये थोड़े-थोड़े अंतराल में थोड़ी-थोड़ी सिंचाई की जा सके।

सरकार ने समस्या को पहचाना और फिर तो जैसे चमत्कार हो गया। 17 एकड़ के मालिक शोभाराम की जमीन 23 एकड़ की हो गई। भोलाराम चक्रधारी अब सात एकड़ में किसानी कर रहे हैं, जबकि पहले उनके पास सिर्फ चार एकड़ ही जमीन थी। नोहर सिंह ने भी डेढ़ एकड़ जमीन खरीदी है और अब वे साढ़े चार एकड़ में खेती कर रहे हैं। गांव में ट्रैक्टर, थ्रिलर, रोटावेटर, थ्रेसर की आवाजें गूंज रही हैं।

पहले यहां सिर्फ धान की खेती होती थी, अब तो सब्जियों का भी रकबा बढ़ रहा है। मक्का, मूंगफली, गन्ना, पपीता जैसी अच्छी आमदनी देने वाली फसलें लहलहा रही हैं। रबी में गेहूं और चना की उपज लोग ले रहे हैं। यहां तक कि मटर और सरसों भी यहां बोई जाने लगी हैं।  

सरकार ने समस्या को समझते ही उपाय शुरू किए। इन्हीं उपायों का असर है कि अब यह गांव संपन्न हो चुका है। बच्चे गांव के स्कूल में तो पढ़ते ही हैं, 10 से ज्यादा किसानों ने अपने बच्चों का दाखिला नयापारा के अंग्रेजी स्कूलों में भी कराया है। चार बच्चे राज्य से बाहर दिल्ली, पूना और नागपुर में पढ़ाई कर रहे हैं। गांव के कच्चे घर अब पक्के मकान में तब्दील हो रहे हैं।

उपाय बहुत आसान था, लेकिन इसे धरातल पर उतारने के लिए इच्छाशक्ति की जरूरत थी। राज्य सरकार ने कृषि अफसरों को सक्रिय किया। 35 किसानों के खेतों में विशेष तकनीक से उथले नलकूपों का खनन करवाया गया, उन्हें अनुदान दिया गया। इन नलकूपों में 20 स्प्रिकलर और दो ड्रिप सिस्टम की सहायता से 115 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई का साधन उपलब्ध करा दिया गया। और बस, बदल गई जिंदगी।

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