फूरन बासिमात्री ने सेना में अपनी नौकरी के दौरान बहुत खून देखा था और बहुत ही जांबाजी दिखाई, लेकिन मंगलवार की घटना के लिए वह तैयार नहीं था। उसके भाई को पहले तीर से घायल किया गया, उसके बाद उसे भाले से मारा गया और जब वह गिर गया तब उसे पकड़कर उसका गला रेत दिया गया। इन सब के बाद भी जब दंगाइयों का मन नहीं भरा तब उन्होंने घर को आग के हवाले कर दिया।
पचास साल के फूरन कहते हैं कि सबसे पीड़ादायक बात यह है कि यह दंगाई कोई और नहीं हमारे पड़ोसी ही थे। तीन दिन पहले जब एनडीएफबी (एस) के सदस्यों ने एक साथ कोकराझार, सोनितुर और चिरांग जिलों में अचानक हमलाकर करीब 80 लोगों की हत्या कर दी, तब अचानक कुछ वर्षों से बोडो और आदिवासियों के बीच चली आ रही शांति को धक्का लगा।
20 वर्षीय आदिवासी लड़के मोंगोल किस्तु ने अपना गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि क्या हम जानवर हैं, जिनके भविष्य में यही लिखा है। 1996 में जब में छोटा था तब भी इस प्रकार की घटना को अंजाम दिया गया था। चिरांग के गारुभासा ने बताया कि उनके गांव के पास कोई हिंसा नहीं हुई और न ही कोई हमला हुआ, लेकिन डर की वजह से उनके तमाम लोग राहत शिविरों में आकर रह रहे हैं। आदिवासियों के राहत शिविरों से थोड़ी ही दूर पर एक अन्य स्कूल में बोडो लोग भी राहत शिविर में रह रहे हैं। उनका भी यही कहना है कि उन्हें भी यही भय है कि अब आदिवासी लोग उनके गांवों पर हमला करेंगे और बदला लेंगे।
धर्मेश्वर बासुमात्री ने बताया कि पहले हमले के बाद से ही वह लोग अपना गांव छोड़कर राहत शिविरों में आकर रहने लगे। पिछले कुछ दिनों में कुछेक आगजनी की घटनाओं को छोड़कर किसी बड़ी वारदात को अंजाम नहीं दिया गया है। फिलहाल बनाए गए 26 राहत कैंपों में रह रहे हजारों लोग इतने डरे हुए हैं कि वे अपने घरों को वापस जाने को तैयार नहीं हैं।
इलाके में तैनात 18 महार के कर्नल पीपी सिंह का कहना है कि पिछले दो दिनों में हमले की कथित रिपोर्ट के बारे में करीब 2000 फर्जी फोन कॉल आईं हैं।
देवहरि में दोनों समुदाय के लोग सेना के एक शिविर के दोनों ओर है और दोनों में इतना अविश्वास और भय है कि कोई दूसरी ओर के सदस्य से बात तक नहीं कर रहा है। हिंसा प्रभावित तीनों जिलों में फिलहाल शांति दिख रही है, लेकिन एक मामूली सी घटना भी माहौल खराब कर सकती है।
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