विज्ञापन
This Article is From Aug 28, 2015

क्या आप जानते हैं अमेरिका भी कश्मीर में जनमत संग्रह के खिलाफ था

क्या आप जानते हैं अमेरिका भी कश्मीर में जनमत संग्रह के खिलाफ था
वाशिंगटन: पाकिस्तान ने 1965 का युद्ध शुरू करने के बाद कश्मीर में जनमत संग्रह के लिए अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र से आश्वासन पाने की पुरजोर कोशिश की थी, लेकिन इसमें नाकाम रहा था।

उस समय के गोपनीय अमेरिकी दस्तावेजों को सार्वजनिक किए जाने से यह खुलासा हुआ है।

इनके अनुसार, भारतीय बल जिस दिन पाकिस्तान में घुसे थे उस दिन पाकिस्तान स्थित तत्कालीन अमेरिकी राजदूत वाल्टर पैट्रिक मैक्कोनॉई तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान और विदेश मंत्री भुट्टो से मिले थे जो अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कश्मीर में जनमत संग्रह कराने को लेकर आश्वासन चाहते थे।

बातचीत के दौरान अमेरिकी राजदूत ने उनसे कहा था कि इस युद्ध के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार है, क्योंकि उसने कश्मीर में अपने सुरक्षा बल भेजे और साम्यवादी चीन के खिलाफ इस्तेमाल के लिए दिए गए अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया।

उसी दिन अमेरिकी प्रशासन ने मैक्कोनॉई को एक अलग टेलीग्राम भेजकर पाकिस्तान को यह संदेश देने के लिए कहा था कि वह खुद को पीड़ित के तौर पर नहीं पेश ना करे क्योंकि वह खुद ही इसके लिए जिम्मेदार है।

लेकिन अमेरिकी अधिकारियों को बिना किसी शर्त के संघर्षविराम के लिए पाकिस्तान को राजी करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी।

1965 के भारत-पाक युद्ध के चरम पर पहुंचने के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन को पत्र लिखकर बताया था कि भारत सरकार बिना किसी शर्त के युद्धविराम पर राजी होने के लिए तैयार है।

उन्होंने 16 सितंबर, 1965 की तारीख वाले अपने पत्र में कश्मीर में जनमत संग्रह की बात को खारिज करते हुए कहा था कि इससे जुड़ा 1948 का संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव अब स्वीकार्य नहीं है।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
अमेरिका, 1965 का युद्ध, जनमत संग्रह, कश्मीर जनमत संग्रह, US, 1965 War, Kashmir Referendum