संयुक्त राष्ट्र:
भारत ने संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों की जरूरतों और संसाधनों के बीच गम्भीर असंतुलन को रेखांकित किया है, और इसके मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत शांति स्थापना की अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी को फिर से दोहराया है। भारत ने कहा है कि पिछले दो दशकों में संयुक्त राष्ट्र का शांति कार्यों पर कुल खर्च 50 अरब डॉलर से कम था, जो कि अफगानिस्तान में तैनात अंतरराष्ट्रीय बल के लिए आवंटित वार्षिक बजट से भी कम हैं। 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता इस महीने भारत के पास है। परिषद की अध्यक्षता बदलती रहती है। अफगानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय बल के जवानों की संख्या अभी भी लगभग उतनी ही है और इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र दुनिया भर में ऐसे 15 अभियान चला रहा है और इस पूरे अभियान के लिए इस वर्ष आठ अरब डॉलर से भी कम का प्रावधान है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि हरदीप पुरी की ओर से जारी एक अध्यक्षीय बयान में परिषद ने विवादों के शांतिपूर्ण समाधान व राजनीतिक प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने के प्रयासों में मदद देने में संयुक्त राष्ट्र शांति कार्यकर्ताओं की भूमिका को रेखांकित किया गया है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून ने शांति मिशनों की अब तक की सर्वाधिक जटिल जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक कोष व लचीलेपन का आह्वान किया। बान की-मून ने कहा, "हम सम्भवत: एक नए चरण में प्रवेश कर रहे हैं, जहां स्थितियां विपरीत और बहुआयामी हैं और जहां शांति कार्य कोई भूमिका निभा सकता है।" बान की-मून ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में तैनात वर्दीधारी जवानों की संख्या पिछले 10 वर्ष में दोगुनी हो गई है, और पिछले वर्ष यह संख्या 101,000 से ऊपर पहुंच गई थी। बान की-मून ने कहा, "शांति अभियानों को तरह-तरह के वातावरणों में खास मांगों को पूरा करने की आवश्यकता होगी और लचीलेपन व तत्परता के लिए तमाम क्षमताओं को एक अनुकूल एवं प्रभावी रूप में एकजुट करनी होगी।"
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This Article is From Aug 27, 2011