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This Article is From Oct 13, 2016

हांगकांग के विद्रोही सांसदों ने महात्मा गांधी को याद करते हुए दे डाली चीन को चुनौती

हांगकांग के विद्रोही सांसदों ने महात्मा गांधी को याद करते हुए दे डाली चीन को चुनौती
हांगकांग: हांगकांग के विद्रोही सांसदों ने बुधवार को लेजिस्लेटिव काउंसिल की हंगामेदार पहली बैठक में शपथग्रहण के समय 'निरंकुशता' के खिलाफ आवाज़ उठाते हुए नारे लगाए, जिससे चीन से अलग होने की मांग को और बल मिला. नगर में पिछले महीने आयोजित चुनाव में कई ऐसे सांसद जीतकर पहुंचे हैं, जो हांगकांग को अधिक स्वायत्तता या आज़ादी दिए जाने की मांग कर रहे हैं.

दरअसल, वर्ष 1997 में ब्रिटेन द्वारा हांगकांग शहर चीन को लौटाए जाने के वक्त हुई 'एक देश, दो व्यवस्था' डील के तहत शहर को अर्द्ध-स्वायत्त दर्जा हासिल है. इसके ज़रिये 50 साल तक हांगकांग की आज़ादी सुरक्षित है, लेकिन चीन के पकड़ मजबूत करते चले जाने की वजह से इस आज़ादी के खो जाने को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है.

आधिकारिक रूप से लेजिस्लेटिव काउंसिल सदस्य घोषित किए जाने से पहले सांसदों को शपथ ग्रहण करनी होती है, जिसमें कहना पड़ता है कि हांगकांग राज्य चीन का 'विशेष प्रशासनिक क्षेत्र' है.

सरकार ने पहले ही सांसदों को चेतावनी दी थी कि यदि शपथ ग्रहण उचित तरीके से नहीं किया गया, तो उनकी सदस्यता रद्द कर दी जाएगी.

काउंसिल के सबसे युवा सदस्य 23-वर्षीय नाथन लॉ ने भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का उल्लेख करते हुए (चीन से) कहा, आप मुझे गिरफ्तार कर सकते हो, यातना दे सकते हो, यहां तक मुझे तबाह कर सकते हो, लेकिन मेरे मस्तिष्क को गुलाम नहीं बना सकते...

हांगकांग की स्वतंत्रता के पक्षधर दो नए सांसदों बेगियो ल्यूंग और यौ वाई-चिंग ने शपथ में अपनी तरफ से शब्दों को जोड़ते हुए 'हांगकांग राष्ट्र' की सेवा करने की कसम खाई, और दोनों सांसदों ने चीन विरोधी बैनर भी लहराए, जिन पर लिखा था, "हांगकांग चीन नहीं है..."

ल्यूंग ने पूरी शपथ अंग्रेज़ी भाषा में ली, लेकिन चीन शब्द का उच्चारण गलत तरीके से करते हुए उसे 'चीना' पुकारा.

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