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This Article is From Mar 18, 2014

भारत की विदेशनीति में है विरोधाभास : चीनी मीडिया

बीजिंग:

चीन के सरकारी मीडिया में आए एक लेख में भारत की विदेशनीति को अस्पष्ट और विरोधाभासी बताते हुए कहा गया है कि नई दिल्ली की विदेशनीति में दीर्घकालिक सोच का अभाव है।

इसके साथ ही यह भी लेख में कहा गया है कि ‘नई दिल्ली द्वारा वैश्विक व्यवस्था में भागीदारी को लेकर हिचकिचाहट से इसकी प्रगति अवरुद्ध हो रही है। सरकारी ग्लोबल टाइम्स की वेबसाइट पर लिखे एक लेख में कहा गया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग ने सीमा मुद्दों पर संयम से जुड़े एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन चीन-भारत की सीमा पर भारत की ओर से अक्सर झगड़े शुरू किए जाते रहे हैं।

इसमें कहा गया, इसीलिए जब भी हम बीजिंग और नई दिल्ली के बीच आर्थिक संबंध मजबूत करने की बात करते हैं, चीन की ओर से कथित खतरा भारत के लिए अपनी सैन्य और परमाणु हथियारों की तैयारी के लिए एक बहाना बना रहता है।

लेख में कहा गया, इस तरह के विरोधाभास कैसे परिभाषित होते हैं? सबसे पहले, नई दिल्ली अपनी विदेशनीति के लक्ष्यों के बारे में बमुश्किल ही दीर्घकालिक विचार करती है। यूक्रेन संकट पर भारत की घोषणाओं को विरोधाभासपूर्ण बताते हुए लेख में कहा गया है ‘बदलती अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में भारत से संतुलन स्थापित करने वाले एक स्थिर क्षेत्रीय कारक की भूमिका की अपेक्षा की जाती है। इसमें कहा गया, लेकिन भारत अपना काम इतना बढ़िया कर रहा है कि वह बड़े मुद्दों पर विभिन्न नजरिया होने के बावजूद लगभग सभी बड़े ताकतवर देशों का मित्र बन रहा है। इसमें कहा गया है कि इससे अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर उसके बर्ताव में प्राय: असमानता के साथ यह भारत के रणनीतिक उद्देश्य (यदि कोई है तो) बनाते हैं। यह लेख दोनों देशों के बीच तीसरी रणनीतिक आर्थिक वार्ता से पहले आया है।

इसमें कहा गया, भारत अपने बहुलतावादी लोकतांत्रिक मॉडल की बात तो करता है, लेकिन वह अपनी विदेशनीति में इस मूल्य को लाने का इच्छुक नहीं दिखता। वह किसी नए वादे या संसाधनों का प्रस्ताव दिए बिना एशियाई नेतृत्व का आवरण पहनने की कोशिश कर रहा है। विश्लेषक इस तरह के विरोधाभास से प्राय: परेशान हो जाते हैं। इसमें यह भी कहा गया कि भारत ने जापान द्वारा हाल ही में दक्षिणी पंथ की ओर मुड़ जाने पर चिंता जताने से इनकार कर दिया था।

लेख में कहा गया, अब भारत विश्व के लगभग सभी महत्वपूर्ण मुद्दों में एक अहम भागीदार है। वैश्विक व्यवस्था में बड़ी भूमिका निभाने से बचने की भारत की प्रवृत्ति उसकी (वैश्विक शासन की) प्रगति को अवरुद्ध कर रही है और अंतरराष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय सहयोग को भी बाधित कर रही है।

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