
काठमांडू:
काठमांडू के बीचों बीच बने क्लॉक टॉवर की सूई 11 बजकर 52 मिनट पर ठहरी हुई है। यही वो वक्त है जब 25 अप्रैल को महाविनाशकारी भूकंप ने नेपाल को हिला दिया। भूकंप के इस सबसे बड़े और पहले झटके में इस क्लॉक टावर पर लगी घड़ी की सूई भी रुक गई।
ऐसा नहीं है कि भूकंप की मार पहली बार इस क्लॉक टावर पर पड़ी है। इस इमारत और क्लॉक टॉवर को को 1918 में बनाया गया था। यहां काम करने वाले एक अध्यापक संदेश ढकाल ने एनडीटीवी इंडिया को बताया कि 1934 के भूकंप में क्लॉक टॉवर पूरी तरह तबाह हो गया था। फिर उसका पुर्निर्माण किया गया। इस बार टॉवर को कोई नुक्सान नहीं पहुंचा है बस घड़ी की सूई ठहर गई है।

यही इमारत में पहले त्रिभुवन विश्वविद्यालय हुआ करता था। 1967 बने त्रिभुवन विश्वविद्यालय के भूगर्भशास्त्र विभाग का बोर्ड अब भी यहां मौजूद है। इस इमारत का जो हिस्सा 1934 के भूकंप में क्षतिग्रस्त हो गया था वो आज भी उसी हालत में है।

घड़ी का रखरखाव करने वाले कर्मचारी का अभी पता नहीं। उसके लौट कर आने का इंतज़ार है ताकि धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही ज़िंदगी के साथ इस घड़ी को फिर चालू किया जा सके।
ऐसा नहीं है कि भूकंप की मार पहली बार इस क्लॉक टावर पर पड़ी है। इस इमारत और क्लॉक टॉवर को को 1918 में बनाया गया था। यहां काम करने वाले एक अध्यापक संदेश ढकाल ने एनडीटीवी इंडिया को बताया कि 1934 के भूकंप में क्लॉक टॉवर पूरी तरह तबाह हो गया था। फिर उसका पुर्निर्माण किया गया। इस बार टॉवर को कोई नुक्सान नहीं पहुंचा है बस घड़ी की सूई ठहर गई है।

यही इमारत में पहले त्रिभुवन विश्वविद्यालय हुआ करता था। 1967 बने त्रिभुवन विश्वविद्यालय के भूगर्भशास्त्र विभाग का बोर्ड अब भी यहां मौजूद है। इस इमारत का जो हिस्सा 1934 के भूकंप में क्षतिग्रस्त हो गया था वो आज भी उसी हालत में है।

घड़ी का रखरखाव करने वाले कर्मचारी का अभी पता नहीं। उसके लौट कर आने का इंतज़ार है ताकि धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही ज़िंदगी के साथ इस घड़ी को फिर चालू किया जा सके।

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