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क्‍या है वह स्‍वर्ण कलश जिससे चीन निकालता है अपना दलाई लामा, जानें ड्रैगन की चालाकी की पूरी कहानी

सन् 1792 में कियानलॉन्‍ग सम्राट की तरफ स्‍वर्ण कलश लॉटरी का सिस्‍टम शुरू किया गया था.

क्‍या है वह स्‍वर्ण कलश जिससे चीन निकालता है अपना दलाई लामा, जानें ड्रैगन की चालाकी की पूरी कहानी
  • दलाई लामा ने चीन के दावे को खारिज करते हुए कहा कि 15वें दलाई लामा के चयन में चीन का कोई अधिकार नहीं है.
  • चीन ने कहा है कि दलाई लामा और अन्य बौद्ध नेताओं के पुनर्जन्म का चयन सोने के कलश से लॉटरी निकालकर होना चाहिए.
  • प्रोफेसर मैक्स ओइडमैन के अनुसार स्वर्ण कलश की परंपरा को 200 साल बाद चीन ने फिर से जिंदा किया है.
  • ओइडमैन के अनुसार, 1792 में कियानलॉन्‍ग सम्राट ने स्वर्ण कलश लॉटरी प्रणाली की शुरुआत की थी जिसका मकसद पूरी तरह से राजनीतिक था.
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Beijing:

दलाई लामा और चीन उत्‍तराधिकारी के मसले पर एक बार फिर से आमने-सामने हैं. तिब्‍बती धर्मगुरु  ने 15वें दलाई लामा को चुनने में चीन का कोई अधिकार नहीं है. वहीं चीन की तरफ से बुधवार को कहा गया है कि दलाई लामा, पंचेन लामा और दूसरी महान बौद्ध हस्तियों के पुनर्जन्म का चयन सोने के कलश से लॉटरी निकालकर किया जाना चाहिए और इसे केंद्र सरकार की तरफ से मंजूरी दी जानी चाहिए. यह बयान चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से दिया गया है. इसके बाद से ही सब यह जानने की कोशिश में लग गए हैं कि आखिर वह सोने का कलश है क्‍या जिससे चीन दलाई लामा का चयन करता है. 

200 साल बाद जिंदा हुई परंपरा 

कतर में जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में एशियन ह‍िस्‍ट्री के प्रोफेसर मैक्‍स ओइडमैन ने साल 2018 में एक आर्टिकल में बताया था कि स्‍वर्ण कलश की परंपरा को चीन ने 200 साल बाद फिर से जिंदा किया था. उन्‍होंने एक किताब लिखी जिसका नाम 'फोर्जिंग द गोल्डन अर्न: द किंग एम्पायर एंड द पॉलिटिक्स ऑफ रीइन्कार्नेशन इन तिब्बत' है जिसमें उन्‍होंने इसके इतिहास के बारे में बताया.

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उन्‍होंने इसमें लिखा कि सन् 1792 में कियानलॉन्‍ग सम्राट की तरफ स्‍वर्ण कलश लॉटरी का सिस्‍टम शुरू किया गया था. उनकी मानें तो इस सिस्‍टम को लाने का मकसद किंग राज्‍य की क्षमताओं को आकना था और यह पता लगाना था कि तिब्‍बती की धार्मिक और राजनीतिक परंपराओं को वह बदलने में कितना ताकतवर है. 

सोने का पानी चढ़ा बतर्न 

'स्वर्ण कलश' दरअसल एक छोटा सा सोने का पानी चढ़ा हुआ तांबे का बर्तन होता है जिसे तिब्बत के एक अनुष्ठान करने वाले बर्तन के आकार और सजावट की नकल करके बनाया गया था. इसका मकसद महत्वपूर्ण लामाओं के पुनर्जन्म की पहचान करने के लिए उम्मीदवारों के नाम स्वर्ण कलश में डालकर और फिर उनमें से एक निकालकर इस्तेमाल करना था. ओइडमैन के अनुसार,, 'अपनी रिसर्च में मुझे पता लगा कि कियानलॉन्‍ग सम्राट की तरफ से स्वर्ण कलश अनुष्ठान प्रक्रिया की शुरुआत करने की एक बड़ी वजह पुनर्जन्म की प्रामाणिकता में लोगों के विश्वास को मजबूत करना था.' 

ओइट्मैन के अनुसार किंग सरकार और कुछ तिब्बती एलीट क्‍लास इस बात को लेकर परेशान थे कि तिब्बती बौद्धों के बीच नेतृत्व के शीर्ष स्तरों में बहुत ज्‍यादा भ्रष्टाचार फैल गया था. क्योंकि पुनर्जन्म लेने वाले भिक्षु राजनीतिक नेता भी थे इसलिए उनकी प्रामाणिकता के बारे में संघर्ष चीनी साम्राज्य के कई हिस्सों की राजनीतिक स्थिरता को कमजोर कर सकता था.'  

ट्रस्‍ट चुनता है लामा 

दलाई लामा ने रविवार को एक प्रेयर मीट में कहा कि चीन को तिब्बती बौद्ध धर्म के कई प्रमुखों से परामर्श करना चाहिए. उन्होंने कहा कि 15वें दलाई लामा की खोज समय-सम्मानित रीति-रिवाजों कर तरफ से निर्देशित होनी चाहिए. उनके बयान बयान में गादेन फोडरंग ट्रस्ट की भूमिका का भी जिक्र है. इस ट्रस्‍ट पर ही दलाई लामा ने अपने पुनर्जन्म की खोज की देखरेख की जिम्मेदारी सौंपी है. ट्रस्ट के अधिकारियों ने यह भी स्पष्ट किया है कि अगला दलाई लामा 'किसी भी लिंग का हो सकता है.' 

तिब्बती बौद्ध मानते हैं कि दलाई लामा के पास यह चुनने का अधिकार है कि वह किस शरीर में पुनर्जन्म लेंगे. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो 1587 में संस्था की शुरुआत के बाद से 14 बार हो चुकी है. वर्तमान दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो को 1940 में 14वें दलाई लामा के रूप में मान्यता दी गई थी. 
 

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