नई दिल्ली:
सऊदी अरब में एक निजी कम्पनी में कार्यरत 78 भारतीय वहां भूखे-प्यासे फंसे हुए हैं। नियोक्ता कम्पनी ने उन्हें पिछले छह महीने से वेतन नहीं दिया है और इनके पास पहचान और चिकित्सा सुविधा के दस्तावेज भी नहीं हैं।
इन 78 भारतीयों में से एक, पंकज मिश्र ने फोन पर बताया कि ये लोग जेद्दा से 1,000 किलोमीटर दूर जॉर्डन की सीमा के पास ताबुक शहर में भूखे-प्यासे फंसे हुए हैं। इन लोगों में से अधिकांश उत्तर प्रदेश और बिहार के निवासी हैं।
इन लोगों को ताबुक स्थित एक कम्पनी मुताफिल मेंटेनेंस एंड ट्रेडिंग कम्पनी ने एक भारतीय नियोक्ता के जरिए 2010 में काम पर रखा था।
मिश्र ने बताया कि कम्पनी ने इस वर्ष की शुरुआत से उन्हें वेतन देना बंद कर दिया और उनके ठहरने वाली जगह पर कोई भी सुविधा नहीं दी जा रही है।
मिश्र ने कहा, हमें अनिवार्य चिकित्सा कार्ड और अकाना (पहचान पत्र) नहीं दिया गया है, और इसके बिना हम बाहर भी नहीं निकल सकते। नियोक्ता ने यहां पहुंचने के बाद ही हमारे पासपोर्ट ले लिए थे और अब हम इस कम्पनी की कैद में हैं।
मिश्र ने कहा कि वे अपने देश वापस लौटना चाहते हैं, लेकिन पासपोर्ट के बिना नहीं आ सकते। इन लोगों ने छह महीने पहले इस सिलसिले में जेद्दा स्थित भारतीय वाणिज्यिक दूतावास से भी सम्पर्क किया था।
नाम न छापने की शर्त पर दूतावास के एक अधिकारी ने बताया कि दूतावास इस मसले को लेकर नई दिल्ली में प्रवासी मामलों के मंत्रालय के साथ सम्पर्क में है और उसे समय-समय पर जानकारी दे रहा है।
इस अधिकारी ने फोन पर बताया कि इस समय दूतावास का एक वरिष्ठ अधिकारी ताबुक में मौजूद है और स्थानीय प्रशासन और नियोक्ता कम्पनी के साथ बातचीत करके इस मामले को सुलझाने की कोशिश की जा रही है।
इन 78 भारतीयों के मामले की सुनवाई अब ताबुक की श्रमिक अदालत में चल रही है और जेद्दा स्थित भारतीय वाणिज्यदूतावास उन्हें कानूनी मदद मुहैया करा रहा है।
इन 78 भारतीयों में से एक, पंकज मिश्र ने फोन पर बताया कि ये लोग जेद्दा से 1,000 किलोमीटर दूर जॉर्डन की सीमा के पास ताबुक शहर में भूखे-प्यासे फंसे हुए हैं। इन लोगों में से अधिकांश उत्तर प्रदेश और बिहार के निवासी हैं।
इन लोगों को ताबुक स्थित एक कम्पनी मुताफिल मेंटेनेंस एंड ट्रेडिंग कम्पनी ने एक भारतीय नियोक्ता के जरिए 2010 में काम पर रखा था।
मिश्र ने बताया कि कम्पनी ने इस वर्ष की शुरुआत से उन्हें वेतन देना बंद कर दिया और उनके ठहरने वाली जगह पर कोई भी सुविधा नहीं दी जा रही है।
मिश्र ने कहा, हमें अनिवार्य चिकित्सा कार्ड और अकाना (पहचान पत्र) नहीं दिया गया है, और इसके बिना हम बाहर भी नहीं निकल सकते। नियोक्ता ने यहां पहुंचने के बाद ही हमारे पासपोर्ट ले लिए थे और अब हम इस कम्पनी की कैद में हैं।
मिश्र ने कहा कि वे अपने देश वापस लौटना चाहते हैं, लेकिन पासपोर्ट के बिना नहीं आ सकते। इन लोगों ने छह महीने पहले इस सिलसिले में जेद्दा स्थित भारतीय वाणिज्यिक दूतावास से भी सम्पर्क किया था।
नाम न छापने की शर्त पर दूतावास के एक अधिकारी ने बताया कि दूतावास इस मसले को लेकर नई दिल्ली में प्रवासी मामलों के मंत्रालय के साथ सम्पर्क में है और उसे समय-समय पर जानकारी दे रहा है।
इस अधिकारी ने फोन पर बताया कि इस समय दूतावास का एक वरिष्ठ अधिकारी ताबुक में मौजूद है और स्थानीय प्रशासन और नियोक्ता कम्पनी के साथ बातचीत करके इस मामले को सुलझाने की कोशिश की जा रही है।
इन 78 भारतीयों के मामले की सुनवाई अब ताबुक की श्रमिक अदालत में चल रही है और जेद्दा स्थित भारतीय वाणिज्यदूतावास उन्हें कानूनी मदद मुहैया करा रहा है।
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