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फोटो में दिख रही यह महिला थी इंदिरा गांधी की पक्की सहेली, बेटा कहलाता है बॉलीवुड का शहंशाह, आपने पहचाना?
- Friday August 5, 2022
- Written by: प्रियंका तिवारी
इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गाधी और सोनिया की शादी में भी इनका बड़ा रोल था. सोनिया और राजीव की शादी की हर रश्म में वह साथ थीं. इनका बेटा बड़ा एक्टर है.
- ndtv.in
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महत्वाकांक्षाओं के बोझ तले मासूम बचपन...
- Tuesday July 5, 2022
- माधवी मिश्र
हम नब्बे के दशक के पले बढ़े लोगों को स्कूल की बहुत सुनहरी यादें हैं जहाँ शिक्षक का अर्थ था एक धीर गंभीर व्यक्तित्व जिसे अपने विषय का गूढ़ गहन ज्ञान हो. तब, शिक्षण सिर्फ एक पेशा नही था अपितु अपने अर्जित ज्ञान को अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करने का पुण्य कार्य भी था.
- ndtv.in
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देश में शिक्षा का बुरा हाल, छात्र बर्बाद; कर्ज से अभिभावक कंगाल
- Thursday September 30, 2021
- रवीश कुमार
पढ़ने के लिए पलायन, इस निगाह से देखिए तो भारत का युवा जहां भी है वहां से पलायन कर रहा है. इस पलायन पर खर्च होने वाले बजट को जोड़ेंगे तो पता चलेगा कि अच्छी शिक्षा के लिए जब कोई पलायन करता है तब उस पर एक एक परिवार के लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं. ख़राब कालेज और यूनिवर्सिटी के कारण पढ़ने वाला यह आर्थिक बोझ हर परिवार की तरक्की रोक रहा है. एक राज्य के भीतर का नौजवान अपने गांव कस्बे से ज़िले की तरफ भाग रहा होता है. ज़िला-ज़िला भाग लेने के बाद वह अपने राज्य की राजधानी की तरफ पलायन करता है. राजधानी जाकर भी उसकी मुलाकात अच्छी इमारतों वाली घटिया यूनिवर्सिटी और घटिया कालेज से होती है. फिर वहां फंसे कुछ युवकों में से कुछ दूसरे राज्यों की राजधानी की तरफ भागते हैं. वहां से भागते-भागते दिल्ली की तरफ भागते हैं.
- ndtv.in
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फोटो में दिख रही यह महिला थी इंदिरा गांधी की पक्की सहेली, बेटा कहलाता है बॉलीवुड का शहंशाह, आपने पहचाना?
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- Written by: प्रियंका तिवारी
इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गाधी और सोनिया की शादी में भी इनका बड़ा रोल था. सोनिया और राजीव की शादी की हर रश्म में वह साथ थीं. इनका बेटा बड़ा एक्टर है.
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महत्वाकांक्षाओं के बोझ तले मासूम बचपन...
- Tuesday July 5, 2022
- माधवी मिश्र
हम नब्बे के दशक के पले बढ़े लोगों को स्कूल की बहुत सुनहरी यादें हैं जहाँ शिक्षक का अर्थ था एक धीर गंभीर व्यक्तित्व जिसे अपने विषय का गूढ़ गहन ज्ञान हो. तब, शिक्षण सिर्फ एक पेशा नही था अपितु अपने अर्जित ज्ञान को अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करने का पुण्य कार्य भी था.
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पढ़ने के लिए पलायन, इस निगाह से देखिए तो भारत का युवा जहां भी है वहां से पलायन कर रहा है. इस पलायन पर खर्च होने वाले बजट को जोड़ेंगे तो पता चलेगा कि अच्छी शिक्षा के लिए जब कोई पलायन करता है तब उस पर एक एक परिवार के लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं. ख़राब कालेज और यूनिवर्सिटी के कारण पढ़ने वाला यह आर्थिक बोझ हर परिवार की तरक्की रोक रहा है. एक राज्य के भीतर का नौजवान अपने गांव कस्बे से ज़िले की तरफ भाग रहा होता है. ज़िला-ज़िला भाग लेने के बाद वह अपने राज्य की राजधानी की तरफ पलायन करता है. राजधानी जाकर भी उसकी मुलाकात अच्छी इमारतों वाली घटिया यूनिवर्सिटी और घटिया कालेज से होती है. फिर वहां फंसे कुछ युवकों में से कुछ दूसरे राज्यों की राजधानी की तरफ भागते हैं. वहां से भागते-भागते दिल्ली की तरफ भागते हैं.
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