Adultery Divorce
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महज पत्नी पर शक से नहीं होगी बच्चे की डीएनए जांच, बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
- Thursday July 10, 2025
- Reported by: NDTV इंडिया, Edited by: पीयूष जयजान
एक जुलाई को दिए अपने आदेश में न्यायमूर्ति जोशी ने कहा कि केवल इसलिए कि कोई पुरुष व्यभिचार के आधार पर तलाक का दावा कर रहा है, यह अपने आप में ऐसा विशिष्ट मामला नहीं बनता जिसमें डीएनए जांच का आदेश दिया जाए.
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सुप्रीम कोर्ट बोला: व्यभिचार अपराध नहीं, पति, पत्नी का मालिक नहीं, पढ़ें इस मामले की पूरी टाइमलाइन
- Thursday September 27, 2018
- ख़बर न्यूज़ डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून को रद्द कर दिया और अब से यह अपराध नहीं रहा. सुप्रीम कोर्ट की प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से व्यभिचार से संबंधित दंडात्मक प्रावधान को असंवैधानिक करार देते हुए उसे मनमाना और महिलाओं की व्यक्तिकता को ठेस पहुंचाने वाला बताते हुए निरस्त किया. मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने कहा, "व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता. यह निजता का मामला है. पति, पत्नी का मालिक नहीं है. महिलाओं के साथ पुरूषों के समान ही व्यवहार किया जाना. इस मामले में हुई सुनवाई से संबंधित घटनाक्रम कुछ इस प्रकार रहा.
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सुप्रीम कोर्ट के ये हैं 5 जज, जिन्होंने समलैंगिकता के बाद अब व्यभिचार को किया अपराध से बाहर
- Thursday September 27, 2018
- ख़बर न्यूज़ डेस्क
158 साल पुराने कानून IPC 497 (व्यभिचार) की वैधता (Adultery under Section 497) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपना फैसला सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने व्यभिचार को आपराधिक कृत्य बताने वाले दंडात्मक प्रावधान को सर्वसम्मति से निरस्त किया. सुप्रीम कोर्ट ने 157 साल पुराने व्यभिचार को रद्द कर दिया और कहा कि किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यभिचार कानून असंवैधानिक है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि व्यभिचार कानून मनमाना और भेदभावपूर्ण है. यह लैंगिक समानता के खिलाफ है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा के संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है. बता दें कि इस पीठ ने ही धारा 377 पर अपना अहम फैसला सुनाया था. इससे पहले इसी बेंच ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से अलग किया था. तो चलिए जानते हैं उन पांचों जजों के बारे में...
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जीवनसाथी का व्यभिचार का आरोप लगाना बड़ा पीड़ादायक : दिल्ली उच्च न्यायालय
- Thursday November 24, 2016
- Reported by: भाषा
दूसरी औरत के साथ अवैध संबंध रखने के पत्नी के आरोप से घिरे व्यक्ति के लिए तलाक मंजूर करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि जीवनसाथी द्वारा व्यभिचार का आरोप लगाया जाना किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत पीड़ादायक होता है.
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'बेवफाई के आधार पर तलाक दी गई महिला को नहीं मिलेगा गुजारा भत्ता'
- Monday August 17, 2015
- Bhasha
तलाक के एक केस में सुनवाई करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि जिस महिला को बेवफाई के आधार पर तलाक दिया गया हो, वह अपने पूर्व पति से गुजारा-भत्ता का दावा नहीं कर सकती।
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महज पत्नी पर शक से नहीं होगी बच्चे की डीएनए जांच, बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
- Thursday July 10, 2025
- Reported by: NDTV इंडिया, Edited by: पीयूष जयजान
एक जुलाई को दिए अपने आदेश में न्यायमूर्ति जोशी ने कहा कि केवल इसलिए कि कोई पुरुष व्यभिचार के आधार पर तलाक का दावा कर रहा है, यह अपने आप में ऐसा विशिष्ट मामला नहीं बनता जिसमें डीएनए जांच का आदेश दिया जाए.
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सुप्रीम कोर्ट बोला: व्यभिचार अपराध नहीं, पति, पत्नी का मालिक नहीं, पढ़ें इस मामले की पूरी टाइमलाइन
- Thursday September 27, 2018
- ख़बर न्यूज़ डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून को रद्द कर दिया और अब से यह अपराध नहीं रहा. सुप्रीम कोर्ट की प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से व्यभिचार से संबंधित दंडात्मक प्रावधान को असंवैधानिक करार देते हुए उसे मनमाना और महिलाओं की व्यक्तिकता को ठेस पहुंचाने वाला बताते हुए निरस्त किया. मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने कहा, "व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता. यह निजता का मामला है. पति, पत्नी का मालिक नहीं है. महिलाओं के साथ पुरूषों के समान ही व्यवहार किया जाना. इस मामले में हुई सुनवाई से संबंधित घटनाक्रम कुछ इस प्रकार रहा.
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सुप्रीम कोर्ट के ये हैं 5 जज, जिन्होंने समलैंगिकता के बाद अब व्यभिचार को किया अपराध से बाहर
- Thursday September 27, 2018
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158 साल पुराने कानून IPC 497 (व्यभिचार) की वैधता (Adultery under Section 497) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपना फैसला सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने व्यभिचार को आपराधिक कृत्य बताने वाले दंडात्मक प्रावधान को सर्वसम्मति से निरस्त किया. सुप्रीम कोर्ट ने 157 साल पुराने व्यभिचार को रद्द कर दिया और कहा कि किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यभिचार कानून असंवैधानिक है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि व्यभिचार कानून मनमाना और भेदभावपूर्ण है. यह लैंगिक समानता के खिलाफ है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा के संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है. बता दें कि इस पीठ ने ही धारा 377 पर अपना अहम फैसला सुनाया था. इससे पहले इसी बेंच ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से अलग किया था. तो चलिए जानते हैं उन पांचों जजों के बारे में...
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जीवनसाथी का व्यभिचार का आरोप लगाना बड़ा पीड़ादायक : दिल्ली उच्च न्यायालय
- Thursday November 24, 2016
- Reported by: भाषा
दूसरी औरत के साथ अवैध संबंध रखने के पत्नी के आरोप से घिरे व्यक्ति के लिए तलाक मंजूर करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि जीवनसाथी द्वारा व्यभिचार का आरोप लगाया जाना किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत पीड़ादायक होता है.
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'बेवफाई के आधार पर तलाक दी गई महिला को नहीं मिलेगा गुजारा भत्ता'
- Monday August 17, 2015
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तलाक के एक केस में सुनवाई करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि जिस महिला को बेवफाई के आधार पर तलाक दिया गया हो, वह अपने पूर्व पति से गुजारा-भत्ता का दावा नहीं कर सकती।
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