Blogs | रवीश कुमार |शुक्रवार नवम्बर 11, 2016 04:05 PM IST सांप्रदायिक हिंसा को हम एक तय फ्रेम में देखने लगे हैं. नतीजा यह होता है कि हम नई घटना को भी पहले हो चुकी घटना समझकर अनदेखा कर देते हैं, क्योंकि ऐसी हर घटना में बहस के जितने भी पहलू हैं, वो लगभग फिक्स हो चुके हैं. कौन सा सवाल होगा, कौन सा जवाब होगा, कौन सा पक्ष होगा, इसलिए भी आप या हम सांप्रदायिक हिंसा की ख़बरों को लेकर सामान्य होने लगे हैं.