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Manu Bhaker: बेटी के लिए मां के वो त्याग, जिसने आज मनु को ओलंपिक में दिलाया कांस्य पदक

Manu Bhaker Paris Olympics: मनु भाकर ओलंपिक के इतिहास में भारत के लिये पदक जीतने वाली पहली महिला निशानेबाज बन गई. कांटे के फाइनल में जब तीसरे स्थान के लिये उनके नाम का ऐलान हुआ तो उनके चेहरे पर सुकून की एक मुस्कान थी .

Manu Bhaker: बेटी के लिए मां के वो त्याग, जिसने आज मनु को ओलंपिक में दिलाया कांस्य पदक
Manu Bhaker Paris Olympics 2024

Manu Bhaker: तीन साल पहले टोक्यो में अपने पहले ओलंपिक में पिस्टल में खराबी आने के कारण निशानेबाजी रेंज से रोते हुए निकली मनु भाकर ने जुझारूपन और जीवट की नयी परिभाषा लिखते हुए पेरिस में पदक के साथ उन सभी जख्मों पर मरहम लगाया और हर खिलाड़ी के लिये एक नजीर भी बन गई. टोक्यो ओलंपिक के बाद कुछ दिन अवसाद में रही मनु ने करीब एक महीने तक पिस्टल नहीं उठाई.  लेकिन फिर उस बुरे अनुभव को ही अपनी प्रेरणा बनाया और पेरिस ओलंपिक में 10 मीटर एयर पिस्टल में कांसे के साथ भारत का खाता भी खोला . वह ओलंपिक के इतिहास में भारत के लिये पदक जीतने वाली पहली महिला निशानेबाज बन गई. कांटे के फाइनल में जब तीसरे स्थान के लिये उनके नाम का ऐलान हुआ तो उनके चेहरे पर सुकून की एक मुस्कान थी और एक कसक भी कि 0 . 1 अंक और होते तो पदक का रंग कुछ और होता.मनु के यहां तक पहुंचने में उनके माता-पिता का भरपूर सपोर्ट रहा है. मनु ने अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा था कि उनके पेरेंट्स ने शुरू से ही उन्हें भरपूर साथ दिया है. मैं जिस खेल को खेलती थी. मेरे माता-पिता पूरे दिल से मुझे सपोर्ट करते थे. आज मैं जो कुछ भी अपने देश के लिए कर पा रही हूं, उसका पूरा श्रेय मेरे पेरेंट्स को जाता है. 

मां ने ठुकराया सरकारी नौकरी का ऑफर

मनु भाकर की मां ने अपनी बेटी के करियर को  संवारने के लिए सरकारी नौकरी के ऑफर को भी ठुकरा दिया था. मनु की मां ने सुमेधा भाकर ने इस बारे में निजी चैनल से बात करते हुए कहा था कि, "मैं अपना पूरा समय अपनी बेटी को देना चाहती थी. मुझे सरकारी नौकरी के ऑफर आ रहे थे लेकिन मैं जानती थी नौकरी करने से पोस्टिंग दूसरी जगह हो सकती है, जिससे उसे आगे बढ़ने में मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है. उसके करियर को देखते हुए ही मैंने अपना पूरा समय अपनी बेटी को देने का फैसला किया था. "

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पिता चाहते थे कि बॉक्सर बने मनु

मनु भाकर पहले बॉक्सिंग भी किया करती थी. मनु के पिता उन्हें बॉक्सर बनाना चाहते  थे. मनु ने बॉक्सिंग में राष्ट्रीय स्तर पर मेडल भी जीते. एक दिन प्रैक्टिस के दौरान मनु के आंखों में चोट लग गई थी. जिससे आंख सूज गई थी. चोट लगने के काऱण मनु ने बॉक्सिंग को छोड़ना का फैसला किया था. 

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दक्षिण कोरिया की येजी किम से सिर्फ 0.1 अंक पीछे थीं

हरियाणा के झज्जर की रहने वाली 22 साल की मनु ने आठ निशानेबाजों के फाइनल में 221.7 अंक के साथ तीसरे स्थान पर रहते हुए कांस्य पदक जीता. भारतीय निशानेबाज जब बाहर हुईं तो दक्षिण कोरिया की येजी किम से सिर्फ 0.1 अंक पीछे थीं जिन्होंने अंतत: 241.3 अंक के साथ रजत पदक जीता. किम की हमवतन ये जिन ओह ने 243.2 अंक से फाइनल के ओलंपिक रिकॉर्ड स्कोर के साथ स्वर्ण पदक अपने नाम किया.

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अपने दूसरे ओलंपिक में हिस्सा ले रही मनु तोक्यो ओलंपिक से खाली हाथ लौटीं थीं. मनु ने कहा, ‘‘टोक्यो के बाद मैं बहुत निराश थी और मुझे इससे उबरने में बहुत लंबा समय लगा. सच कहूं तो मैं यह नहीं बता सकती कि आज मैं कितना अच्छा महसूस कर रही हूं. मनु का तोक्यो ओलंपिक में इसी स्पर्धा के क्वालिफिकेशन के दौरान पिस्टल में खराबी के कारण आंसुओं के साथ अभियान समाप्त हो गया था लेकिन आज उनके चेहरे पर मुस्कान थी. (भाषा के इनपुट के साथ)

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