केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव ने राज्यों और केंद्र शासित राज्यों के स्वास्थ्य सचिवों को एक पत्र लिखा है. इस पत्र में उन्होंने राज्यों से अपने कानूनों के तहत सांप काटने के मामलों को अधिसूचित रोग (Notifiable Disease) घोषित करने की अपील की है.केंद्र ने कहा है कि सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों के लिए सांप काटने के मामलों की जानकारी देना अनिवार्य बनाया जाए. सांप काटने के मामलों की जानकारी देने के लिए सरकार ने एक प्रारूप भी तैयार किया है. स्वास्थ्य सचिव ने अपने पत्र में कहा है कि सांप काटना बड़ी स्वास्थ्य चिंताओं में से एक है. कई बार यह मौत, बीमारी और विकलांगता का कारण बन जाता है. किसान,चरवाहे और बच्चे इससे सबसे अधिक पीड़ित होते हैं. सरकार ने इससे पहले इस साल मार्च में सांप काटने की समस्या से निपटने के लिए सर्पदंश के रोकथाम और नियंत्रण के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना शुरू की थी. इसका उद्देश्य 2030 तक सांप काटने से होने वाली मौतों को आधार करना है.
कहां होती हैं सांप काटने की सबसे अधिक घटनाएं
केंद्र सरकार की ओर से जारी कार्य योजना की पुस्तिका के मुताबिक देश में सांप काटने के सबसे अधिक मामले बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों से आते हैं. इसमें अनुमान लगाया गया है कि देश में हर साल औसतन 58 हजार मौतें सांप काटने से होती हैं. पुस्तिका के मुताबिक भारत में सांपों की 310 से अधिक प्रजातियां पाई जाति हैं.इनमें से अधिकांश में विष नहीं होता है. इनमें से 66 ऐसी प्रजातियां हैं, जिन्हें विषैला माना जाता है.इनमें से 42 को हल्का विषैला माना जाता है.वहीं बाकी की 24 प्रजातियों के विष को ऐसा माना जाता है, जिनसे मौत भी हो सकती है.
भारत में 90 फीसदी मामले केवल चार प्रजातियों के सांपों के काटने के सामने आते हैं. इन चार प्रजातियों 'बिग 4' के नाम से जाना जाता है.ये प्रजातियां हैं- रसेल वाइपर, कोबरा, करैत और सॉ स्केल्ड वाइपर. भारत के बाजारों में मिलने वाली पॉलीवैलेंट एंटीवेनम को इन चार प्रजातियों के सांपों के विष से तैयार किया जाता है. यह एंटीवेनम सांप काटने के 80 फीसदी मामलों में प्रभावी है.
कौन बीमारियां कहलाती हैं अधिसूचित रोग
आमतौर पर जिन बीमारियों का संक्रमण फैलने की आशंका रहती है, जिनमें मौतें होती हैं और जिनके रोकथाम की सार्वजनिक व्यवस्था और इलाज के लिए शीघ्र जांच की जरूरत होती है, उन्हें अधिसूचित रोग घोषित किया जाता है. हर राज्य में अधिसूचित रोग की सूची अलग-अलग होती है. इसकी अधिसूचना भी राज्य सरकार ही जारी करती है.अधिसूचित रोगों में क्षय रोग (टीबी), एड्स (एचआईबी संक्रमण), हैजा, मलेरिया, डेंगू और हेपिटाइटिस प्रमुख हैं.
सांप काटने को बीमारी क्यों माना जाता है
सांप काटने की स्थिति में पीड़ित को तत्काल इलाज की जरूरत होती है. समय पर इलाज न होने की स्थिति में मरीज के मौत की भी आशंका रहती है. सांप काटने से होने वाली मौतों या किसी गंभीर शारीरिक समस्या को पैदा होने से रोकने के लिए मरीज को एंटीवेनम देने की जरूरत होती है.
सांप काटने को अधिसूचित रोग क्यों बनाना चाहती है सरकार
भारत के सेंट्रल ब्यूरो ऑफ हेल्थ इंटेलिजेंस (सीबीएचआई) के मुताबिक देश में हर साल सांप काटने के तीन लाख मामलों में से दो हजार की मौत हो जाती है.भारत में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक देश में केवल 7.23 मामले ही आधिकारिक तौर पर दर्ज किए जाते हैं. देश में चलाए जा रहे एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम में सांप काटने के मामलों की भी जानकारी ली गई. इसके तहत सांप काटने के मामलों और इनसे होने वाली मौतों को एकीकृत स्वास्थ्य सूचना पोर्टल पर दर्ज किया गया. इन आंकड़ों से सांप काटने से होने वाली मौतों की रोकथाम के लिए कार्यक्रम बनाने में मदद मिलेगी. सांप काटने को अधिसूचित रोग घोषित कर दिए जाने के बाद इसके आंकड़े बढ़ सकते हैं. इससे इस बात की सटीक जानकारी मिलेगी कि सांप काटने के कितने मामले सामने आ रहे हैं और इससे कितनी मौतें कहां हो रही है. इन आंकड़ों से यह भी पता चलेगा कि सांप काटने के मामले देश के किन इलाकों में ज्यादा सामने आ रहे हैं. इससे सरकार उन इलाकों में एंटीवेनम की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति कर सकती है.
इसी को रेखांकित करते हुए स्वास्थ्य सचिव ने अपने पत्र में लिखा है,''सांप काटने के मामलों के निगरानी को मजबूत बनाने के लिए सर्पदंश के सभी मामलों और मौतों की सूचना देना अनिवार्य बनाना जरूरी है. इससे उन इलाकों में जहां से सांप काटने के मामले सबसे अधिक आते हैं, वहां इससे होने वाली मौतों के लिए जिम्मेदार कारकों पता लगाने में मदद मिलेगी.इससे सांप काटने का इलाज को सुलभ बनाने में मदद मिलेगी.
सांप काटने का इलाज करने की चुनौतियां क्या हैं
सांप काटने के अधिकांश मामलों में होता यह है कि पीड़ित या तो समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाता है या पहुंचता ही नहीं है. बहुत से लोग सांप काटने पर अस्पताल जाने की जगह झांड़-फूंक करने वालों के पास जाने को अधिक प्राथमिकता देते हैं. वहीं कई मामलों में यह भी देखा गया है कि स्वास्थ्य केंद्रों पर तैनात स्वास्थ्यकर्मी सांप काटने का इलाज करने के लिए प्रशिक्षित नहीं होते हैं. वहीं कई बार इस बात का पता लगाने की कोई व्यवस्था नहीं होती है काटा सांप ने है या किसी और जीव ने.
सांप काटने का इलाज करने के लिए जिन एंटीवेनम का इस्तेमाल होता है, वो भी सांपों के जहर से ही बनता है. इन सांपों को इरुल जाति के आदिवासी पकड़ते हैं. यह जनजाति तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में निवास करती है. लेकिन इन सांपों के जहर में समस्या यह है कि एक ही प्रजाति के सांप के जहर की रासायनिक संरचना और उसका प्रभाव भौगोलिक आधार पर बदलता रहता है.इससे उनके जहर से बनने वाली एंटीवेनम का असर भी अलग-अलग ही होता है. इसी सबसे निपटने के लिए वैज्ञानिक कृत्रिम तौर पर एंटीबॉडी विकसित करने की दिशा में काम कर रहे हैं, जो हर तरह के सांप के जहर के असर को खत्म कर सके. वो एक ऐसा पेप्टाइड्स (प्रोटीन का एक घटक) बनाने की दिशा में भी काम कर रहे हैं, जो जहर से लड़ सके.
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