तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता की फाइल फोटो
बेंगलुरु:
19 साल पुराने इस मामले में फैसला सुनाने में कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस कुमारस्वामी को एक मिनट से भी कम का वक़्त लगा। खचाखच भरे कोर्ट हॉल नंबर 14 में जस्टिस कुमारस्वामी ने सिर्फ एक वाक्य कहा, 'अभियुक्त (जयललिता) की याचिका मंज़ूर की जाती है, ट्रायल कोर्ट का फैसला रद्द किया जाता है और सभी अभियुक्त बरी किए जाते हैं।' (पढ़ें - हाईकोर्ट से 'बरी' हुईं जयललिता ने कहा - 'खरा सोना' बनकर निकली)
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बेंगलुरु में गठित विशेष ट्रायल कोर्ट के फैसले को ख़ारिज करने की जो वजह जस्टिस कुमारस्वामी ने बताई है उनमे से प्रमुख हैं :
- ट्रायल कोर्ट ने जयललिता की संपत्ति का आंकलन सही ढंग से नहीं किया।
- ट्रायल कोर्ट ने ये तो मान लिया कि जयललिता ने 3 करोड़ रुपये अपने दत्तक पुत्र की शादी पर ख़र्च किये लेकिन ये साबित करने के लिए पर्याप्त सबूतों का अभाव है।
- बैंक से लिए गए लोन को आमदनी का हिस्सा नहीं माना गया इससे भी संपत्ति का आकलन सही ढंग से नहीं हो पाया।
- इतना ही नहीं, गवाहों ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग गवाही दी, ऐसे में हाई कोर्ट उनकी गवाही पर भरोसा नहीं कर सकता।
ऐसे में मुझे लगता है की ट्रायल कोर्ट का फैसला क़ानून संगत नहीं है।
जस्टिस कुमारस्वामी ने 919 पन्नों में अपने फैसले की व्याख्या की है। इस फैसले में उन्होंने निचली अदालत को आदेश दिया है कि इस मामले में जिन चार लोगों को मुजरिम करार देकर उनकी संपत्ति जप्त की गयी थी उसे फ़ौरन वापस किया जाये।
अब सवाल ये उठता है कि तक़रीबन 67 करोड़ रुपये के आय से अधिक संपत्ति का ये मामला यहीं खत्म हो गया? इस मामले की शुरुआत सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका से हुई थी और डीएमके की पहल पर ट्रायल सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बेंगलुरु में शुरू हुआ था।
ऐसे में इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के दरवाज़े खटखटाने का विकल्प इन दोनों के पास तो है ही साथ ही साथ अभियोजन पक्ष के तौर पर कर्नाटक भी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनोति दे सकता है।
19 साल पुराने इस मामले में फैसला सुनाने में कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस कुमारस्वामी को एक मिनट से भी कम का वक़्त लगा। खचाखच भरे कोर्ट हॉल नंबर 14 में जस्टिस कुमारस्वामी ने सिर्फ एक वाक्य कहा, 'अभियुक्त (जयललिता) की याचिका मंज़ूर की जाती है, ट्रायल कोर्ट का फैसला रद्द किया जाता है और सभी अभियुक्त बरी किए जाते हैं।' (पढ़ें - हाईकोर्ट से 'बरी' हुईं जयललिता ने कहा - 'खरा सोना' बनकर निकली)
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बेंगलुरु में गठित विशेष ट्रायल कोर्ट के फैसले को ख़ारिज करने की जो वजह जस्टिस कुमारस्वामी ने बताई है उनमे से प्रमुख हैं :
- ट्रायल कोर्ट ने जयललिता की संपत्ति का आंकलन सही ढंग से नहीं किया।
- ट्रायल कोर्ट ने ये तो मान लिया कि जयललिता ने 3 करोड़ रुपये अपने दत्तक पुत्र की शादी पर ख़र्च किये लेकिन ये साबित करने के लिए पर्याप्त सबूतों का अभाव है।
- बैंक से लिए गए लोन को आमदनी का हिस्सा नहीं माना गया इससे भी संपत्ति का आकलन सही ढंग से नहीं हो पाया।
- इतना ही नहीं, गवाहों ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग गवाही दी, ऐसे में हाई कोर्ट उनकी गवाही पर भरोसा नहीं कर सकता।
ऐसे में मुझे लगता है की ट्रायल कोर्ट का फैसला क़ानून संगत नहीं है।
जस्टिस कुमारस्वामी ने 919 पन्नों में अपने फैसले की व्याख्या की है। इस फैसले में उन्होंने निचली अदालत को आदेश दिया है कि इस मामले में जिन चार लोगों को मुजरिम करार देकर उनकी संपत्ति जप्त की गयी थी उसे फ़ौरन वापस किया जाये।
अब सवाल ये उठता है कि तक़रीबन 67 करोड़ रुपये के आय से अधिक संपत्ति का ये मामला यहीं खत्म हो गया? इस मामले की शुरुआत सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका से हुई थी और डीएमके की पहल पर ट्रायल सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बेंगलुरु में शुरू हुआ था।
ऐसे में इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के दरवाज़े खटखटाने का विकल्प इन दोनों के पास तो है ही साथ ही साथ अभियोजन पक्ष के तौर पर कर्नाटक भी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनोति दे सकता है।
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