वाराणसी के हैचिंग पॉन्ड पर कछुए
वाराणसी:
जल परिवहन परियोजना के ट्रायल के तौर पर वाराणसी पहुंचे माल वाहक जल पोत वीवी गिरी को वन विभाग ने परमिशन न होने की वजह से रोक दिया। परमिशन कछुआ सेंचुरी जोन होने की वजह से नहीं मिला है। लिहाजा मालवाहक पोत वाराणसी के खिड़किया घाट के किनारे पर खड़ा है और परमिशन लेने की क़वायद कर रहा है। वाराणसी के राजघाट से लेकर अस्सी घाट तक बने कछुआ सेंचुरी जोन की उपयोगिता को लेकर कई सवाल उठते रहे हैं और इसे ख़त्म करने की मांग भी होती रही है पर अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला। इसी वजह से ऐसी दिक्कतें आ रही हैं।
मारुति कार की डिलीवरी लेकर इसे कलकत्ता रवाना होना था
कोलकाता के हल्दिया से चल कर पटना, बक्सर, बलिया, गाजीपुर होते हुए वाराणसी पहुंचे वी वी गिरी जलपोत को रामनगर के पास बने जेटी के पास जाना था। जहां से 600 मारुति कार की डिलीवरी लेकर इसे कलकत्ता रवाना होना था। प्रधानमन्त्री की जल परिवहन योजना का ये एक तरह से ट्रायल भी है, पर कछुआ सेंचुरी इसकी राह में बाधा बन गई है। क्योंकि वाराणसी के जिस खिड़िकिया घाट के पास ये खड़ा है वहां से कछुआ सेन्चुरी की शुरुआत होती है। लिहाजा वन विभाग के लोगों ने इसे आगे बढ़ने से रोक दिया है।
जहाज के कर्मचारी शक्ति बरुवा दास का कहना है कि "आगे कछुआ सेंचुरी है तो वन विभाग ने रोक दिया है कि नुकसान होगा, परमिशन नहीं है, परमिशन होगी तो जाने देंगे।
गौरतलब है कि राजघाट के पास मालवीय पुल से लेकर अस्सी घाट के सामने राम नगर के किले तक के सात किलोमीटर के दायरे को नेशनल वाइल्ड लाइफ के तहत कछुआ सेन्चुरी के नाम पर संरक्षित किया गया है। कछुओं का प्रजनन केंद्र भी वन विभाग ने सारनाथ में बनाया है। वन विभाग के अधिकारी कहते हैं कि चम्बल से ब्रीड कर कर कछुओं को यहां लाते हैं और फिर बड़ा होने के बाद इन्हें गंगा में डाल देते हैं। तक़रीबन हर साल 1000 कछुओं को छोड़ने का दावा किया गया है।
इस बार भी परमिशन के लिए आग्रह किया गया है
लोगों का कहना है कि हक़ीक़त में गंगा में कछुए कभी दिखे नहीं लेकिन उसके नाम पर रोकथाम जारी है। डीएफओ मनोज कुमार सोनकर ने बताया कि कोई भी स्टडी या रिसर्च के लिए, पर्यटन के लिए या बिजनेस के लिए शिप क्रास करता है तो वाइल्ड लाइफ 1972 की धारा 28 के तहत परमिशन दी जाती है। इस बार भी परमिशन के लिए आग्रह किया गया है।
भारी जहाज जाने से कछुओं को नुकसान होगा
वन विभाग का तर्क है कि भारी जहाज जाने से कछुओं को नुकसान होगा और परमिशन मिलने पर ही जाने देंगे। उनकी ये बात नाविकों को नहीं समझ में आ रही कि क्या परमिशन मिल जाने पर जहाज के जाने से कछुओं को नुकसान नहीं होगा। इसीलिए जहाज परिचालक चितरंजन से जब बात की गई तो उन्होंने कहा कि आज हम लोगों को जबरजस्ती रोका गया है दो दिन बाद परमिशन मिलेगा तो कहां कछुआ जाएगा।
कछुआ सेंचुरी का ये विवाद बहुत पुराना है
दरअसल बनारस में कछुआ सेंचुरी का ये विवाद बहुत पुराना है। 1989 में गंगा सफाई के नाम पर घाट से लग कर बहने वाले गंगा के भाग को नेशनल वाइल्ड लाइफ के तहत संरक्षित कर दिया गया और तर्क दिया गया कि इस संरक्षित इलाके में कछुआ सेंचुरी बनाकर कछुआ पाले जाएंगे जो गंगा की गन्दगी को दूर करेंगे। लेकिन बहते पानी में कछुआ कितना रुक सकते हैं ये कह पाना मुश्किल है।
ड्रेजिंग न होने की वजह से बालू गंगा के तल पर जमा
कछुए तो नहीं रुके, लेकिन ड्रेजिंग न होने की वजह से बालू गंगा के तल पर जमा होने लगी जिससे किनारे की तरफ गहराई बढ़ने लगी। आज से 20 साल पहले जो गहराई 15 मीटर रहा करती थी वो आज 19 से 25 मीटर हो गई है। जिस दिन ये 30 से 35 मीटर हो जाएगी उस दिन अचानक ये घाट किसी रात गंगा में समा जाएंगे।
ये चेतावनी वैज्ञानिक से लेकर घाट के रहने वाले तक दे चुके हैं लेकिन इस पर अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। इसको हटाने के लिए समय समय पर इसकी समीक्षा की मांग होती रही है।
(हल्दिया से आए जहाज और मजदूर)
मारुति कार की डिलीवरी लेकर इसे कलकत्ता रवाना होना था
कोलकाता के हल्दिया से चल कर पटना, बक्सर, बलिया, गाजीपुर होते हुए वाराणसी पहुंचे वी वी गिरी जलपोत को रामनगर के पास बने जेटी के पास जाना था। जहां से 600 मारुति कार की डिलीवरी लेकर इसे कलकत्ता रवाना होना था। प्रधानमन्त्री की जल परिवहन योजना का ये एक तरह से ट्रायल भी है, पर कछुआ सेंचुरी इसकी राह में बाधा बन गई है। क्योंकि वाराणसी के जिस खिड़िकिया घाट के पास ये खड़ा है वहां से कछुआ सेन्चुरी की शुरुआत होती है। लिहाजा वन विभाग के लोगों ने इसे आगे बढ़ने से रोक दिया है।
(हैचिंग पॉन्ड पर कछुआ)
जहाज के कर्मचारी शक्ति बरुवा दास का कहना है कि "आगे कछुआ सेंचुरी है तो वन विभाग ने रोक दिया है कि नुकसान होगा, परमिशन नहीं है, परमिशन होगी तो जाने देंगे।
गौरतलब है कि राजघाट के पास मालवीय पुल से लेकर अस्सी घाट के सामने राम नगर के किले तक के सात किलोमीटर के दायरे को नेशनल वाइल्ड लाइफ के तहत कछुआ सेन्चुरी के नाम पर संरक्षित किया गया है। कछुओं का प्रजनन केंद्र भी वन विभाग ने सारनाथ में बनाया है। वन विभाग के अधिकारी कहते हैं कि चम्बल से ब्रीड कर कर कछुओं को यहां लाते हैं और फिर बड़ा होने के बाद इन्हें गंगा में डाल देते हैं। तक़रीबन हर साल 1000 कछुओं को छोड़ने का दावा किया गया है।
(वाराणसी के तट पर खड़ा वीवी गिरि)
इस बार भी परमिशन के लिए आग्रह किया गया है
लोगों का कहना है कि हक़ीक़त में गंगा में कछुए कभी दिखे नहीं लेकिन उसके नाम पर रोकथाम जारी है। डीएफओ मनोज कुमार सोनकर ने बताया कि कोई भी स्टडी या रिसर्च के लिए, पर्यटन के लिए या बिजनेस के लिए शिप क्रास करता है तो वाइल्ड लाइफ 1972 की धारा 28 के तहत परमिशन दी जाती है। इस बार भी परमिशन के लिए आग्रह किया गया है।
भारी जहाज जाने से कछुओं को नुकसान होगा
वन विभाग का तर्क है कि भारी जहाज जाने से कछुओं को नुकसान होगा और परमिशन मिलने पर ही जाने देंगे। उनकी ये बात नाविकों को नहीं समझ में आ रही कि क्या परमिशन मिल जाने पर जहाज के जाने से कछुओं को नुकसान नहीं होगा। इसीलिए जहाज परिचालक चितरंजन से जब बात की गई तो उन्होंने कहा कि आज हम लोगों को जबरजस्ती रोका गया है दो दिन बाद परमिशन मिलेगा तो कहां कछुआ जाएगा।
कछुआ सेंचुरी का ये विवाद बहुत पुराना है
दरअसल बनारस में कछुआ सेंचुरी का ये विवाद बहुत पुराना है। 1989 में गंगा सफाई के नाम पर घाट से लग कर बहने वाले गंगा के भाग को नेशनल वाइल्ड लाइफ के तहत संरक्षित कर दिया गया और तर्क दिया गया कि इस संरक्षित इलाके में कछुआ सेंचुरी बनाकर कछुआ पाले जाएंगे जो गंगा की गन्दगी को दूर करेंगे। लेकिन बहते पानी में कछुआ कितना रुक सकते हैं ये कह पाना मुश्किल है।
(वाराणसी के तट पर जहाज वीवी गिरि)
ड्रेजिंग न होने की वजह से बालू गंगा के तल पर जमा
कछुए तो नहीं रुके, लेकिन ड्रेजिंग न होने की वजह से बालू गंगा के तल पर जमा होने लगी जिससे किनारे की तरफ गहराई बढ़ने लगी। आज से 20 साल पहले जो गहराई 15 मीटर रहा करती थी वो आज 19 से 25 मीटर हो गई है। जिस दिन ये 30 से 35 मीटर हो जाएगी उस दिन अचानक ये घाट किसी रात गंगा में समा जाएंगे।
ये चेतावनी वैज्ञानिक से लेकर घाट के रहने वाले तक दे चुके हैं लेकिन इस पर अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। इसको हटाने के लिए समय समय पर इसकी समीक्षा की मांग होती रही है।
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