Coronavirus Pandemic: कोरोना वायरस की महामारी (Coronavirus Outbreak) के कारण देशभर में जारी लॉकडाउन के दौरान फ्री इलाज और दिहाड़ी मज़दूरों को भुगतान संबंधी जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को खारिज कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान कहा कि गरीबों का तो मुफ्त इलाज हो ही रहा है, लिहाज़ा ऐसी पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन (PIL) खारिज कर दी जानी चाहिए. न्यायमूर्ति एन वी रमना, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से इस मामले की सुनवाई करते हुये याचिका खारिज की. पीठ ने कहा, ‘‘यह निर्णय करना सरकार का काम है कि किसे मुफ्त उपचार दिया जाए.हमारे पास तो इसके लिये कोई कोष नहीं है.''
इस पर प्रशांत भूषण ने कहा कि हमने 11 हज़ार दिहाड़ी मजदूरों में सर्वेक्षण किया है. उनके मुताबिक सरकारी दावे के उलट किसी को भी अब तक पैसा नहीं मिला है और किसी के खाते में रकम नही आई है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख लहजे में कहा, यह कहना गलत है कि किसी को भी मदद के रुपए या राशन नहीं मिला. देशभर में 50 हजार से ज़्यादा NGO सरकारी इंतज़ाम के साथ कंधे से कंधा मिलाकर गरीबों वंचितों को राशन या खाना बांट रहे हैं पर कुछ लोगों को ये दिख नहीं रहा क्योंकि वो PIL फाइल करने में जुटे हैं. प्रशांत भूषण ने कहा कि दिहाड़ी मजदूरों में से 76 फीसदीलोगों को दो वक्त का भोजन भी नहीं मिल रहा है. कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि कई राज्यों ने 27 मार्च को दिए गए आदेश के बावजूद अब तक आंगनवाड़ी योजना के तहत भोजन वितरण का काम शुरू भी नहीं किया है.
याचिकाकर्ता ने मांग की कि कोर्ट केंद्र सरकार को यह आदेश दे कि राज्यों को दिहाड़ी मजदूरों को भुगतान के लिए अलग से वित्तीय सहायता भेजें. इस पर जस्टिस रमना ने कहा कि हम इसके विशेषज्ञ नहीं हैं और हम सरकार को इस बाबत निर्देश नहीं दे सकते. यह याचिका दिल्ली स्थित अधिवक्ता अमित द्विवेदी ने दायर की थी, इसमें कोविड-19 महामारी पर काबू पाये जाने तक इससे प्रभावित मरीजों की मुफ्त जांच और इलाज करने का निर्देश सरकार और अन्य प्राधिकारियों को देने का अनुरोध किया गया था.केन्द्र ने इससे पहले न्यायालय को सूचित किया था कि सरकार ने सभी नागरिकों को स्वास्थ्य सुविधायें उपलब्ध कराने के लिये उचित कदम उठाए हैं.
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