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'अपराध की क्रूरता ही एकमात्र मानदंड नहीं...' सुप्रीम कोर्ट ने दो दोषियों की मौत की सजा को बदला

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालतों ने अपीलकर्ता को मृत्युदंड देने के लिए केवल विचाराधीन अपराध की क्रूरता पर टिप्पणी की है. इस निष्कर्ष पर पहुंचने में कि यह मामला "रेयरस्ट ऑफ द रेयर" श्रेणी का है, न्यायालयों द्वारा किसी अन्य परिस्थिति पर चर्चा नहीं की गई.

'अपराध की क्रूरता ही एकमात्र मानदंड नहीं...' सुप्रीम कोर्ट ने दो दोषियों की मौत की सजा को बदला
मौत की सजा पर सुप्रीम कोर्ट
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपराध की क्रूरता ही मौत की सजा देने का एकमात्र मानदंड नहीं हो सकता, अन्य परिस्थितियों पर भी विचार जरूरी है.
  • कोर्ट ने दो मामलों में मौत की सजा पाए दोषियों की सजा उम्रकैद में बदल दी, साथ ही उन्हें मरने तक जेल में रहने का आदेश दिया.
  • एक मामले में दोषी ने अपनी पत्नी, तीन बच्चों और साली की हत्या की थी, जबकि दूसरे मामले में दिहाड़ी मजदूर ने 10 साल की बच्ची से रेप और हत्या की.
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मौत की सजा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम  फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि अपराध की क्रूरता ही मौत की सजा देने का एकमात्र मानदंड नहीं हो सकती. दोषी की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि और मनोवैज्ञानिक स्थिति सहित अन्य परिस्थितियों पर विचार किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने दो अलग-अलग मामलों में मौत की सजा पाए दो दोषियों की सजा को उम्रकैद में तब्दील किया. साथ ही कहा कि दोषी अपनी आखिरी सांस तक जेल की सलाखों के पीछे रहेंगे. दोषी को अपने अपराध के लिए शेष जीवन भर पश्चाताप करना होगा. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दो दिनों में मौत की सजा पाए दो दोषियों को बरी भी किया है.

दो लोगों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदला

हालांकि निचली अदालतों और हाईकोर्ट ने दोनों मामलों में मौत की सज़ा सुनाई थी, लेकिन जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने उनकी सजा को कम करते हुए उन्हें इस शर्त के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई कि उन्हें जेल में ही मरना होगा.

एक दोषी ने की थी पत्नी, तीन बच्चों और साली की हत्या

एक मामले में दोषी ने 2017 में अपनी पत्नी, तीन बच्चों और साली की हत्या इस सोच के साथ कर दी थी कि वह बच्चों का जैविक पिता नहीं है और ये बच्चे बेवफाई से पैदा हुए हैं. यह अपराध कर्नाटक के बल्लारी जिले में किया गया था.

दूसरे मामले में दिहाड़ी मजदूर ने किया 10 साल की बच्ची से रेप और मर्डर

एक अन्य मामले में 2018 में देहरादून में एक दिहाड़ी मज़दूर ने 10 साल की बच्ची के साथ बलात्कार किया और उसकी गला घोंटकर हत्या कर दी. अदालत ने कहा कि दोनों ही मामलों में निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने अपराध के बर्बर और निर्मम तरीके के आधार पर सज़ा  तय की और परिस्थितियों को कम करने वाले कारकों पर विचार नहीं किया गया. निचली अदालतों ने अपीलकर्ता को मृत्युदंड देने के लिए केवल विचाराधीन अपराध की क्रूरता पर टिप्पणी की है. इस निष्कर्ष पर पहुंचने में कि यह मामला "रेयरस्ट ऑफ द रेयर" श्रेणी का है, न्यायालयों द्वारा किसी अन्य परिस्थिति पर चर्चा नहीं की गई.

अपराध के लिए प्रेरित करने वाली परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना होगा

हमारे विचार में इस तरह के दृष्टिकोण को बरकरार नहीं रखा जा सकता. किसी मामले के रेयरस्ट ऑफ द रेयर श्रेणी में आने का निर्धारण करने के लिए अपराध की क्रूरता ही एकमात्र मानदंड नहीं हो सकता. उन सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जिन्होंने दोषी को इस अत्यंत निंदनीय प्रकृति के अपराध को अंजाम देने के लिए प्रेरित किया, मृत्युदंड उचित नहीं हो सकता. हमारा विचार है कि उसे अपने द्वारा किए गए अपराध  के लिए पश्चाताप करने के लिए जेल में अपने दिन बिताने चाहिए इसलिए इन अपीलों को आंशिक रूप से इस सीमा तक स्वीकार किया जाता है कि उसे मृत्युदंड की सज़ा से मुक्त कर दिया जाए. इसके बजाय उसे बिना किसी छूट के जेल में अपनी आखिरी सांस तक इंतज़ार करना होगा.

बेंच ने परिवार के पांच सदस्यों की हत्या के मामले में कहा कि दोषी को अपने द्वारा किए गए अपराधों के लिए शेष जीवन भर पश्चाताप करना होगा. अदालत ने कहा कि इस फैसले ने यह सुनिश्चित किया है कि अगर किसी व्यक्ति को अंततः फांसी पर लटकाया जाता है, तो उसे केवल उन तथ्यों और परिस्थितियों की पूरी पृष्ठभूमि पर विचार करने के बाद ही फांसी पर लटकाया जाता है, जिनके कारण आरोपी व्यक्ति मौत के कगार पर पहुंचा.

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