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कचहरी: भीड़ में महिलाओं पर बुरी नजर, कैमरे में कैद हुए बैड टच वाले 'दरिंदे'

पूरे भारत में कोई राज्य, शहर, इलाका, मोहल्ला या गांव ऐसा नहीं होगा, जहां भीड़ का फायदा उठाकर महिलाओं को गलत तरीके से छून की कोशिश ना हुई हो. भारत आज भी दुनिया के उन चुनिंदा देशों में से एक है, जहां ‘पब्लिक टच’ को अपराध मानने की संस्कृति नहीं है.

  • हैदराबाद पुलिस ने भीड़ में महिलाओं के यौन उत्पीड़न की घटनाओं को रोकने के लिए BODY कैमरों के साथ टीम भेजकर 478 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है.
  • पूरे भारत में कोई राज्य, शहर, इलाका, मोहल्ला या गांव ऐसा नहीं होगा, जहां भीड़ का फायदा उठाकर महिलाओं को गलत तरीके से छून की कोशिश ना हुई हो.
  • भारत में भीड़ में महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाओं का कोई स्पष्ट राष्ट्रीय आंकड़ा नहीं है, क्योंकि अपराध साबित करना और शिकायत दर्ज कराना मुश्किल होता है.
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नई दिल्‍ली :

भीड़ के कई रूप होते हैं लेकिन इन्हीं में से एक रूप ऐसा होता है, जो भेड़ियों की तरह औरतों को नोच खा जाना चाहता है. एनडीटीवी के शो 'कचहरी' में शुभांकर मिश्रा ने इसी मुद्दे को उठाया. हैदराबाद का एक वीडियो सामने आया है, जहां मुहर्रम के जुलूस और हिन्दुओं के बोनालु त्योहार के दौरान भीड़ में छिपे भेड़ियों ने महिलाओं और लड़कियों को गलत तरीके से छूने की कोशिश की. हर साल हैदराबाद की पुलिस को सैकड़ों की संख्या में ऐसी शिकायतें मिलती थीं कि भीड़ का फायदा उठाकर ये राक्षस महिलाओं की इज्‍जत पर हाथ डालते हैं, उन्हें गलत तरीके से छूने की कोशिश करते हैं. उनके साथ अभद्रता की सारी हदें पार कर देते हैं, लेकिन जब इन्हें पकड़ने की कोशिश होती थी तो ये भीड़ में गुम हो जाते थे और कभी किसी के हाथ नहीं आते थे. 

लेकिन इस बार इन भेड़ियों को ढूंढने के लिए हैदराबाद की पुलिस ने अपनी एक टीम को BODY कैमरों के साथ भीड़ के बीच भेजा. और इसके बाद जो VIDEOS आए, वो एक समाज के तौर पर हमें शर्मिंदा करते हैं. इन VIDEOS में बच्चों से लेकर बूढ़े तक सब भीड़ का फायदा उठाकर महिलाओं को गलत तरीके से छूते हुए दिख रहे थे. आप इन्हें बैडटच के भेड़िये भी कह सकते हैं, जिन्होंने इंसान की खाल ओढ़ रखी है.

हैदराबाद पुलिस ने यौन उत्पीड़न की इन घटनाओं के लिए 478 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है, जिनमें 386 लोगों की उम्र 18 साल से ज्यादा है और 92 आरोपी नाबालिग हैं और छोटे छोटे 14 से 16 साल के बच्चे हैं. 

कहां जा रहा है समाज?

सोचिए अगर ये बच्चे भीड़ में महिलाओं पर बुरी नजर रख रहे हैं, उनके साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं, उनके कपड़ों को खींचने की कोशिश कर रहे हैं तो हमारा समाज आखिर किधर जा रहा है. 

ये तो शुक्र मानिए कि हैदराबाद की पुलिस ने इन भेड़ियों की इस काली करतूत को रिकॉर्ड कर लिया वर्ना हमारे देश में इस बैडटच को बैड माना ही नहीं जाता. जब कोई लड़की ट्रेन में चढ़ती है, बस पकड़ती है, मेले में जाती है या किसी त्योहार, कार्यक्रम और उत्सव में शामिल होती है तो उसे एक अजीब तरह का डर होता है. डर कि कहीं कोई उसे गलत तरीके से ना छू ले. डर कि उसकी चुप्पी को कोई उसकी सहमति ना समझ लें और डर इस बात का भी कि अगर उसने आवाज उठाई तो भीड़ उसका साथ देगी या उसे ही गुनहगार बना देगी?

भारत में हर दिन औसतन 86 रेप होते हैं. लेकिन जो भीड़ में, बसों में, पंडालों में और रेलवे स्टेशनों पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न की घटनाएं होती हैं, उनका कोई स्पष्ट आंकड़ा हमारे देश में नहीं है. और इसका कारण ये है कि भीड़ में छिपे भेड़ियों का अपराध साबित करना मुश्किल होता है. और यही सोच कर ज्यादातर लड़कियां चुप रहती हैं. और उन्हें डर होता है कि लोग क्या कहेंगे? .. कहीं मुझे ही दोष ना दे दे और पुलिस में केस करने का मतलब ये भी होता है कि पूरे सिस्टम को झेलना. 

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हर शहर की अपनी भीड़ है... 

आज हर शहर की अपनी भीड़ है. दिल्ली मेट्रो में जिन पुरुषों को महिलाओं के साथ छेड़छाड़ के आरोप में गिरफ्तार किया गया, उनमें ज्यादातर मामलों में कोई फैसला नहीं आया. मुंबई की लोकल ट्रेनों में छेड़छाड़ के खिलाफ जो शिकायतें दर्ज हुई, उनमें कई शिकायतों में एक भी गिरफ्तारी नहीं हुई और आज इन मामलों पर धूल चढ़ चुकी है. 2023 में कोलकाता में दुर्गा पूजा की भीड़ में जब 5 दिनों में छेड़खानी के 30 से ज्यादा मामले दर्ज हुए, तब भी ये घटनाएं रुकी नहीं और ज्यादातर अपराधों में भीड़ के इन भेड़िये बचकर निकल गए.

पूरे भारत में बैडटच की समस्या

पूरे भारत में कोई राज्य, शहर, इलाका, मोहल्ला या गांव ऐसा नहीं होगा, जहां भीड़ का फायदा उठाकर महिलाओं को गलत तरीके से छून की कोशिश ना हुई हो. भीड़ में जबरदस्ती छूना, बस में अचानक चिपक कर खड़े हो जाना, बार-बार टकराने की कोशिश करना और धार्मिक जुलूसों में, शादी-ब्याहों में और त्योहारों की भीड़ में जान बूझकर छूना और औरतों के शरीर को भीड़ का हिस्सा समझ लेना, अब सामान्य मान लिया गया है.

आज भी जब कोई लड़की ये बताती है कि उसके साथ भीड़ में किसी ने बदतमीज़ी की है तो इसके खिलाफ कहीं शिकायत नहीं होती. सभी परिवार अपने अपनी बेटियों और घर की महिलाओं को कहते हैं कि कोई बात नहीं, भीड़ में तो ऐसा होता ही है. लेकिन कोई ये नहीं सोचता कि ऐसा क्यों होता है और अगर होता है तो हम इसे रोकने के लिए आगे क्यों नहीं आते?

हमारा समाज गंभीरता नहीं दिखाता

कड़वा सच ये है कि हमारा समाज इसे छोटी हरकत कहकर टाल देता है और हम यही सोचते हैं कि कौन इतनी सी बात के लिए पुलिस के चक्कर काटे, लेकिन सच्चाई ये है कि ये कोई छोटी बात नहीं है. कई देशों में इसे रेप के बराबर ही माना गया है. और आप खुद सोचिए कि अगर कोई व्यक्ति भीड़ का फायदा उठाकर किसी महिला को गंदे तरीके से छूता है तो उसकी सोच क्या होगी और वो मानसिक रूप से कितना बीमार होगा?

भारत आज भी दुनिया के उन चुनिंदा देशों में से एक है, जहां ‘पब्लिक टच' को अपराध मानने की संस्कृति नहीं है. हमारे देश में भीड़ का शिकार होने वाली महिलाओं को ये सुनने की आदत हो गई है कि भूल जाओ और ऐसा तो सब जगह होता है और ये सुनते सुनते हमारी महिलाओं ने भी इसे स्वीकार कर लिया है.

अब कई बार तो वो भीड़ का शिकार होने पर भी चुप रहती हैं और इस अपराध के खिलाफ एक शब्द नहीं कहतीं. और इसका कारण यही है कि हमारे समाज ने कभी ये नहीं सोचा कि ये समस्या सरकारों और कानून से हल नहीं होगी. ये समस्या हमारे समाज की सोच बदलने से होगी.

ये घटनाएं तब रुकेंगी, जब हर घर में लड़कों को ये सिखाया जाएगा कि नज़र उठाकर देखना भी हिंसा हो सकती है. जब लड़कों को ये सिखाया जाएगा कि भीड़ में किसी लड़की को छूना भी अपराध है और एक तरह की यौन हिंसा है.

अगले महीने हमारा देश रक्षाबंधन मनाएगा. हम अपनी बहनों की सुरक्षा की कसमें खाएंगे. लेकिन सवाल ये है कि सिर्फ अपनी बहनों की क्यों? क्या दूसरों की माएं, बहनें, बेटियां हमारी भी माएं, बहनें और बेटियां नहीं हैं.

कितनी बड़ी विडंबना है कि जो जन्म देती है, जो बहन होती है, जो पत्नी होती है, जो दादी, नानी, मौसी, बुआ और दोस्त होती है. उसका जीवन ऐसी असुरक्षा से भरा रहता है. और हम पिता, पति, भाई, मौसा, फूफा और दोस्त होने के बावजूद उन्हें सुरक्षित नहीं रख पाते हैं.. वक्त-वक्त पर कुछ कदम उठते हैं. कुछ कानून बनते हैं. लेकिन वो वक्त की भीड़ में खो जाते हैं. और उसी भीड़ में बैठे होते हैं बैडटच वाले भेड़िए जिन्होंने इंसान की खाल ओढ़ रखी होती है.

समाधान क्या है?

इस समस्या का समाधान यही है कि बैडटच को सामान्य ना माना जाए. हर घर में लड़कों और पुरुषों को बताया जाए कि महिलाओं को उनकी मर्ज़ी के बिना छूना नॉर्मल नहीं है बल्कि ये एक गंभीर अपराध है. भीड़ में छू लेना या गलती से टकरा जाना, मजाक नहीं, जुर्म है. और हैदराबाद की पुलिस ने जो किया, वो आप भी कर सकते हैं.

आप भी भीड़ में मोबाइल से रिकॉर्डिंग कर सकते हैं और भेड़ियों के खिलाफ आवाज उठाकर अपना वीडियो हमें भेज सकते हैं. हमारे आपसे वादा है कि आप ऐसे जितने भी वीडियो हमें भेजेंगे, हम उन्हें पूरे देश को दिखाएंगे. और एक बात याद रखिए कि अगर आप अब भी भीड़ में खामोश खड़े रहते हैं और इन भेड़ियों को नहीं रोकते हैं तो आप भी इनकी मदद कर रहे हैं और इनके साथ इनकी दरिंदगी में शामिल हैं.

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