नई दिल्ली:
राजनीतिक दलों से सांप्रदायिक हिंसा का राजनीतिक फायदा उठाने से बचने की अपील करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज राज्यों से कहा कि वे दंगा करने और भड़काने वाले तत्वों के खिलाफ पूरी ताकत से कार्रवाई करें चाहे ऐसे तत्व कितने भी शक्तिशाली हों या किसी भी राजनीतिक दल से संबंध रखते हों।
सांप्रदायिक हिंसा रोकने और इससे निपटने के उपायों पर चर्चा के लिए दिल्ली में हो रही राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में 16 राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हैं, लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह शामिल नहीं हुए। बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी जरूर दिखे और वह और नीतीश कुमार एक-दूसरे को स्माइल देते देखे गए।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यहां राष्ट्रीय एकता परिषद की 16वीं बैठक का उद्घाटन करते हुए कहा कि सांप्रदायिक घटनाओं का बिना वक्त खोए और निष्पक्ष एवं सख्त तरीके से मुकाबला करना राज्यों की जिम्मेदारी है। यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि स्थानीय प्रशासन न सिर्फ तेजी से छोटी घटनाओं को बड़ा रूप लेने से रोके बल्कि सांप्रदायिक हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों को जल्द से जल्द सजा दिलवाए।
उन्होंने कहा, दंगा करने और भड़काने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने में सरकार की पूरी ताकत का इस्तेमाल होना चाहिए, चाहे वह कितने भी शक्तिशाली हों या किसी भी राजनीतिक दल से संबंध रखते हों। अपने भाषण की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वैसे तो इस परिषद की हर बैठक महत्वपूर्ण होती है, लेकिन चूंकि आज की बैठक उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और उसके पड़ोसी जिलों में हुए सांप्रदायिक दंगों के फौरन बाद हो रही है इसलिए इसकी अहमियत और भी बढ़ जाती है।
पीएम ने कहा, ये घटनाएं ऐसी सांप्रदायिक नफरत को जाहिर करती हैं, जो हमारे देश के कौमी किरदार के खिलाफ हैं और जिसकी हम सबको गहरी चिन्ता होनी चाहिए। एक छोटे से मामले पर एक मामूली से हादसे का नतीजा यह हुआ कि 50 से ज्यादा लोगों की जान चली गई, सौ से ज्यादा लोग घायल हुए और कई लाख करोड़ रुपये संपत्ति का नुकसान हुआ।
बैठक में शामिल होने आए यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि सोशल साइट्स पर निगरानी रखने के लिए कोई कारगर कानून नहीं है। उन्होंने कहा कि हिंसा पर काबू करने के लिए मोबाइल कंपनियों और इंटरनेट साइट्स को भेजे गए एमएमएस पर ध्यान रखना चाहिए। और अगर ऐसा संभव नहीं है तो केन्द्र सरकार को इस मामले में काम करना चाहिए। साथ ही अखिलेश यादव ने मुजफ्फरनगर दंगे का जिक्र करते हुए कहा कि कुछ राजनैतिक पार्टियां अपने फायदे के लिए इस तरह की हरकत करती हैं।
उधर, सांप्रदायिक उन्माद के लिए वोट बैंक की राजनीति को प्रमुख कारक बताते हुए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बैठक में कहा कि एक ग्रुप या संगठन को बलि का बकरा नहीं बनाया जाना चाहिए और उसे ऐसे उदाहरणों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए। चौहान ने साइबर आतंकवाद और सोशल मीडिया मंचों के माध्यम से अपराध के फैलाव पर भी चिंता जताई और इस बुराई पर रोक लगाने के लिए कारगर कानून की वकालत की।
वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुजफ्फरनगर सहित हाल में देश के कुछ क्षेत्रों में हुए साम्प्रदायिक दंगों के प्रति आज आगाह किया कि अगर इसे रोका नहीं गया तो यह प्रवृत्ति बढ़कर एक पैटर्न में बदल सकती है। उन्होंने कहा कि ऐसी हिंसा को पूरे देश में नहीं फैलने दिया जा सकता।
राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में दिए अपने भाषण में नीतीश ने सवाल किया कि क्या वोट हासिल करने की प्रतिस्पर्धात्मक राजनीति में विभाजनकारी एजेंडा को कट्टरता के साथ अपनाना आवश्यक है? उन्होंने कहा, हम पाते हैं कि जब भी सांप्रदायिक हिंसा होती है, प्राय: राजनैतिक वर्ग की मिलीभगत से असामाजिक तत्व इसमें शक्ति प्रदान कर देते हैं। मुजफ्फरनगर में क्या हुआ, यह हमने देखा है। यह एक गंभीर चिंता का विषय है। हम इस हिंसा को पूरे देश में नहीं फैलने दे सकते हैं। कुछ शक्तियां सांप्रदायिक तनाव में आग में घी देने का कार्य स्थिति को अपने पक्ष में करने के लिए करती हैं। उन्होंने कहा, राजनीति की यह सोच मुझे विस्मित कर देती है। हमें ऐसी शक्तियों से अपनी पूरी शक्ति के साथ उनके नापाक इरादों को धराशायी करने के लिए लड़ना होगा।
(इनपुट्स भाषा से भी)
सांप्रदायिक हिंसा रोकने और इससे निपटने के उपायों पर चर्चा के लिए दिल्ली में हो रही राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में 16 राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हैं, लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह शामिल नहीं हुए। बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी जरूर दिखे और वह और नीतीश कुमार एक-दूसरे को स्माइल देते देखे गए।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यहां राष्ट्रीय एकता परिषद की 16वीं बैठक का उद्घाटन करते हुए कहा कि सांप्रदायिक घटनाओं का बिना वक्त खोए और निष्पक्ष एवं सख्त तरीके से मुकाबला करना राज्यों की जिम्मेदारी है। यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि स्थानीय प्रशासन न सिर्फ तेजी से छोटी घटनाओं को बड़ा रूप लेने से रोके बल्कि सांप्रदायिक हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों को जल्द से जल्द सजा दिलवाए।
उन्होंने कहा, दंगा करने और भड़काने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने में सरकार की पूरी ताकत का इस्तेमाल होना चाहिए, चाहे वह कितने भी शक्तिशाली हों या किसी भी राजनीतिक दल से संबंध रखते हों। अपने भाषण की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वैसे तो इस परिषद की हर बैठक महत्वपूर्ण होती है, लेकिन चूंकि आज की बैठक उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और उसके पड़ोसी जिलों में हुए सांप्रदायिक दंगों के फौरन बाद हो रही है इसलिए इसकी अहमियत और भी बढ़ जाती है।
पीएम ने कहा, ये घटनाएं ऐसी सांप्रदायिक नफरत को जाहिर करती हैं, जो हमारे देश के कौमी किरदार के खिलाफ हैं और जिसकी हम सबको गहरी चिन्ता होनी चाहिए। एक छोटे से मामले पर एक मामूली से हादसे का नतीजा यह हुआ कि 50 से ज्यादा लोगों की जान चली गई, सौ से ज्यादा लोग घायल हुए और कई लाख करोड़ रुपये संपत्ति का नुकसान हुआ।
बैठक में शामिल होने आए यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि सोशल साइट्स पर निगरानी रखने के लिए कोई कारगर कानून नहीं है। उन्होंने कहा कि हिंसा पर काबू करने के लिए मोबाइल कंपनियों और इंटरनेट साइट्स को भेजे गए एमएमएस पर ध्यान रखना चाहिए। और अगर ऐसा संभव नहीं है तो केन्द्र सरकार को इस मामले में काम करना चाहिए। साथ ही अखिलेश यादव ने मुजफ्फरनगर दंगे का जिक्र करते हुए कहा कि कुछ राजनैतिक पार्टियां अपने फायदे के लिए इस तरह की हरकत करती हैं।
उधर, सांप्रदायिक उन्माद के लिए वोट बैंक की राजनीति को प्रमुख कारक बताते हुए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बैठक में कहा कि एक ग्रुप या संगठन को बलि का बकरा नहीं बनाया जाना चाहिए और उसे ऐसे उदाहरणों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए। चौहान ने साइबर आतंकवाद और सोशल मीडिया मंचों के माध्यम से अपराध के फैलाव पर भी चिंता जताई और इस बुराई पर रोक लगाने के लिए कारगर कानून की वकालत की।
वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुजफ्फरनगर सहित हाल में देश के कुछ क्षेत्रों में हुए साम्प्रदायिक दंगों के प्रति आज आगाह किया कि अगर इसे रोका नहीं गया तो यह प्रवृत्ति बढ़कर एक पैटर्न में बदल सकती है। उन्होंने कहा कि ऐसी हिंसा को पूरे देश में नहीं फैलने दिया जा सकता।
राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में दिए अपने भाषण में नीतीश ने सवाल किया कि क्या वोट हासिल करने की प्रतिस्पर्धात्मक राजनीति में विभाजनकारी एजेंडा को कट्टरता के साथ अपनाना आवश्यक है? उन्होंने कहा, हम पाते हैं कि जब भी सांप्रदायिक हिंसा होती है, प्राय: राजनैतिक वर्ग की मिलीभगत से असामाजिक तत्व इसमें शक्ति प्रदान कर देते हैं। मुजफ्फरनगर में क्या हुआ, यह हमने देखा है। यह एक गंभीर चिंता का विषय है। हम इस हिंसा को पूरे देश में नहीं फैलने दे सकते हैं। कुछ शक्तियां सांप्रदायिक तनाव में आग में घी देने का कार्य स्थिति को अपने पक्ष में करने के लिए करती हैं। उन्होंने कहा, राजनीति की यह सोच मुझे विस्मित कर देती है। हमें ऐसी शक्तियों से अपनी पूरी शक्ति के साथ उनके नापाक इरादों को धराशायी करने के लिए लड़ना होगा।
(इनपुट्स भाषा से भी)
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