कोलार (कर्नाटक):
बेंगलुरु से सटा शहर कोलार कभी सोने की खान के लिए जाना जाता था. अब इस इलाके की पहचान टमाटर उत्पादक क्षेत्र के तौर पर होती है, लेकिन नोटबंदी की मार इस इलाके के किसानों पर भी साफ दिख रहा है.
मुन्नीबैरे गौड़ा का परिवार सब्जियों और अंगूर की खेती पुश्तैनी पेशे के तौर पर करता है. लेकिन शनिवार को जब हम उनके फार्म में पहुंचे तो देखा कि अपने बाड़े के मवेशी को वो चारा के तौर पर टमाटर खिला रहे थे. जब हमने उनसे वजह पूछी तो उनका जवाब था कि बारिश कम होने से पहले ही टमाटर के उत्पादन पर काफी बुरा असर पड़ा और जब हालात थोड़े सुधरे तो नोटबंदी की वजह से नकदी की समस्या खड़ी हो गई.
नकदी की कमी की वजह से वो अपना उत्पादन बाजार तक पहुंच नहीं पा रहे हैं. इस वजह से काफी टमाटर जमा हो गया है. वैसे भी गांव के बाजार में शहर की तुलना में अच्छे भाव नहीं मिलते. ऐसी सूरत में उनके पास अपनी फसल पालतू पशुओं को देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, कम से कम सड़ाकर फेंकने से तो ये बेहतर उपाय है.
श्रीनिवास गौड़ा का 9 एकड़ का टमाटर का फार्म है. उनका कहना है कि पिछले 40 सालों में ऐसी बर्बादी फसल की उन्होंने नहीं देखी. मांग है, लेकिन आपूर्ति नहीं हो पा रही, क्योंकि नकदी नहीं होने की वजह से मजदूरों को मजदूरी देने के साथ-साथ टमाटर को बाजार तक पहुंचाने के लिए भाड़े की रकम नहीं है.
श्रीनिवास गौड़ा के मुताबिक इस साल कम बारिश होने की वजह से टमाटर का प्रति किलो उत्पादन पर आने वाला खर्च 4 से 6 रुपये है, लेकिन ट्रांसपोर्ट व्यवस्था ठप होने से माल जमा हो गया है. व्यापारी औने-पौने दाम पर इसे 3 रुपये किलो तक खरीद रहे हैं. ऐसे में नोटबंदी की वजह से टमाटर बाजार भी दूसरे फल-फूल और सब्जियों की तरह खासा प्रभावित हुआ है.
टमाटर के उत्पादन में भारत दुनिया में चीन के बाद दूसरे नंबर पर है. दक्षिण में तमिलनाडु और कर्नाटक टमाटर के सबसे बड़े उत्पादक राज्य हैं. अगर यही हाल रहा और सरकार इनके समर्थन में आगे नहीं आई तो राष्ट्रीय स्तर पर टमाटर का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होगा.
मुन्नीबैरे गौड़ा का परिवार सब्जियों और अंगूर की खेती पुश्तैनी पेशे के तौर पर करता है. लेकिन शनिवार को जब हम उनके फार्म में पहुंचे तो देखा कि अपने बाड़े के मवेशी को वो चारा के तौर पर टमाटर खिला रहे थे. जब हमने उनसे वजह पूछी तो उनका जवाब था कि बारिश कम होने से पहले ही टमाटर के उत्पादन पर काफी बुरा असर पड़ा और जब हालात थोड़े सुधरे तो नोटबंदी की वजह से नकदी की समस्या खड़ी हो गई.
नकदी की कमी की वजह से वो अपना उत्पादन बाजार तक पहुंच नहीं पा रहे हैं. इस वजह से काफी टमाटर जमा हो गया है. वैसे भी गांव के बाजार में शहर की तुलना में अच्छे भाव नहीं मिलते. ऐसी सूरत में उनके पास अपनी फसल पालतू पशुओं को देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, कम से कम सड़ाकर फेंकने से तो ये बेहतर उपाय है.
श्रीनिवास गौड़ा का 9 एकड़ का टमाटर का फार्म है. उनका कहना है कि पिछले 40 सालों में ऐसी बर्बादी फसल की उन्होंने नहीं देखी. मांग है, लेकिन आपूर्ति नहीं हो पा रही, क्योंकि नकदी नहीं होने की वजह से मजदूरों को मजदूरी देने के साथ-साथ टमाटर को बाजार तक पहुंचाने के लिए भाड़े की रकम नहीं है.
श्रीनिवास गौड़ा के मुताबिक इस साल कम बारिश होने की वजह से टमाटर का प्रति किलो उत्पादन पर आने वाला खर्च 4 से 6 रुपये है, लेकिन ट्रांसपोर्ट व्यवस्था ठप होने से माल जमा हो गया है. व्यापारी औने-पौने दाम पर इसे 3 रुपये किलो तक खरीद रहे हैं. ऐसे में नोटबंदी की वजह से टमाटर बाजार भी दूसरे फल-फूल और सब्जियों की तरह खासा प्रभावित हुआ है.
टमाटर के उत्पादन में भारत दुनिया में चीन के बाद दूसरे नंबर पर है. दक्षिण में तमिलनाडु और कर्नाटक टमाटर के सबसे बड़े उत्पादक राज्य हैं. अगर यही हाल रहा और सरकार इनके समर्थन में आगे नहीं आई तो राष्ट्रीय स्तर पर टमाटर का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होगा.
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