16 अगस्त को कवि, आलोचक और रंग आलोचक नेमिचंद्र जैन की जन्मशती शुरू हो रही है. आज सोशल मीडिया से आक्रांत इस साहित्यिक समय में कम लोगों को याद होगा कि हिन्दी के सार्वजनिक विमर्श में नेमिचंद्र जैन की उपस्थिति कितनी बड़ी रही है. वह 'तार सप्तक' के कवियों में रहे और अज्ञेय के अलावा वह दूसरे कवि थे, जिन्होंने इसके प्रकाशन में सक्रिय भूमिका अदा की. वह हिन्दी नाट्यालोचना के शिखर पुरुष रहे. उन्होंने हिन्दी के संसार को रंगमंच देखना और समझना सिखाया.
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आलोचना में भी नेमिचंद्र जैन का गंभीर काम हिन्दी की थाती है. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) की स्थापना में भी उनका योगदान रहा और अरसे तक वह वहां शिक्षक के तौर पर जुड़े रहे. पांच खंडों में प्रकाशित 'मुक्तिबोध रचनावली' उनके संपादकीय कौशल का ही नहीं, उनके अध्यावसाय, उनकी मेहनत और उनके धैर्य का अप्रतिम उदाहरण है.
बेशक, रंग आलोचना में उनकी सक्रियता उनकी बाकी भूमिकाओं पर भारी पड़ती रही. नेमिजी ने 'नटरंग' के नाम से पत्रिका भी निकाली, जो अब तक हिन्दी रंगमंच का सबसे प्रामाणिक दस्तावेज़ बनी हुई है. इस पत्रिका का महत्व वे लोग ज़्यादा समझ सकते हैं, जो छोटे शहरों में रंगकर्म करते रहे और ऐसी किसी पत्रिका या संस्था की तलाश में रहे, जहां से उन्हें अखिल भारतीय रंगमंच की सूचनाएं मिल सकें. नेमिजी का बनाया 'नटरंग प्रतिष्ठान' उनके काम को आगे बढ़ाता रहा.
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नेमिचंद्र जैन की जन्मशती पर अब तीन दिन का सांस्कृतिक-बौद्धिक आयोजन हो रहा है, जिसकी शुरुआत प्रख्यात इतिहासकार रोमिला थापर के व्याख्यान से होगी. व्याख्यान का विषय है - अन्यता की उपस्थिति : आदिकालीन उत्तर भारत में धर्म और समाज. इसके अलावा प्रख्यात रंगकर्मियों और संस्कृतिकर्मियों की प्रस्तुतियां भी होंगी और साहित्य से जुड़ी अलग-अलग विधाओं पर विचार भी.
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