
फाइल फोटो
मुंबई:
दूध का न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के बाद अब दूध के बढ़ते दाम कम करने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने नायाब तरीका ढूंढ निकाला है। सरकारी दूध ब्रांड के दाम कम होने जा रहे हैं। इसके जरिए राज्य सरकार की कोशिश है कि निजी दूध संघों पर भी अपने ब्रांड के दूध की कीमत घटाने का दबाव बनाया जाए।
महाराष्ट्र में सालाना 9 लाख टन दूध का उत्पादन होता है। इस उत्पादन पर राज्य में पसरा हुआ डेअरी उद्योग सहकारिता के माध्यम से चल रहा है। इस में किसान से दूध खरीद कर ग्राहक तक पहुंचाया जाता है। साथ ही अतिरिक्त दूध से बाई प्रोडक्ट बनाए जा रहे हैं।
दूध की कीमत को लेकर विवाद तब उभरा जब किसान से 12 से 16 रुपये प्रति लीटर के दाम पर खरीदा जा रहा गाय का दूध बाजार में 50 से 60 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है। राज्य सरकार को अंदेशा है की निजी दूध संघ 5 गुना मुनाफा कमा रहे हैं जिससे उपभोक्ता की जेब पर बोझ पड़ रहा है।
फिलहाल सरकारी ब्रांड आरे का गाय का दूध 33 रुपये प्रति लीटर और महानंद ब्रांड का गाय दूध 39 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है। राज्य के दुग्धविकास मंत्री एकनाथ खड़से ने मुंबई में संवाददाताओ को बताया, 'सरकार निजी दूध संघों को अपना मुनाफ़ा कम करने को कह चुकी है। अगर जल्द ऐसा नहीं होता तो वे कानूनी रुख़ इख़्तियार करेंगे।'
महाराष्ट्र में फिलहाल सरकारी ब्रांड आरे, महानंद के अलावा गोकुल, वारणा इन स्थानीय ब्रांड के साथ अमूल और मदर डेयरी के दूध की बिक्री हो रही है। चूंकि, दूध अत्यावश्यक वस्तू मानकर उस पर केंद्रीय क़ानून से नियंत्रण रखा जाता है।
लिहाजा राज्य सरकार दूध के दाम घटाने के लिए आनन फानन में चाहकर भी तुरंत कोई कार्रवाई नहीं कर सकती। इसलिए सरकार ने अपना मुनाफ़ा घटाने का फैसला किया है। उधर निजी दूध संघ मुनाफ़ाखोरी के आरोप नकार रहे हैं।
सांगली दूध संघ के प्रमुख विनायक पाटिल ने एनडीटीवी इंडिया से बात करते हुए कहा, दूध का उत्पादन शुल्क ही 25 रुपए प्रति लीटर जा पहुंचा है। ऐसे में सरकार प्रति लीटर 20 रुपये का समर्थन मूल्य लागू करने के साथ मुनाफा घटाने की अपेक्षा नहीं कर सकती।
उल्टा आज दूध कारोबार को 4 रुपये प्रति लीटर सबसिडी की मांग हम कर रहे हैं। ऐसे में मुनाफ़े को कम कराने की सरकारी पहल किसी चुनौती से कम नहीं।
महाराष्ट्र में सालाना 9 लाख टन दूध का उत्पादन होता है। इस उत्पादन पर राज्य में पसरा हुआ डेअरी उद्योग सहकारिता के माध्यम से चल रहा है। इस में किसान से दूध खरीद कर ग्राहक तक पहुंचाया जाता है। साथ ही अतिरिक्त दूध से बाई प्रोडक्ट बनाए जा रहे हैं।
दूध की कीमत को लेकर विवाद तब उभरा जब किसान से 12 से 16 रुपये प्रति लीटर के दाम पर खरीदा जा रहा गाय का दूध बाजार में 50 से 60 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है। राज्य सरकार को अंदेशा है की निजी दूध संघ 5 गुना मुनाफा कमा रहे हैं जिससे उपभोक्ता की जेब पर बोझ पड़ रहा है।
फिलहाल सरकारी ब्रांड आरे का गाय का दूध 33 रुपये प्रति लीटर और महानंद ब्रांड का गाय दूध 39 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है। राज्य के दुग्धविकास मंत्री एकनाथ खड़से ने मुंबई में संवाददाताओ को बताया, 'सरकार निजी दूध संघों को अपना मुनाफ़ा कम करने को कह चुकी है। अगर जल्द ऐसा नहीं होता तो वे कानूनी रुख़ इख़्तियार करेंगे।'
महाराष्ट्र में फिलहाल सरकारी ब्रांड आरे, महानंद के अलावा गोकुल, वारणा इन स्थानीय ब्रांड के साथ अमूल और मदर डेयरी के दूध की बिक्री हो रही है। चूंकि, दूध अत्यावश्यक वस्तू मानकर उस पर केंद्रीय क़ानून से नियंत्रण रखा जाता है।
लिहाजा राज्य सरकार दूध के दाम घटाने के लिए आनन फानन में चाहकर भी तुरंत कोई कार्रवाई नहीं कर सकती। इसलिए सरकार ने अपना मुनाफ़ा घटाने का फैसला किया है। उधर निजी दूध संघ मुनाफ़ाखोरी के आरोप नकार रहे हैं।
सांगली दूध संघ के प्रमुख विनायक पाटिल ने एनडीटीवी इंडिया से बात करते हुए कहा, दूध का उत्पादन शुल्क ही 25 रुपए प्रति लीटर जा पहुंचा है। ऐसे में सरकार प्रति लीटर 20 रुपये का समर्थन मूल्य लागू करने के साथ मुनाफा घटाने की अपेक्षा नहीं कर सकती।
उल्टा आज दूध कारोबार को 4 रुपये प्रति लीटर सबसिडी की मांग हम कर रहे हैं। ऐसे में मुनाफ़े को कम कराने की सरकारी पहल किसी चुनौती से कम नहीं।
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