इसरो ने किया जीसैट-29 का सफल प्रक्षेपण, देश के प्रथम मानवयुक्त मिशन की ओर एक अहम कदम

इस उपग्रह पर यूनिक किस्म का 'हाई रेज्यूलेशन' कैमरा लगा है, जिसे 'जियो आई' नाम दिया गया है. इससे हिंद महासागर में दुश्मनों के जहाजों पर नजर रखी जा सकेगी.

इसरो ने किया जीसैट-29 का सफल प्रक्षेपण, देश के प्रथम मानवयुक्त मिशन की ओर एक अहम कदम

खास बातें

  • इस संचार उपग्रह का वजन 3,423 किलोग्राम है.
  • इस नए रॉकेट को तैयार करने में 15 साल का वक्त लगा है.
  • इस लॉन्च की अनुमानित लागत 300 करोड़ रुपये से ज्यादा रहेगी.
नई दिल्ली/श्रीहरिकोटा:

इसरो ने अपने सबसे भारी और ‘शक्तिशाली' बताए जाने वाले रॉकेट जीएसएलवी मार्क 3-डी 2 के जरिए देश के नवीनतम संचार उपग्रह जीसैट - 29 को बुधवार को सफलतापूर्वक कक्षा में पहुंचा दिया. इस प्रक्षेपण को महत्वाकांक्षी ‘चंद्रयान-2' अभियान और देश के ‘मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन' के लिए एक अहम कदम माना जा रहा है क्योंकि उनमें इसी का उपयोग किया जाएगा. जीसैट-29 उपग्रह का वजन 3,423 किग्रा है. यह अंतरिक्ष में भेजे जाने वाला भारत का सबसे भारी उपग्रह है. इसके जरिए देश के दूर दराज के इलाकों में लोगों की संचार जरूरतों के पूरा होने की उम्मीद है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) प्रमुख के. सिवन ने कहा कि चंद्रयान के साथ रॉकेट का प्रथम ऑपरेशनल मिशन जनवरी 2019 में होने जा रहा है. वहीं, यह शानदार यान अब से तीन साल में मानव को अंतरिक्ष में ले जाने वाला है. सिवन के मुताबिक इसरो ने अंतरिक्ष में देश के महत्वाकांक्षी मानवयुक्त मिशन को 2021 तक हासिल करने का लक्ष्य रक्षा है, जबकि प्रथम मानव रहित कार्यक्रम ‘गगनयान' की योजना दिसंबर 2020 के लिए है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस समारोह पर अपने संबोधन में यह घोषणा की थी कि भारत गगनयान के जरिए 2022 तक एक अंतरिक्ष यात्री को भेजने की (अंतरिक्ष में) कोशिश करेगा. इस अभियान के सफल होने पर भारत इस उपलब्धि को हासिल करने वाला चौथा राष्ट्र बन जाएगा.

इसरो के चेयरमैन के. सिवान का कहना है कि इस संचार उपग्रह का वजन 3,423 किलोग्राम है. जीसैट-29 उपग्रह उच्च क्षमता वाले कू-बैंड के ट्रांसपोंडरों से लैस है. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि इससे जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्वी भारत के दूर-दराज के इलाकों में इंटरनेट पहुंचाने में मदद मिलेगी. इस उपग्रह पर यूनिक किस्म का 'हाई रेज्यूलेशन' कैमरा लगा है, जिसे 'जियो आई' नाम दिया गया है. इससे हिंद महासागर में दुश्मनों के जहाजों पर नजर रखी जा सकेगी.

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जियो-सिन्क्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क 3 (GSLV Mk-III) का वजन 641 टन है, जो पूरे तरह भरे हुए पांच यात्री विमानों के बराबर है. 43 मीटर की ऊंचाई वाला यह रॉकेट 13 मंज़िल की इमारत से ज्यादा ऊंचा है. दिलचस्प तथ्य यह है कि 'बाहुबली' भारत के सभी ऑपरेशनल लॉन्च व्हीकलों में सबसे भारी है, लेकिन आकार में सबसे छोटा भी है.

इस नए रॉकेट को तैयार करने में 15 साल का वक्त लगा है, और हर लॉन्च की अनुमानित लागत 300 करोड़ रुपये से ज्यादा रहेगी.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष के. सीवन ने बताया, "अगर यह लॉन्च कामयाब रहता है, तो भारत के इस 'बाहुबली', यानी GSLV Mk-III को ऑपरेशनल घोषित कर दिया जाएगा..."

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इसके बाद GSLV Mk-III को ही अगले साल की शुरुआत में भारत के चंद्रयान-2 तथा वर्ष 2022 से पहले 'गगनयान' को लॉन्च करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा.

GSLV Mk-III में भारतीय क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल किया गया है, जिसे भारत में ही तैयार किया गया है, और यह प्रोपेलैन्ट के तौर पर तरल ऑक्सीजन तथा तरल हाइड्रोजन का इस्तेमाल करता है. यह रॉकेट 4-टन क्लास के संचार उपग्रहों को लॉन्च करने में सक्षम है, जिससे भारत 'बिग ब्वॉयज़ स्पेस क्लब', यानी अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़े माने जाने वाले मुल्कों की कतार में शामिल हो जाएगा.

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