1881 की भोजपत्र पांडुलिपि ने बहस छेड़ दी है...
नई दिल्ली:
दुनिया के लिए शून्य भारत की देन रहा है. ये बात पहले ही तय है लेकिन हाल में हुई खोजों में कुछ ऐसे सबूत सामने आए हैं जिसमें शून्य की उम्र 3-4 सदी और ज़्यादा बढ़ाने की बात छेड़ दी है. क्या और पुराना हो गया शून्य? नए सबूतों ने किया शून्य को और पुराना. 1881 की भोजपत्र पांडुलिपि ने बहस छेड़ दी है. नई कार्बन डेटिंग तकनीकी से यह बात सामने आई है कि 4 से 6 शताब्दी में बीच ही शून्य की खोज हो चुकी थी. ये पांडुलिपि बख्शाली में है, 1881 में पेशावर के करीब मिली जो 1902 से ऑक्सफोर्ड में ऐसे ही सुरक्षित रही.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफ़ेसर मारकुस डू सॉटॉय का कहना है कि ये गणित से भरा पड़ा है, लेकिन सबसे रोमांचक बात ये है कि हमने शून्य को पहचान लिया, इसलिए मैं ग्वालियर के उस छोटे से मंदिर गया जहां दीवार पर शून्य अंकित है वो नौवीं सदी के मध्य का माना जाता है, उम्मीद थी कि ये पांडुलिपि वहां मिलेगी. लेकिन वहां ऐसा कुछ नहीं मिला, कार्बन डेटिंग के मुताबिक ये पांडुलिपि दूसरी से चौथी शताब्दी के बीच की है, जो सबको हैरान करता है कि इसमें लिखा शून्य कितना पुराना है.
ये किसी ऐसी संस्कृति से आता है जिसने शून्य से लेकर अनंत तक के विचार दुनिया से सामने रखे और कुछ नहीं अथवा शून्य के लिए संकेत का इस्तेमाल किया. ये उनके दर्शन और संस्कृति का हिस्सा है , ये जानना बेहद रोमांचाकारी है कि कैसे किसी संस्कृति से गणित के अनसुलझे रहस्य उजागर होते हैं.
अभी तक ये माना जाता रहा कि शून्य के इस संकेत का इस्तेमाल छठी सदी में ब्रह्मगुप्त ने किया. लेकिन अब इस दस्तावेज से शून्य का इतिहास और भी पीछे चला गया है.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफ़ेसर मारकुस डू सॉटॉय का कहना है कि ये गणित से भरा पड़ा है, लेकिन सबसे रोमांचक बात ये है कि हमने शून्य को पहचान लिया, इसलिए मैं ग्वालियर के उस छोटे से मंदिर गया जहां दीवार पर शून्य अंकित है वो नौवीं सदी के मध्य का माना जाता है, उम्मीद थी कि ये पांडुलिपि वहां मिलेगी. लेकिन वहां ऐसा कुछ नहीं मिला, कार्बन डेटिंग के मुताबिक ये पांडुलिपि दूसरी से चौथी शताब्दी के बीच की है, जो सबको हैरान करता है कि इसमें लिखा शून्य कितना पुराना है.
ये किसी ऐसी संस्कृति से आता है जिसने शून्य से लेकर अनंत तक के विचार दुनिया से सामने रखे और कुछ नहीं अथवा शून्य के लिए संकेत का इस्तेमाल किया. ये उनके दर्शन और संस्कृति का हिस्सा है , ये जानना बेहद रोमांचाकारी है कि कैसे किसी संस्कृति से गणित के अनसुलझे रहस्य उजागर होते हैं.
अभी तक ये माना जाता रहा कि शून्य के इस संकेत का इस्तेमाल छठी सदी में ब्रह्मगुप्त ने किया. लेकिन अब इस दस्तावेज से शून्य का इतिहास और भी पीछे चला गया है.